Jai Santoshi Maa 1975 Movie-जय संतोषी माँ-इतिहास रचने वाली फिल्म
हिंदी फिल्मों के इतिहास में अनेक फिल्में सुपरहिट हुईं और कुछ ब्लॉकबस्टर भी रहीं जो अपनी लागत का कई गुना कमाने में सफल रहीं। शोले जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्म अपनी लागत से 12 गुना कमाने में सफल रहीं। लेकिन शोले के रिलीज़ वर्ष 1975 में ही बॉलीवुड में एक ऐसी भी फिल्म आई है, जिसने बॉक्स ऑफिस पर अपने बजट की 100 गुना कमाई की थी और आज तक इसका रिकॉर्ड कोई फिल्म नहीं तोड़ पाई। वह फिल्म थी ...एक कम बजट की भक्तिपूर्ण फिल्म "जय संतोषी माँ"
30 मई, 1975 को रिलीज़ हुई विजय शर्मा द्वारा निर्देशित यह फिल्म 5 लाख रुपये के कम बजट पर बनी थी और 5 करोड़ रुपये से अधिक की कमाई करने वाली ऑल टाइम ब्लॉकबस्टर साबित हुई थी और इसने इतिहास रच दिया। प्रारम्भ में इस फिल्म के 15 प्रिंट जारी किये गए थे, लेकिन बाद में डिमांड बढ़ने पर 300 प्रिंट और बनाये गए जिससे इसका बजट बढ़ा।
उस दौर में कोई भी फिल्म सम्पूर्ण भारत में एक साथ प्रदर्शित नहीं होती थी। रिलीज़ के समय पहले महानगरों के अलावा कुछ बड़े शहरों में फिल्म का प्रदर्शन होता था फिर कुछ दिनों बाद छोटे शहरों में उसे दिखाया जाता था। हो सकता है कुछ शहरों में इसे 15 अगस्त 1975 को प्रदर्शित किया गया हो, जोकि फिल्म शोले के प्रदर्शन की तारीख भी थी। इसलिए कई जगह इसकी रिलीज़ डेट शोले के साथ दर्शायी गयी है।
रिलीज़ के प्रारम्भिक तीन दिनों में फिल्म का कलेक्शन कुछ ख़ास नहीं था, परन्तु सोमवार से दूर दूर से आने वाले ग्रामीण दर्शकों की भीड़ देखकर सिनेमा मालिक अचम्भित रह गए। बॉलीवुड के लिए एक लो बजट फिल्म का इतना लोकप्रिय होना किसी करिश्मा की तरह था। इस फिल्म ने देवी संतोषी का प्रचार भारत के अलावा विदेश में भी किया और उनकी तस्वीरों व व्रत कथाओं का एक अलग से कारोबार विकसित हो गया।
वास्तव में जय संतोषी माँ फिल्म किसी चमत्कार जैसी थी और इसकी सफलता ने सभी को चौंका दिया। इसने न केवल बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचाया बल्कि दर्शकों के दिलोदिमाग पर जो जादू किया वैसा आजतक कोई भी फिल्म नहीं कर पाई। इसने बड़े बजट में बनी रमेश सिप्पी की शोले को कड़ी टक्कर दी, जो भारतीय सिनेमा की ब्लॉकबस्टर फिल्मों में से एक थी।
जिनका बचपन इमरजेंसी के दौरान बीता है उन्होंने इस फिल्म के जादू को स्वयं देखा है और इसके प्रभाव को अपने घर और आसपास महसूस किया है परन्तु बाद में जन्में लोग इसके बारे में नहीं जानते। इस आर्टिकल में आइये जानते हैं इस करिश्माई फिल्म से जुडी कुछ रोचक बातें।
फिल्म "जय संतोषी माँ "से जुड़ी कुछ रोचक बातें -
A. निर्माता निर्देशक व कलाकार -
1. जय संतोषी मां फिल्म के मुख्य कलाकार थे -अनीता गुहा, कानन कौशल, आशीष कुमार, बेला बोस, लीला मिश्रा और भारत भूषण .
