Varanasi Tour Plan-बनारस घूमने की पूरी जानकारी
वाराणसी जिसे बनारस या काशी के नाम से भी जाना जाता है, भारत ही नहीं बल्कि विश्व के प्राचीनतम शहरों में से एक है। बनारस अपने ऐतिहासिक स्मारकों, घाटों और पवित्र मंदिरों के कारण धार्मिक आस्था रखने वालों के साथ -साथ पर्यटन की दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है।
वाराणसी का आकर्षण मंदिरों और घाटों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यहां के विश्वविद्यालय, बनारसी साड़ियां व रेशमी वस्त्रों की निर्माण इकाइयों के साथ यहां का स्वादिष्ट खानपान भी शहर के आकर्षण में अपना योगदान करते हैं। वाराणसी में विशेष रूप से पवित्र गंगा नदी के तट पर प्रसिद्ध तीर्थस्थल काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन हेतु दूर -दूर से भक्त यहां आते हैं।
वाराणसी एकमात्र ऐसा शहर है, जहां पवित्र नदी गंगा के किनारे इतने अधिक ऐतिहासिक घाट हैं, प्राचीन मंदिरों और इमारतों से घिरे होने के कारण इन घाटों का आकर्षण और भी बढ़ जाता है। यहां के घाटों में तीर्थयात्री पवित्र स्नान करने व पूजा अर्चना के लिए आते हैं फिर नाव द्वारा विभिन्न घाटों की सैर का आनंद प्राप्त करते हैं। वाराणसी जाना उन यात्रियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होगा जो भारत में एक पवित्र और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध क्षेत्र देखना चाहते हैं।
इस लेख में हम बनारस के पर्यटन स्थलों और बनारस यात्रा के संबंध में आवश्यक जानकारी देंगे, जिससे जब आप बाबा विश्वनाथ का दर्शन करने आए तो यहां घूमने में आसानी हो सके।
बनारस में क्या देखें (Varanasi tourist Places)
बनारस में घूमने की बहुत सी जगहें है, यहां घाट, मंदिर और किले सहित देखने के लिए कई विविधिता पूर्ण स्थल हैं। यहां के आकर्षक स्थलों को घूमने के लिए हर साल दुनिया भर से यात्री बनारस आते हैं। आइये जानते हैं, बनारस के देखने योग्य स्थानों के बारे में -
A. वाराणसी के मंदिर (Temple in Varanasi)
वाराणसी में बहुत सारे मंदिर हैं आपको हर सड़क और गली में एक मंदिर जरूर मिल जाएगा परन्तु यहां पर कुछ ऐसे मंदिर है जिनका पौराणिक एवं ऐतिहासिक महत्व है। वाराणसी पहुंचकर आप इन मंदिरों का दर्शन लाभ ले सकते हैं।
1. काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Temple)
गंगा के पश्चिमी तट पर स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर भारत के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। यह मणिकर्णिका घाट के पास, वाराणसी जंक्शन रेलवे स्टेशन से चार किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।यह भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है, इस मंदिर के गुंबदों को सोने से सजाया गया है जिससे इसे “वाराणसी का स्वर्ण मंदिर” भी कहा जाता है।
काशी विश्वनाथ मंदिर में प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु आते हैं, अब श्री काशी विश्वनाथ मंदिर कारीडोर बनने के बाद यह दुनिया भर से तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को आकर्षित कर रहा है जिससे यहां आने वाले भक्तों की संख्या काफी बढ़ गई है। भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर का नाम कई पौराणिक पवित्र ग्रंथों में आता है, यही वजह है कि यह इतना प्रसिद्ध है।
