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Saturday, 6 August 2022

India's Most Difficult Religious Places-भारत के दुर्गम तीर्थ स्थल

 India's Most Difficult Religious Places-भारत के दुर्गम तीर्थ स्थल 

भारत में तीर्थ यात्रा का विशेष महत्व है, इसे मनुष्य की संकल्प शक्ति मजबूत करने के साथ मुक्ति का द्वार भी माना जाता है। प्राचीन समय से ही भारत के कोने कोने में स्थित पवित्र तीर्थों की यात्रा करना भक्तों का ध्येय रहा है और आज भी यह क्रम जारी है। 


   भारत के बहुत से तीर्थ बेहद दुर्गम स्थानों पर स्थित हैं। इन तीर्थस्‍थलों का रास्‍ता हजारों मीटर ऊंचे पर्वतों के बीच पथरीले रास्तों गुजरता है, इसके साथ ही यहां लैंड स्लाइडिंग और भारी वर्षा से उतपन्न खतरे भी होते हैं। इन तीर्थों में कठिन पैदल चढ़ाई, विषम जलवायु और खतरनाक मौसम होने के बावजूद हर साल धर्म प्रधान लोग भारी संख्या में जाते हैं।


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   विशेष बात यह है कि आस्था की शक्ति के कारण भक्तो की अधिक उम्र और शारीरिक परेशानियाँ भी तीर्थ यात्रा की राह में रोड़ा नहीं बन पाती है, इसके अनेक उदहारण देखे जा सकते है।  अत्यधिक ऊंचाई पर स्थित कुछ तीर्थों में वर्ष के कुछ ख़ास दिनों में ही दर्शन किया जा सकता है, शेष दिनों में बर्फ से ढंके होने के कारण उनके द्वार बंद रहते है।


   साल भर भक्तो को इन तीर्थों के द्वार खुलने का इंतज़ार रहता है फिर जैसे ही द्वार खुलते हैं, हजारों लाखों लोग यहां पहुंचने लगते हैं।  जिनमें से कई लोग कठिन चढ़ाई, ऊंचाई पर ऑक्सीजन की कमी व प्रतिकूल मौसम के कारण हार्ट फेल हो जाने से स्वर्ग सिधार जाते हैं। वहीं कुछ यात्री अपनी पुरानी गंभीर बीमारी के उग्र हो जाने के कारण तो कुछ घोड़ों व खच्चरों के संकरे रास्तों पर पहाड़ों से नीचे गिरने के कारण दम तोड़ देते हैं। 


   पिछले कुछ वर्षों में ऐसे दुर्गम तीर्थस्थलों में दुर्घटनाओं और प्राकृतिक आपदाओं का शिकार होकर असामयिक मौत होने की घटनाओं में वृद्धि हुई है। वास्तव में ऐसे स्थानों की भौगोलिक स्थिति मैदानी इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए बेहद कठिन होती है, इसलिए उनके मौत से गले लगने के पूरे चांस होते हैं। इसके बावजूद भक्तो का मनोबल कम नहीं होता और वे आस्था की डोर से बंधे चले जाते है। आइये जानते हैं, भारत के कुछ तीर्थों के बारे में जिन तक पहुंचना कठिन होता है।    


भारत के दुर्गम तीर्थ स्थल (India's Most Difficult Religious Places)


1. कैलाश मानसरोवर ( Kailash Mansarovar)


कैलाश मानसरोवर की यात्रा अन्य तीर्थों की तुलना में सबसे कठिन मानी जाती है। कैलाश मानसरोवर तिब्बत में स्थित है, जिस पर 1962 के युद्ध के बाद से चीन का कब्जा है। कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील यहाँ के प्रमुख आकर्षण हैं। पवित्र झील कैलाश मानसरोवर की कैलाश पर्वत से दूरी लगभग 20 किमी है।  


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  कैलाश पर्वत, तिब्बत के सुदूर दक्षिण-पश्चिमी भाग में स्थित है और यहाँ का दृश्य विहंगम है। यहीं से एशिया की ब्रह्मपुत्र जैसी प्रमुख नदियों का उद्गम होता है। अत्यधिक ऊंचाई पर होने के कारण यहां के बर्फीले दुर्गम रास्ते, यात्रा को अत्यधिक कठिन बना देते हैं। हालांकि मेडिकल जांच के बाद ही भक्तों को यात्रा की अनुमति दी जाती है लेकिन बुजुर्ग व्यक्ति के लिए यह जान का जोखिम लेने के अलावा कुछ नहीं है।