निर्माता सतपाल रोहरा ने भाग्यलक्ष्मी चित्र मंदिर के बैनर तले इस फिल्म का निर्माण किया था। उनके द्वारा निर्मित फिल्मों में रॉकी मेरा नाम (1973), नवाब साहिब (1978), घर की लाज (1979) शामिल हैं।
2. निर्देशक विजय शर्मा ने जय संतोषी माँ के बाद जय महालक्ष्मी माँ (1976) का निर्देशन भी किया था, जो नहीं चल पाई। फिल्म निर्माता के रूप में वे दुश्मन जमाना (1992), जुआरी (1994) फिल्म लेकर आये थे। विजय शर्मा ने कई फिल्मों में अभिनय भी किया है जिनमें आलाप, नौकरी, खूबसूरत, धनवान, ये दिल्ल्गी, करीब जैसी फ़िल्में शामिल हैं।
3. फिल्म में संतोषी मां का टाइटल रोल, अनीता गुहा ने किया था। इससे पहले वह सीता मैया के रोल में फिल्म सम्पूर्ण रामायण (1961) में आईं थी। श्री राम भरत मिलाप (1965) और तुलसी विवाह (1971) सोलह शुक्रवार (1977), सती नागकन्या, नवरात्रि (1983) उनकी अन्य धार्मिक फ़िल्में हैं। इसके अलावा उन्होंने गूँज उठी शहनाई (1959), पूर्णिमा(1965), प्यार की राहें(1959) जैसी बहुत सी फ़िल्में की हैं। आखरी बार वे फिल्म लखपति (1991) में देखी गयीं।
फिल्म जय संतोषी माँ ने अनीता गुहा को वैसी ही प्रसिद्धि दिलाई थी जैसी रामायण सीरियल के सीता -राम यानी दीपिका चिखलिया और अरुण गोविल को मिली थी। लोग अनीता गुहा के घर के बाहर उनकी एक झलक पाने के लिए घंटों खड़े रहते थे। किसी समारोह में अनीता गुहा को देखते ही उनका चरण स्पर्श करते और अपने बच्चों के लिए आशीर्वाद मांगते।
4. फिल्म के नायक थे आशीष कुमार, इन्होंने बंगाली फिल्मों से अपनी एक्टिंग की शुरुवात की थी फिर बाद के दिनों में हिंदी धार्मिक फिल्मों से प्रसिद्ध हुए, इन्होने भगवान शिव और विष्णु की भूमिका बहुत सी फिल्मों में की थी। फिल्म जय संतोषी माँ से ये घर घर में लोकप्रिय हो गए।
आशीष कुमार की फिल्मों में द्वारकाधीश (1977), करवा चौथ, गंगा सागर (1978), राजा हरिशचन्द्र (1979), बद्रीनाथ धाम (1980), नवरात्रि (1983) शामिल हैं। इन्हें आखरी बार फिल्म रविदास की अमर कहानी (1983) में देखा गया था।
आशीष कुमार ने जय संतोषी माँ की सफलता से प्रेरित होकर सोलह शुक्रवार नामक फिल्म भी बनाई थी जो नहीं चली। इन्होने बेला बोस से विवाह किया था, बेला बोस ने जय संतोषी माँ फिल्म में दुर्गा नामक बुरी औरत का रोल किया था। इसके अलावा दोनों ने कुछ और फिल्मों में साथ साथ काम किया है।
5. इस फिल्म की नायिका सत्यवती के रूप में कानन कौशल थीं, जिन्होंने बहुत सी हिंदी और गुजराती फिल्मों में अभिनय किया है। उनकी हिंदी फिल्मों में सती सुलोचना, बिदाई, परदेशी, मेला आदि शामिल हैं।
जय संतोषी माँ की पटकथा लिखी थी पंडित आर. प्रियदर्शी ने, इन्होंने गंगा सागर, गायत्री महिमा, सोलह शुक्रवार, नवरात्रि, छठ मैय्या की महिमा जैसी बहुत सी फिल्मों की पटकथा व संवाद लिखे हैं। जय संतोषी माँ का छायांकन किया था सुधेंदु रॉय ने और कला निर्देशक थे हीराभाई पटेल।
B. गीत संगीत -
C. कहानी -
यहां यह उल्लेखनीय है कि फिल्म में संतोषी मां को "गणेश जी" की बेटी के रूप में दिखाया गया है, इसका पौराणिक कथाओं या अन्य ज्ञात ग्रंथों में कोई आधार नहीं है। इसके बावजूद फिल्म में संतोषी माँ जो गुड़-चने के प्रसाद और सोलह शुक्रवार के व्रत से खुश हैं, कम साधन -सुविधा वाले लोगों के साथ आसानी से जुड़ गई।