ऐसा माना जाता है कि पवित्र गंगा नदी में स्नान करने के बाद इस मंदिर के दर्शन करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। बनारस आने वाले अधिकतर लोगों की यात्रा का मुख्य उद्देश्य श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन करना होता है। अगर आप वाराणसी की यात्रा करने जा रहे हैं तो काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन करे बिना आपकी यात्रा अधूरी रह जाती है।
इस मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ होती है और अक्सर हमेशा ही दर्शन के लिए लम्बी कतार में लगना होता है, इससे बचने के लिए मंदिर प्रशासन की तरफ से "सुगम दर्शन" की व्यवस्था की गई है जिसके लिए 350/-रूपये का टिकट लेना होता है। आप यह टिकट मंदिर पहुंचकर अथवा ऑनलाइन भी ले सकते हैं। इस टिकट को लेने पर आपको अपेक्षाकृत छोटी कतार में लगना होता है।
काशी विश्वनाथ कॉरीडोर बनने के बाद मंदिर का परिसर बहुत विशाल हो गया है और यहां गेट नंबर 1 से लेकर 4 तक गेट बनाये गए हैं, इनसे श्रद्धालु मंदिर में प्रवेश करते हैं। मंदिर में किसी तरह का सामान या मोबाइल आदि ले जाने की इज़ाज़त नहीं है इसके लिए मंदिर प्रशासन की तरफ से लाकर सुविधा उपलब्ध है।
विश्वनाथ मंदिर में आसानी से प्रवेश कैसे करें -
अगर आपके पास सुगम दर्शन की टिकट नहीं है और लम्बी लाइन से बचना चाहते हैं तो आपको गंगा द्वार गेट नंबर 1 की तरफ से जाना होगा। यहां जाने के लिए दशाश्वमेध घाट जाने वाले रास्ते पर आगे बढ़े फिर घाट आने के थोड़ा लेफ्ट साइड वाला रास्ता पकड़ें। इसी रास्ते पर चलकर आप गंगा घाट तक पहुंच जाएंगे। इस घाट पर गंगा द्वार (गेट नंबर 1) स्थित है, यहां नाव द्वारा भी किसी भी घाट से पहुंचा जा सकता है।
गंगा द्वार से प्रवेश करने पर आपको भारत माता व शंकराचार्य की मूर्ति के दर्शन होते हैं और आप यहां फोटो भी ले सकते हैं (किसी अन्य द्वार से प्रवेश करने पर आप यहां तक मोबाइल नहीं ले जा पाएंगे) इसके आगे विश्वनाथ द्वार से आगे बढ़े, यहां चेकिंग होती है, इसलिए अपने बैग यहां उपलब्ध लाकर में जमा करवा दें। फिर मंदिर में प्रवेश करने वाली लाइन में लग जावें।
यहां भक्तों की भारी भीड़ के कारण केवल कुछ सेकंड के लिए भगवान विश्वनाथ के दर्शन आप कर सकेंगे। यदि आप पुष्प माला आदि अपने साथ लेकर जाते हैं तो उसे शिवलिंग से दूर एक स्लाइडर पर डालने की व्यवस्था बनाई गई है। यदि आप ऑनलाइन पूजा की बुकिंग करवाते हैं तो इसके लिए मुख्य मंदिर के समीप पिंडियां बनाई गई हैं, जहां पंडितों द्वारा पूजा करवाई जाती हैं।
मंदिर परिसर के अंदर एक प्रत्येक गेट के समीप, मंदिर प्रशासन द्वारा पेड़े का प्रसाद विक्रय किया जाता है, वर्तमान समय में इसका रेट 400 /-रूपये प्रति किलो है। यहां से आप अपनी पसंद की छोटी या बड़ी पैकिंग में प्रसाद खरीद सकते हैं। इसलिए बेहतर होगा बाहर कहीं से प्रसाद न खरीदें।
2. तुलसी मानस मंदिर (Thulasi Manas Mandir)
इस मंदिर का नाम तुलसीदास जी के नाम पर पर रखा गया है, ऐसा कहा जाता है कि इस स्थान पर तुलसीदास जी ने महान ग्रन्थ रामचरितमानस की रचना की थी। तुलसी मानस मंदिर, वाराणसी के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में से एक है।