   कैलाश मानसरोवर की 28 दिन की यात्रा का एक बड़ा भाग चीन से होकर जाता है और वहां इस यात्रा को चीनी प्रशासन नियंत्रित करता है।  इस यात्रा में अभी तक इस्तेमाल होने वाला लिपुलेख दर्रे  को बहुत दुर्गम माना जाता रहा है, इस कारण सभी लोग अपनी यात्रा पूरी नहीं कर पाते थे। हालांकि अब उत्‍तराखंड से नाथुलादर्रे का मार्ग खोले जाने के बाद यह यात्रा कुछ आसान हो गई है, लेकिन फिर भी यह उतनी आसान नहीं है।


2.  अमरनाथ ( Amarnath Cave)


श्रीनगर के उत्तर-पूर्व में 135 किलोमीटर दूर यह तीर्थस्‍थल समुद्रतल से 13000 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। अमरनाथ एक दुर्गम और प्रमुख तीर्थस्थल है। वर्ष में कुछ दिनों के लिए ही अमरनाथ यात्रा खोली जाती है, शेष दिनों में यह पूरा स्थान बर्फ से ढंका होता है। इस गुफा में बर्फ से एक प्राकृतिक शिवलिंग का निर्माण स्वयं ही हो जाता है, जिसके दर्शन करने के लिए शिव भक्तो का तांता लगा रहता है।

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    जम्मू-कश्मीर राज्य में अमरनाथ की यात्रा बेहद कठिन होने के बाद भी यहां पहुंचने के उत्सुक लोगों की संख्या में अब वृद्धि देखी जा रही है। अमरनाथ यात्रा का अधिकांश मार्ग बेहद कठिन पहाड़ी रास्तों से होकर गुजरता है। चट्टानी पत्थरों से भरे मार्ग में एक ओर गहरी खाई होती है, यहां जरा सी चूक मौत का कारण बन सकती है। इसमें कई बार घोड़े व खच्चर भी संतुलन खोकर खाई में सवार सहित गिर पड़ते हैं।  


    यहां भारी ठंड पड़ने के साथ कभी भी होने वाली बारिश और भूस्‍खलन मानव की कठिन परीक्षा लेते हैं। यहां फिसलन भरे मार्ग व ऊंचाई पर ऑक्सीजन की कमी के कारण पैदल चलना आसान नहीं होता और थोड़ी देर चलने पर ही सांस फूलने लगती है। 


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  इस गुफा तक पहुंचने के दो मार्ग हैं -पहला मार्ग पहलगाम से है जो 36 km. लम्बा है, इसमें पहला पड़ाव चंदनबाड़ी है जो पहलगाम से 8 km. की दूरी पर है, दूसरा प्रमुख पड़ाव शेषनाग, चंदनवाड़ी से 14 km. है। शेषनाग से पंचतरणी 8 km. पर तीसरा पड़ाव मिलता है, यहां से अमरनाथ गुफा तक 5 km. बर्फीले मार्ग पर चलना होता है। इस मार्ग से यह यात्रा लगभग 5 दिनों की है।  


    दूसरा मार्ग बालटाल से है जो लगभग 15 km. लम्बा खड़ी चढ़ाई वाला है, जिसे तय करने के लिए शारीरिक और मानसिक मजबूती की जरुरत पड़ती है। पुरानी बीमारी वाले और कमजोर पैदल यात्री अक्‍सर इस यात्रा में हार्ट फेल के शिकार होते हैं। खच्चर पर यात्रा करने वाले कुछ लोग खच्चरों सहित खाई में गिरकर मारे जाते हैं।


    यह क्षेत्र आतंकवाद से प्रभावित है और सुरक्षा की दृष्टि से बहुत ही संवेदनशील है, इसलिए यात्रियों के सामान की पुलिस द्वारा जगह- जगह जांच होती है। यहां की यात्रा के लिए पहले पंजीयन कराना होता है, परन्तु  मौसम ज्यादा ही खराब होने पर यात्रा रोक दी जाती है। इस यात्रा मार्ग में लंगर की व्यवस्था होती है और भारतीय सेना के जवान श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए तैनात रहते हैं।


3. केदारनाथ मंदिर ( Kedarnath Temple)


उत्तराखण्ड के रुद्रप्रयाग जिले में मंदाकिनी के तट पर गढ़वाल हिमालय पर्वतमाला में केदारनाथ धाम स्थित है। ऋषिकेश से गौरीकुण्ड की दूरी 211 किलोमीटर है, यहां से 18 किलोमीटर की पैदल दूरी तय करके केदारनाथ धाम पहुंच सकते हैं। 8 वीं शताब्दी निर्मित यह प्राचीन मंदिर समुद्र तल से लगभग 3583 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। 