D. जनमानस पर विशेष प्रभाव -
1. फिल्म ने दर्शकों को बेहद प्रभावित किया, जब वे देखते हैं कि सत्यवती के उपवास के अंतिम शुक्रवार को संतोषी माँ दर्शकों के लिए खुद को उपलब्ध कराती है और संतोषी माता की मदद से सत्यवती अपने विरोधियों को ठीक कर देती है। यह सब देखना किसी घर जंजाल में फंसी निम्न मध्यवर्गीय पीड़ित महिला को एक "संतुष्टि" प्रदान करता है। इससे संतोषी माँ की पूजा प्रथा को जोर मिला।
फिल्म के प्रदर्शन के बाद संतोषी मां के अनेक मंदिर स्थापित किये जाने लगे साथ ही अन्य देवी देवताओं के मंदिरों में खाली पड़ी जगह में संतोषी माँ के मंदिर बनाये गए। यह एक नया ट्रेंड था। जैसा कि फिल्म में दिखाया गया था शुक्रवार के दिन बहुत से घरों में खट्टा खाना बंद कर दिया गया।जनमानस पर किसी फिल्म का इतना तीव्र प्रभाव इसके पहले या बाद में कभी नहीं देखा गया।
3. उस समय कम थिएटर होने के कारण लोग दूर दूर से इस फिल्म को देखने पहुँचते थे। ग्रामीण क्षेत्र के लोग बैलगाड़ियों में भर-भरकर पहुंचते और फिल्म देखने के लिए लम्बी लाइन लगाते थे। शुक्रवार के दिन इतनी भीड़ उमड़ती कि उसे संभालना सिनेमा मालिकों के लिए कठिन हो जाता।
4. जिन सिनेमाघरों में यह फिल्म प्रदर्शित की गयी थी उन्हें दर्शकों के लिए अस्थायी मंदिरों में बदल दिया गया। आपको बताते चलें, रायपुर के शारदा टॉकीज जहां यह फिल्म 1 साल से ज्यादा चली थी, थिएटर का नाम बदलकर शारदा मंदिर कर दिया गया।
थिएटर के बाहर संतोषी माँ फिल्म के गाने व व्रत की किताबों के साथ संतोषी मां की फ्रेम की हुई फोटो बेचीं जाती वहीं कुछ लोग वहाँ गुड़ चने का प्रसाद बांटा करते थे।
5. बहुत से सिनेमाघरों में दर्शक दरवाजे पर अपने जूते चप्पल छोड़कर सिनेमाघर में प्रवेश करते, इसके लिए अस्थायी जूता -चप्पल स्टैंड बनाये गए। इन्हें संभालने वाले लोगों ने खूब कमाई की, ऐसी ही कमाई सिनेमाहाल के सफाई कर्मियों ने की थी, जो दर्शकों द्वारा स्क्रीन पर फेंके गए सिक्कों को शो समाप्ति पर उठा लिया करते थे।
6. बहुत सी महिलाये अपने साथ फूल और आरती की थाली लेकर सिनेमाहाल में प्रवेश करती थीं। जैसे ही स्क्रीन पर अनीता गुहा, संतोषी माँ के रूप में आती थीं ऐसा लगता मानों देवी स्वयं प्रकट हुईं हैं। सिनेमाहॉल दर्शकों द्वारा लगाए गए माता के जयकारे से गूँज उठता फिर ये महिलाएं फूल समर्पित करते हुए आरती शुरू कर देती थीं।
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7. बॉलीवुड ने इस फिल्म की सफलता को दोहराने की बहुत कोशिश की थी। बहुत से फिल्म निर्माताओं ने उस दौर में संतोषी माता और उनकी की कथाओं पर फिल्म बनाकर सफलता चाही, परन्तु असफल रहे। बाद के दिनों में भी सन 2006 में नुशरत भरुचा को लेकर डायरेक्टर अहमद सिद्दीकी ने इसी टाइटल से इसका रीमेक बनाया था, लेकिन ये फिल्म बॉक्स ऑफिस में बुरी तरह से फ्लॉप रही थी।
8. फिल्म जय संतोषी मां का इतना प्रचार विदेशों में हुआ कि वहां के फिल्म समीक्षक और पत्रकार इसकी सफलता का कारण जानने भारत आये और उस पर स्टडी की। उन्होंने इसके सामाजिक-आर्थिक असर पर बाकायदा शोध पत्र लिखे हैं।
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