यह मंदिर संगमरमर का बना हुआ है और इसकी सम्पूर्ण आंतरिक दीवारों पर रामचरितमानस की चौपाइयों और दोहों को लिखा गया है, जो इसे विशिष्ट बनाती है।
यह मन्दिर वाराणसी कैन्ट (रेलवे स्टेशन) से लगभग पाँच 5 किलोमीटर की दूरी पर दुर्गा मन्दिर के नजदीक में है। यहां सावन के महीनों में कठपुतलियों का एक विशेष प्रदर्शन किया जाता है, जो रामायण से संबंधित होता है। इस मन्दिर के मध्य भाग मे भगवान राम, लक्ष्मण, माता जानकी एवं हनुमान जी की नयनाभिराम मूर्ति है।
3. दुर्गा मंदिर (Durga Mandir)
बनारस के इस मंदिर का निर्माण बंगाल की महारानी ने 18 वीं सदी में करवाया था। लाल पत्थरों से बने इस मंदिर के एक तरफ "दुर्गा कुंड" है। इस मंदिर में बाबा भैरोनाथ, लक्ष्मीजी, सरस्वती जी एवं माता काली की मूर्ति अलग से है।
वैसे तो यहाँ हमेशा ही भक्तों की काफी भीड़ रहती है परन्तु नवरात्रि, सावन माह और मंगलवार व शनिवार को और भारी संख्यां में भक्त, माँ के दर्शन के लिये यहां आते है। मंदिर के अंदर हवन कुंड है, जहाँ रोज हवन होते हैं। कुछ लोग यहाँ तंत्र पूजा भी करते हैं, सावन के महिने में यहां मेला लगता है।
4. संकट मोचन हनुमान मंदिर (Sankat Mochan Hanuman Temple)
संकट मोचन हनुमान मंदिर, वाराणसी के प्रमुख मंदिरों में से एक है। इस मंदिर की स्थापना मदन मोहन मालवीय जी द्वारा सन 1900 में की गई थी। सामान्य दिनों में भी यहां भगवान हनुमान के दर्शन के लिए काफी संख्या में भक्त पहुंचते हैं, परन्तु हर मंगलवार और शनिवार को यहां काफी भीड़ होती है।
यहां हनुमान जयंती बहुत ही धूमधाम से मनाई जाती है और इस दौरान एक शोभायात्रा भी निकाली जाती है। यहां हनुमान जी को प्रसाद के रूप में शुद्ध देसी घी व बेसन के लड्डू चढ़ाए जाते हैं। ज्योतिष के अनुसार बजरंग बली, मनुष्यों को शनि ग्रह के कोप से बचाते हैं इसलिए शनि की शान्ति के लिए भी लोग इस मंदिर में आते हैं।
5. मृत्युंजय महादेव मंदिर -
यह मंदिर वाराणसी के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है, जो अपने सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व के लिए जाना जाता है। इस मंदिर परिसर के भीतर बने मंदिरों के निर्माण को एक हजार वर्ष से अधिक बीत चुके हैं।
मान्यता है कि यहां स्थित शिवलिंग के दर्शन से पुरानी बीमारियां ठीक होती हैं, मंदिर में एक छोटा सा कुआं है, कहा जाता है कि चिकित्सा के देवता धन्वंतरि ने अपनी सभी दवाएं कुएं में डाल दी थीं, जिससे इस कुएं के जल में चिकित्सीय गुण हैं।
B. वाराणसी के घाट (Ghat in Varanasi)
बनारस में पुण्यदायिनी गंगा के किनारे कुल मिलाकर लगभग 84 घाट हैं। यहां एक घाट से दूसरे घाट पर नाव द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है। सुबह और शाम के समय नाव की सवारी करते हुए इन घाटों का दर्शन करना करना एक अद्भुत आनंद की अनुभूति कराता है।
यहां के घाट, वाराणसी की समृद्ध संस्कृति और इतिहास को दर्शाते हैं और इनकी महिमा न्यारी है। इस प्राचीन नगर में अस्सी से आदिकेशव तक हर घाट के अलग ठाठ हैं, इन घाटों पर कहीं कोई मन्दिर विशिष्ट स्थापत्य शैली में निर्मित है तो किसी घाट की पहचान वहां स्थित महलों से है। दरअसल प्राचीन काल में विभिन्न राजाओं-महाराजाओं ने इन्हीं गंगा घाटों पर अपने महलों का निर्माण कराया एवं निवास किया।