   केदारनाथ शिव मंदिर, बारह ज्योतिर्लिंग मंदिरों और पंच केदारों में से एक है और यह चारधाम पर्यटन सर्किट का सबसे प्रसिद्द मंदिर है।  केदारनाथ मंदिर के पीछे, केदारनाथ शिखर, केदार गुंबद और अन्य हिमालय की चोटियाँ हैं। 


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   वर्ष 2013, जून के महीने में यहां भयंकर प्राकृतिक आपदा आ चुकी है। उस समय ग्लेशियर टूटने और बादल फटने की वजह से पानी और पहाड़ों से टूटकर आये बड़े- बड़े पत्थरों ने भारी तबाही मचाई थी। इस जल प्रलय की वजह से मंदिर तो सुरक्षित रहा था परन्तु आस पास का क्षेत्र बाढ़ और मलबे से बुरी तरह प्रभावित हुआ था, इस कारण यात्रा रोकनी पड़ी थी। मार्गो को ठीक करके यात्रा सामान्य रूप से चालू करने में 4 वर्ष का समय लगा।


  इस मंदिर की पैदल यात्रा करने वालों को कहीं कहीं पर सकरे रास्ते और लोगों की भीड़ व आते जाते घोड़े और खच्चरों के बीच से रास्ता बनाते हुए गुजरना होता है। लम्बे चढ़ाई वाले पहाड़ी मार्ग और ऊंचाई पर सांस लेने में कठिनाई के कारण यह एक कठिन यात्रा बन जाती है और यात्री हृदयाघात के शिकार हो जाते हैं। 


   कोरोना काल के बाद भारी संख्या में भक्त केदारनाथ की यात्रा कर रहे हैं, इससे मृत्यु दर में भी वृद्धि हुई है। 2022 में अब तक केदारनाथ की यात्रा करते समय हृदयाघात से मरने वालों की संख्या 58 तक पहुंच चुकी है, जोकि चारधाम यात्रा में सर्वाधिक है। 


4.  गंगोत्री और यमनोत्री (Gangotri aur Yamunotri)


गंगोत्री और यमुनोत्री दोनों ही उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में है। यमनोत्री समुद्रतल से 3235 मी. ऊंचाई है और यहां देवी यमुना का मंदिर है। यहां कालिंदी पर्वत में  4421 मी. की ऊंचाई पर यमुना नदी का उद्गम स्थल है।दुर्गम चढ़ाई होने के कारण प्रत्येक श्रद्धालू इस उद्गम स्थल को देखने की हिम्मत नहीं जुटा पाता। यमुना धाम तीर्थ स्थल से सीधी खड़ी चढ़ाई करके यमुना उद्गम स्थल पहुंचा जा सकता है। 


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   इसी तरह गंगोत्री, गंगा नदी का उद्गम स्थान है। गंगाजी का मंदिर, समुद्र तल से 3042 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। भागीरथी के दाहिने ओर का परिवेश अत्यंत आकर्षक एवं मनोहारी है। यह स्थान उत्तरकाशी से 100 किमी की दूरी पर स्थित है। इस क्षेत्र में बर्फीले पहाड़ व ग्लेशियर, लंबी पर्वत श्रेणियां, खड़ी चट्टानें और संकरी घाटियां होने के कारण यह बेहद दुर्गम है।


5. माँ वैष्णो देवी मंदिर (Vaishno Devi Temple)


भारत के प्रमुख देवी मंदिरो में सर्वाधिक प्रसिद्द मंदिर त्रिकुटा की पहाड़ियों पर स्थित माँ वैष्णो देवी का है, जिसका बेस कैंप जम्मू से 48 Km. की दूरी पर कटरा नामक स्थान है। कटरा से इस गुफा मंदिर तक पहुंचने के लिए लगभग 16 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। इस मंदिर का द्वार संकरा व गुफानुमा है, जिसमें देवी दुर्गा के अवतार, माँ वैष्णो देवी की पूजा पिंडियों (प्राकृतिक रॉक संरचनाओं) के रूप में की जाती है।


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   कटरा से मंदिर तक के चुनौतीपूर्ण मार्ग पर अधिकांश भक्त अपनी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होने की कामना के साथ पैदल ही यात्रा करते हैं। कटरा बेस कैंप से यात्रा शुरू करने से पहले रजिस्ट्रेशन करवाना जरूरी है क्योंकि रजिस्ट्रेशन स्लिप के आधार पर ही मंदिर में दर्शन करने का मौका मिलता है। 


   मंदिर में पवित्र गुफा के अंदर मिठाइयां, मीठे भोज्य पदार्थ आदि में ले जाने की मनाही है। तीर्थयात्रियों को चढ़ावे के लिए इस प्रकार की वस्तुओं को खरीदने से बचना चाहिए। सुरक्षा कारणों से नारियल ले जाने की भी अनुमति नहीं है, पवित्र गुफा के निकट कहीं भी नारियल फोड़ने की इजाजत नहीं है, जैसा अन्य मंदिरों में आमतौर पर किया जाता है। 