बहुत से विख्यात संत महात्माओं ने इन्हीं घाटों पर आश्रय लिया जिनमें तुलसीदास, रामानन्द, रविदास, तैलंग स्वामी प्रमुख हैं। इन घाटों पर सम्पूर्ण भारतीय संस्कृति का समन्वय जीवन्त रूप में विद्यमान है। घाटों ने बनारस की एक अलग छवि को जगजाहिर किया है, यहां होने वाले धार्मिक सांस्कृतिक कार्यक्रमों में गंगा आरती, गंगा महोत्सव, देवदीपावली, कृष्ण लीला आदि बहुत प्रसिद्ध है।
वाराणसी जाने वाले लोगों के लिये गंगा के घाट धार्मिक-आध्यात्मिक महत्व के साथ ही पर्यटन की दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। इसमें से अधिकांश घाट का पवित्र स्नान करने और पूजा के लिए उपयोग किया जाता है, जबकि 2 घाटों को विशेष रूप से दाह संस्कार लिए उपयोग किया जाता है। यहां कुछ महत्वपूर्ण घाटों के बारे में आपको जानकारी दी जा रही है, जहां आप वाराणसी घूमने के दौरान आसानी से जा सकते हैं।
1. दशाश्वमेध घाट (Dashashwamedh Ghat)
यह घाट, काशी विश्वनाथ मंदिर के निकट स्थित है और यहां का एक प्रमुख और शानदार घाट है। यहां पर संध्या के समय पुजारियों का एक समूह मां गंगा की आरती करता है, इस भव्य आरती में शामिल होने के लिए बड़ी संख्या में लोग शाम के साढ़े पांच बजे से ही एकत्रित होने लगते हैं।
बनारस यात्रा के दौरान इस आरती में शामिल होना और इसका प्रत्यक्ष दर्शन एक पारलौकिक अनुभव प्रदान करने वाला है।
इस आरती में सैकड़ों लोगों की उपस्थिति और यहां लगने वाले भगवान शंकर और गंगा मइया के जयकारे माहौल को भक्तिपूर्ण बना देते हैं।
2. अस्सीघाट (Assi-Ghat)
यह गंगा के बाएं तट पर उत्तर से दक्षिण फैली घाटों की श्रृंखला में दक्षिण की तरफ से पहला घाट है, जहां से गंगा वाराणसी में प्रवेश करती हैं, अतः यहां गंगा का स्वरूप भी साफ सुथरा और प्रदूषण रहित है। दशाश्वमेध घाट की तरह इस घाट पर भी गंगा आरती होती है।
इस घाट का वर्णन कई हिंदू धार्मिक ग्रंथों और पुराणों जैसे -मत्स्य पुराण, अग्नि पुराण और पद्म पुराण आदि में मिलता है। इस घाट पर एक विशाल पीपल के पेड़ के नीचे शिवलिंग स्थित है, जहां तीर्थयात्री गंगा नदी में पवित्र स्नान करने के बाद पूजा अर्चना करते हैं।
यह घाट धार्मिक महत्व के साथ हर सुबह होने वाले सांस्कृतिक एवं संगीत कार्यक्रमों के लिए भी जाना जाता है। सुबह के समय ठंडी हवा का आनंद लेते हुए यहां बैठकर शास्त्रीय संगीत सुनना, एक अलौकिक अनुभव प्रदान करता है। इस घाट पर सुबह पांच बजे से लोगों का आना जाना लगा रहता है।
3. मणिकर्णिका घाट ( Manikarnika Ghat)
गंगा के तट पर मणिकर्णिका घाट भारत का एकमात्र ऐसा घाट है जहां रात में भी शव का दाह संस्कार किया जाता है। देश ही नहीं विदेशों से भी लोग इस घाट का दर्शन करने के लिए आते हैं।
इस घाट पर आने के बाद जीवन के इस सत्य का अनुभव होता है कि हम सबको इस शरीर को छोड़ना है इसलिए जब तक जीवन है इसे शांति और आनंद के साथ जियें। जब आप बाबा विश्वनाथ के दर्शन करने आएं तो गंगा घाट की तरफ आकर मणिकर्णिका घाट का दर्शन कर सकते हैं।
4. हरिश्चन्द्र घाट (Harishchandra Ghat)
वाराणसी में मृतकों के दाह संस्कार के लिए 2 घाट बहुत ही प्रसिद्ध है- पहला मणिकर्णिका घाट और दूसरा हरिश्चंद्र घाट। यह घाट मैसूर घाट और गंगा घाट के बीच में स्थित है। इस घाट पर राजा हरिश्चंद्र- तारामती एवं रोहताश्व का बहुत पुरातन मंदिर है, साथ में एक शिव मंदिर भी है। आधुनिकता के युग में यहाँ एक विद्युत शवदाह भी है, परन्तु इसका प्रयोग कम ही लोग करते हैं।
5. शिवाला घाट (Shivala Ghat) -
शिवाला घाट ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। चेतसिंह का किला और नेपाल के राजा संजय विक्रम का निवास, शिवाला घाट के करीब दो ऐतिहासिक स्मारक हैं। काली घाट, शिवाला घाट का एक अन्य नाम है।
इस घाट के ठीक पीछे राजा चेतसिंह का गढ़ है, बनारस में यह वही स्थान है, जहां ब्रिटिश सरकार ने 1781 में राजा चेतसिंह को कैद कर लिया था, परन्तु चेतसिंह एक छोटी सी खिड़की से निकल गए और अपने सैनिकों के साथ नदी पार कर गए।
C. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU)
वाराणसी में चार बड़े विश्वविद्यालय स्थित हैं, जो इस प्रकार हैं -
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (Banaras Hindu University)
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ (Mahatama Gandhi Kashi Vidhayapeeth)
संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय (Sampuranand Sanskrit University)
सेंट्रल इंस्टिट्यूट ऑफ हायर तिब्बतियन स्टडी (Central institute of higher Tibetan studies)
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की बात करें तो इसकी स्थापना पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने की थी। यह भारत ही नहीं, अपितु एशिया के सबसे बड़े विश्वविद्यालयों में से एक है, इसका कुल क्षेत्रफल लगभग 1300 एकड़ है, जिसमें विभिन्न विभागों के भवन बने हैं।
BHU का पूरा कैंपस खुला खुला और हरा भरा है और यहां आकर पेड़ की छाँव में बैठना मन को सुकून से भर देता है। बनारस के मध्य भाग की गलियों और ट्रैफिक के शोर से निकलकर यहां आने पर आपको बेहद शान्ति महसूस होती है।
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय परिसर के भीतर विज्ञान, कला, सामाजिक विज्ञान, इंजीनियरिंग, एमबीए, मेडिकल, फाइन आर्ट्स, संगीत, संस्कृत शोध विभाग आदि के लिए अलग-अलग इमारतें हैं। विश्वविद्यालय का अपना हेलीपैड है और अपनी अलग सुरक्षा व्यवस्था भी है।
BHU के पास निजी संचार प्रणाली, प्रेस, कंप्यूटर नेटवर्क, डेयरी, कृषि फार्म, कला व संस्कृति संग्रहालय और विशालकाय सेंट्रल लाइब्रेरी हैं। लाइब्रेरी में 10 लाख से भी अधिक पुस्तकें, पत्रिकाएँ, शोध रिपोर्ट और ग्रंथ आदि हैं।
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के मनभावन परिसर में पर्यटकों के आकर्षण के दो अन्य केंद्र भी हैं -पहला भारत कला भवन, यह एक संग्रहालय है जहां आप विभिन्न प्रकार की ऐतिहासिक वस्तुओं को देख सकते हैं यहां प्राचीन चित्रकारी, वस्त्रों एवं कलाकृतियों का विशाल संग्रह है जो देखने योग्य है। यहां फोटो खींचना प्रतिबंधित है और प्रवेश से पूर्व अपने मोबाइल को लाकर में जमा करना होता है।