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   कटरा से प्रमुख भवन के बीच कई पॉइंट्स हैं जिसमें बाणगंगा, चारपादुका, इंद्रप्रस्थ, अर्धकुवांरी,  हिमकोटी, सांझी छत और भैरो मंदिर शामिल है। इस यात्रा का मिड-पॉइंट अर्धकुंवारी है, यहां भी माता का मंदिर है जहां रुककर लोग माता के दर्शन करने के बाद आगे की 6 किलोमीटर की यात्रा करते हैं। 


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   1585 मीटर की ऊंचाई पर स्थित वैष्णो देवी मंदिर में हर साल लगभग 1 करोड़ भक्त माता के दर्शन करने आते हैं। भक्तों की अनियंत्रित भीड़ में भगदड़ मचने के कारण 1 जनवरी 2022 को यहां गंभीर हादसा हो चुका है, जिसमें 12 श्रद्धालु मारे गए थे और 13 घायल हुए थे। तब यात्रा रोकनी पड़ी थी, त्रिकुटा पर्वत पर आग के कारण भी यात्रा रोकी जा चुकी है।

 

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   वैष्णो देवी की यात्रा में ऊंचाई पर चढ़ने से होने वाली शारीरिक समस्याओं के अलावा भारी भीड़ के कारण दबाव से अपने को बचाना चुनौतीपूर्ण है। भीड़ से होने वाली घटनाओं को रोकने के लिए प्रशासन ने 2018 में बाणगंगा से अर्धकुंवारी के बीच नया रास्ता बनवाया है ताकि मौजूदा 6 किलोमीटर के रास्ते पर श्रद्धालुओं की भीड़ को कम किया जा सके, परन्तु इससे भी कोई विशेष फर्क नहीं पड़ा।  


6. पावागढ़ महाकाली मंदिर (Pavagadh Mahakali Temple) 


गुजरात राज्य के चंपानेर में पावागढ़ पहाड़ी अपने प्रसिद्ध महाकाली मंदिर के लिए देश भर में जानी जाती है जो समुद्र तल से लगभग 762 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। पावागढ़ पहाड़ी की शुरुआत प्राचीन गुजरात की राजधानी चंपानेर से होती है। पावागढ़ में 1,471 फुट की ऊंचाई पर "माची हवेली" है, यहां से रोपवे सुविधा उपलब्ध है। पैदल यात्रियों को मंदिर तक पहुंचने लिए लगभग 250 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं। 


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 इस दुर्गम पर्वत पर चढ़ाई बहुत कठिन है। चारों तरफ खाइयों से घिरे होने के कारण यहां हवा का वेग बहुत तेज़ रहता है, इसलिए इसे पावागढ़ कहते हैं। पावागढ़ पहाड़ी के शिखर पर स्थित, मंदिर का पैदल मार्ग घने जंगल के बीच से होकर गुजरता है।


   भारत के कठिन भौगोलिक परिस्थिति वाले स्थानों की यात्रा में मनुष्य की शारीरिक और मानसिक दृढ़ता की कठिन परीक्षा होती है। परन्तु सबका शरीर एक जैसा नहीं होता, इसलिए ऊंचाई पर कुछ दूर पैदल चलने पर ही जिनकी सांस फूलने लगे और परेशानी बढ़ने लगे तो ऐसे लोगों को खच्चर, पालकी आदि का सहारा लेना जरूरी हो जाता है अन्यथा उनकी जान पर बन सकती है। वर्तमान समय में बहुत से तीर्थों में रोपवे और हेलीकॉप्टर की सुविधाएं उपलब्ध हो चुकी हैं, जिनका भक्त गण लाभ उठा सकते हैं।


    यह भी आश्चर्यजनक रूप से सत्य है कि कुछ उम्रदराज और कमजोर शरीर वाले भक्त भी श्रद्धा और ईश्वर के प्रति अपनी आस्था के चलते यह यात्रा पैदल ही पूर्ण कर लेते हैं, यह किसी चमत्कार से कम नहीं है। मन में पैदल यात्रा करके तीर्थ तक पहुंचने की कामना लेकर जो भक्त पैदल चलकर ही अपनी यात्रा पूर्ण कर लेते हैं, उनकी संकल्प शक्ति में अभूतपूर्व वृद्धि होती है और दुर्गम स्थानों पर तीर्थों की स्थापना के पीछे हमारे मनीषियों की शायद सोच भी यही थी।    


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