बीएचयू परिसर में ही नया विश्वनाथ मंदिर (New Vishwanath Temple) है, स्थानीय लोग इसे बिड़ला मंदिर के रूप में भी जानते है। यह मंदिर बनारस के प्रसिद्ध बाबा विश्वनाथ मंदिर से प्रेरित होकर बनाया गया है।
बेहद भव्य और आकर्षक इस मंदिर की ऊंचाई 252 फिट है, जो इसे भारत के सबसे ऊँचे मंदिरों में से एक बनाती है। नया विश्वनाथ मंदिर सफेद संगमरमर से बना हुआ है। यहां हमेशा ही भक्तों की भारी भीड़ देखी जा सकती है।
D. सारनाथ (Sarnath)
सारनाथ, वाराणसी से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह स्थान बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। गौतम बुद्ध ने अपना पहला उपदेश सारनाथ में ही दिया था, इसे धर्म चक्र प्रवर्तन कहते हैं।
यह स्थान बौद्ध धर्म के चार तीर्थ स्थानों में से एक है, बाकी तीर्थ स्थान हैं -लुंबिनी, बोधगया और कुशीनगर। सारनाथ में महान सम्राट अशोक ने कई स्तूप बनवाए थे, उन्होंने यहां प्रसिद्ध अशोक स्तंभ का निर्माण भी करवाया था। उल्लेखनीय है कि इन स्तंभों पर बने चार शेर आज भारत का राष्ट्रीय चिन्ह है। वहीं स्तंभ के चक्र को भारतीय राष्ट्रीय ध्वज में देखा जा सकता है।
सारनाथ में आप डियर पार्क देख सकते हैं। डियर पार्क में स्थित धम्मेक स्तूप वो जगह है, जहां पर गौतम बुद्ध ने "आर्य अष्टांग मार्ग" का संदेश दिया था।
सारनाथ म्यूजियम में खुदाई के दौरान मिली शिल्पकृतियों को रखा गया है। सारनाथ में आप बौद्ध धर्म के अनुयायियों वाले चीन , जापान, कोरिया आदि देशों के बनवाये बौद्ध मंदिर भी देख सकते हैं।
E. चुनार फोर्ट (Chunar Fort) -
बनारस में घूमने की यह जगह शहर से दूर अवश्य है परन्तु सबसे आकर्षक स्थलों में से एक है, चुनार का किला शहर से 40 किलोमीटर दूर गंगा नदी के तट पर स्थित है। किला 34000 वर्ग फुट में फैला हुआ है. इस किले का निर्माण उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने अपने भाई भरथरी के लिए करवाया था।
चुनार फोर्ट, ऐतिहासिक रूप से उल्लेखनीय है, हुमायूँ और शेरशाह के बीच युद्ध के दौरान एक महत्वपूर्ण स्थान के रूप में इसका उल्लेख है। किले का गढ़ वाला हिस्सा जिसमें तोपें हैं, आज भी देखे जा सकते हैं। चुनार फोर्ट की वास्तुकला स्पष्ट रूप से आगरा के किले से मेल खाती है।
F. नेपाली मंदिर (Nepali Temple)
इस मंदिर को नेपाल के राजा ने उन्नीसवीं सदी में बनवाया था, यहां भगवान शिव की पूजा की जाती है। मंदिर को पारंपरिक वास्तुकला का प्रयोग करते हुए लकड़ी व पत्थर से बनाया गया है और यहां टेराकोटा की नक्काशी से बनी है।
यह मंदिर काठमांडू, नेपाल स्थित पशुपतिनाथ मंदिर से मिलता जुलता है। नेपाली मंदिर ललिता घाट पर मणिकर्णिका घाट से 100 मीटर दक्षिण में स्थित है। इसे नेपाल के राजा राणा बहादुर शाह ने वाराणसी में अपने निर्वासन के दौरान बनवाया था।
G. रामनगर का किला (Ramnagar Fort Varanasi)
बनारस में घूमने की जगह की सूची में रामनगर किला का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है। 1750 ई. में बनारस के राजा ने रामनगर का किला बनवाया था, 18 वीं शताब्दी के बाद से यह काशी नरेश का घर रहा है और वर्तमान में महाराजा अनंत नारायण सिंह किले में निवास कर रहे हैं।
इसका निर्माण लाल पत्थरों से किया गया है, किले में 4 फाटक हैं जिसमें पूर्वी दिशा में बना लाल दरवाजा इसका मुख्य द्वार है। इस किले में दो बड़े आंगन है जिसमें पहला लाल दरवाजे के बाद तथा दूसरा झंडा द्वार के बाद है जिसमें रामनगर की प्रसिद्ध रामलीला का मंचन किया जाता है।
यहां की रामलीला बहुत प्रसिद्ध है, दशहरा त्योहार के समय यहां खूब रौनक होती है। इस अवसर पर रेशमी और जरी में सुसज्जित वेशभूषा में काशी नरेश की सवारी हाथी पर निकलती है और साथ में एक लंबा जुलूस होता है।
यहां पर रामलीला का मंचन पूरे एक महीना चलता है और उसका उद्घाटन काशी नरेश करते हैं दशहरा के समय आप वाराणसी घूमने आते हैं तो रामनगर की रामलीला का आनंद जरूर उठाएं यह शाम से रात तक चलता है।
रामनगर किले के भीतर एक संग्रहालय है, जिसे देखने के लिए प्रति वयस्क 75/- का टिकट लगता है। इस संग्रहालय में तलवार, कपड़े, पालकी और अन्य ऐतिहासिक कलाकृतियों के साथ प्राचीन समय में उपयोग की जाने वाली विभिन्न प्रकार की बंदूकों का बड़ा संग्रह आप देख सकते हैं। इस म्यूजियम में फोटोग्राफी प्रतिबंधित है।
H. वाराणसी के प्रसिद्ध व्यंजन (Famous Food Of Varanasi) -
बनारस शहर जितना धर्म प्रेमियों और आध्यत्मिक लोगों का प्रिय है, वैसा ही यह स्वाद के प्रेमियों को भी अपने विविध और विशिष्ट व्यंजनों से आकर्षित करता है। सोचिये जिस बनारस शहर के नाम में ही रस है उसके पकवानों में कितना स्वाद होगा।
अपने खानपान की पुरातन परम्पराओं और संस्कृति को बरकरार रखते हुए यह शहर अपने स्वादिष्ट व्यंजनों के लिए प्रसिद्द है। बनारस आने के बाद आप यहां का स्ट्रीट फ़ूड जरूर चखना चाहेंगे और एक बार आपने इनका स्वाद ले लिया तो बार-बार इन्हें खाने के लिए बनारस आना चाहेंगे। आइये जानते हैं यहां के कुछ फेमस फूड आइटम्स के बारे में -
1. कचौरी सब्जी और जलेबी -
बनारस की कचौरी सब्जी और जलेबी फेमस है। यहां की कचौरी, बनारस के बाहर के लोगों को पूरी की तरह लग सकती है, इसके साथ आलू और कद्दू की सब्जी परोसी जाती है। बनारस में सुबह-सुबह कचौड़ी-सब्जी खाने का मजा ही कुछ और है साथ ही जलेबी के साथ इसका स्वाद और भी बढ़ जाता है।
बनारस के लंका क्षेत्र में में स्थित "चाची की दुकान", कचौड़ी-जलेबी के लिए मशहूर है। यहां की कचौरी में आपको हींग का तेज़ स्वाद मिलेगा। इस दुकान पर सुबह से ही लोगों की भीड़ लग जाती है और लोग लाइन में अपनी बारी का इंतज़ार करते हैं। परन्तु यहां टीन के डिब्बों में बैठकर खाना और देर तक इंतज़ार करना कुछ लोगों को इर्रिटेट अवश्य कर सकता है। दरअसल यह काफी पुरानी दुकान है और अभी भी उसी पुराने सिस्टम से चल रही है।
2. रबड़ी वाली लस्सी और ठंडाई -
वाराणसी की सबसे लोकप्रिय चीजों में शामिल है यहां की कुल्हड़ में सर्व की जाने वाली रबड़ी और मलाई वाली लस्सी। यहां रोड साइड की बहुत सी दुकानों में दही और रबड़ी की बड़ी सी थाली दिख जाती है। यहां पर मलाई और रबड़ी के साथ बनाई गई मीठे दही की लस्सी लाजवाब होती है। फेमस दुकान की बात करें तो लंका में चाची की दुकान के पास "पहलवान लस्सी" प्रसिद्द है, वैसे यहां इसी नाम से कुछ और लस्सी की दुकानें भी खुल गई हैं।
लस्सी के अलावा यहां की ठंडाई भी प्रसिद्द है। बनारस में स्ट्रॉबेरी, आम, चॉकलेट जैसे ठंडाई के बहुत से फ्लेवर हैं, यहां आप चाहें तो भांग वाली ठंडाई का भी मजा ले सकते हैं या मूल स्वाद के लिए साधारण ठंडाई को ही चुन सकते हैं। फ्लेवर और गिलास के साइज के आधार पर प्रत्येक ग्लास लस्सी या ठंडाई की कीमत 50 से 150 रूपये तक होती है।
3. बनारसी पान (Banarasi Paan)
बनारसी पान की चर्चा दूर दूर तक होती है। इस पर एक गाना भी बन चुका है -"खाई के पान बनारस वाला खुल जाए बंद अकल का ताला", यहां आपको पान की कई वैरायटी मिलेगी। मीठे मसाले वाले गुलकंद पान से लेकर जर्दे वाला स्पेशल पान यहां की पहचान है।
4. बनारसी मलइयो -
बनारसी मलइयो एक ऐसी मिठाई है, जिसे चखने के लिए आपको बनारस जाना होगा क्योंकि इस पर आज भी बनारस का एकाधिकार है। इसे बनाने की बेहद खास विधि है - दूध को चीनी के साथ उबालकर रात भर आसमान के नीचे ओस में रख दिया जाता है।
फिर इसमें ख़ास विधि से झाग तैयार किया जाता है, जिससे लाजवाब मलइयो तैयार होता है, यह मुँह में रखते ही घुल जाता है। क्योंकि यह ओस के मौसम में बनाई जाती है, इसलिए यह ज्यादातर सर्दियों के मौसम में मिलती है।
5. बनारसी चाट और कुल्हड़ वाली चाय -
बनारस में आप पालक चाट व टमाटर चाट का स्वाद ले सकते हैं. यहां गोदौलिया चौक पर काशी चाट भंडार की चाट प्रसिद्द है, यहां आपको चाट की बहुत सी वैरायटी मिलेगी। परन्तु यहां बहुत अधिक भीड़ होती है, इसी रोड पर चाट के अन्य स्टाल भी आपको मिल जाएंगे।
बनारस में कुल्हड़ में चाय पीने का एक अपना अलग ही मजा है। मिटटी की सोंधी खुशबू वाले कुल्हड़ में चाय का एक अलग ही स्वाद मिलता है। यहां चाय पीने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं और सर्दियों में चाय पीने के लिए दुकानों पर हमेशा भीड़ लगी रहती है।
I. बनारस कब जाएँ -
बनारस जाने के लिए अक्टूबर से मार्च तक का समय ठीक रहेगा। मार्च के बाद यहां की गर्मी में घूमना परेशानी भरा हो सकता है। वैसे भक्त गण साल भर यहां आते हैं, विशेषकर दक्षिण भारत से बहुत बड़ी संख्या में लोग यहां पहुंचते हैं। लगभग प्रत्येक मंदिर और घाट पर दक्षिण भारत से बड़े बड़े समूह में आये लोग यहां दिख जाते हैं।
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बनारस के मध्य भाग में ट्रैफिक का दबाव बहुत अधिक रहता है। यहां ज्यादातर इलेक्ट्रिक रिक्शा या ऑटो चलते हैं, जिन्हें स्थानीय लोग" टोटो "कहते हैं। बनारस को गलियों का शहर कहा जाता है और यहां की भारी भीड़ भाड़ वाली सड़कों में काफी शोर होता है।
J. बनारस में कहाँ रुकें -
गोदौलिया चौक शहर का मध्य भाग है और बाहर से आने वाले अधिकतर लोग यहां के होटलो में रुकना अधिक पसंद करते हैं, क्योंकि यहां से दशास्वमेध घाट और काशी विश्वनाथ मंदिर नजदीक पड़ता है।
परन्तु अगर आप गोदौलिया चौक या इसके समीप जंगमबाड़ी क्षेत्र में रुकते हैं तो ट्रैफिक की भारी भीड़ के अलावा ऑटो के नो एंट्री वाली परेशानी का सामना भी करना पड़ेगा। सुबह 9 से लेकर रात 9 बजे तक बैरियर लगाकर यहां की कुछ सड़कों में ऑटो की एंट्री बैन होती है, जिससे यात्रियों को अपना सामान लेकर रेलवे स्टेशन आने जाने में परेशानी हो सकती है। ट्रेन से आने वाले यात्रियों के लिए रेलवे स्टेशन के समीप सिगरा क्षेत्र के होटल या धर्मशाला में रुकना अधिक सुविधाजनक रहेगा।
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