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Wednesday, 1 June 2022

10 Best Hindi Movies Of All Time-हिंदी की10 बेहतरीन फ़िल्में

10 Best Hindi Movies Of All Time-हिंदी की 10 बेहतरीन फ़िल्में 

विश्व में सर्वाधिक फ़िल्में भारत में बनाई जाती हैं, विशेषकर बॉलीवुड में शुरुवात से लेकर अब तक फिल्मों तक का सफर बेहद रोचक रहा है, यहां शुद्ध मनोरंजन के लिए बनाई गई फिल्मों से लेकर प्रयोगधर्मी एवं कलात्मक सभी तरह की फ़िल्में बनी हैं। फिल्मकारों ने पौराणिक विषयों से लेकर पारिवारिक ड्रामा, कॉमेडी, हॉरर, एक्शन जैसी सभी विधाओं को आजमाया हैं। 


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    बॉलीवुड के अलावा दक्षिण के निर्माताओं ने में भी हिंदी फ़िल्में बनाई हैं, इनमें से कुछ फ़िल्में बॉक्स ऑफिस में सफल रहीं तो कुछ असफल। जो फ़िल्में दर्शकों के दिलों को छूने में कामयाब रहीं, उन फिल्मों की लिस्ट काफी लम्बी हैं। यहां हम 10 ऐसी शानदार फिल्मों की चर्चा करेंगे जिन्होंने हिंदी फिल्म के इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़ने में कामयाबी हासिल की है।

 

हिंदी की अवश्य देखने लायक 10 फ़िल्में (10 Best Hindi Movies To Watch)


1. मदर इण्डिया ( Mother India) 1957


1957 में बनी फ़िल्म मदर इंडिया न केवल सबसे बड़ी बॉक्स ऑफिस हिट बॉलीवुड फ़िल्मों में गिनी जाती है बल्कि इसका शुमार कला के दृष्टिकोण से बेहतरीन फिल्मों में होता है। फ़िल्म में नर्गिस, सुनील दत्त, राजेंद्र कुमार, राज कुमार  और कन्हैयालाल मुख्य भूमिका में हैं।  इस फिल्म को महबूब ख़ान द्वारा निर्देशित किया गया, जो कि उनकी ही फिल्म औरत (1940 ) का रीमेक थी।


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    यह फिल्म गरीबी से पीड़ित गाँव में रहने वाली औरत राधा की कहानी है जो बुरे जागीरदार की कुटिल चालों से बचने की कोशिश में कई मुश्किलों का सामना करते हुए अपने बच्चों का पालन पोषण करने की जद्दोजहद करती है। अनेक कठिनाइयों के बावजूद वह एक आदर्श भारतीय नारी के स्वरूप को स्थापित करती है और अंत में सामाजिक न्याय के लिए अपने बिगड़ैल बेटे को स्वयं मार देती है।


  संगीतकार नौशाद ने इस फिल्म में संगीत दिया है जो बेहद लोकप्रिय हुआ। यह फ़िल्म नरगिस के बेहतरीन अभिनय और अपने सांस्कृतिक मूल्यों के कारण एक यादगार फिल्म है। देश में कई पुरस्कार जीतने वाली इस फिल्म को विदेशी भाषा में बनी श्रेष्ठ फिल्म श्रेणी में भारत की ओर से आस्कर के लिए भेजा गया  था।  


   आस्कर की जूरी को फिल्म पसंद आई, फिल्म के तकनीकी पक्ष और निर्देशक द्वारा बनाई गई भावनात्मक लहर से चयनकर्ता प्रभावित थे। परंतु उन्हें यह बात खटक रही थी कि पति के पलायन के बाद महाजन द्वारा दिया गया शादी का प्रस्ताव वह क्यों अस्वीकार करती है, जबकि सूदखोर महाजन उसके बच्चों का भी उत्तरदायित्व उठाना चाहता है। शायद चयनकर्ता भारत के सांस्कृतिक मूल्यों से अनजान थे और भारतीय पक्ष उन्हें इन मूल्यों से परिचित करा पाने में असफल रहा।


2. गंगा जमुना (Ganga Jamuna)1961


दिलीप कुमार द्वारा लिखित और निर्मित गंगा जमुना अपराध ड्रामा फिल्म है, इसमें दिलीप कुमार (यूसुफ खान) के साथ वैजयंतीमाला और दिलीप के वास्तविक जीवन के भाई नासिर खान प्रमुख भूमिकाओं में हैं। गंगा जमुना, दिलीप कुमार द्वारा निर्मित एकमात्र फिल्म है। 


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   इस फिल्म में उत्तरी भारत के ग्रामीण अवध क्षेत्र के दो भाइयों, गंगा और जमुना की कहानी कही गई है। इसमें एक भाई परिस्थितिवश डकैत अपराधी बन जाता है और दूसरा एक पुलिस अधिकारी। कानून के रक्षक और विरोधी दोनों भाइयों की कश्मकश और प्रतिद्वंद्विता को बड़े ही मार्मिक ढंग से प्रस्तुत करती यह फिल्म अवधी बोली के उपयोग और अपने देहाती सेट्स के लिए भी उल्लेखनीय थी। 


  ढूंढों ढूंढों रे साजना ..... नैन लड़ जइहें ......जैसे बेहतरीन गीतों से सजी इस फिल्म को समीक्षकों और दर्शकों ने खूब सराहा। यह 1960 के दशक की सबसे बड़ी हिट फिल्मों में से एक थी और बॉक्स ऑफिस कलेक्शन के मामले में सबसे सफल 10 भारतीय फिल्मों में से एक है। फिल्म ने 3 फिल्मफेयर पुरस्कार अपने नाम करने के अलावा बहुत से अंर्तराष्ट्रीय पुरस्कार भी जीते थे। 


    यह फिल्म भारतीय सिनेमा में एक ट्रेंडसेटर थी और इसने कई फिल्म निर्माताओं को प्रेरित किया। गंगा के रूप में दिलीप कुमार के प्रदर्शन को भारतीय सिनेमा के इतिहास में बेहतरीन अभिनय प्रदर्शनों में से एक माना जाता है और इसके बाद आने वाले अमिताभ बच्चन जैसे बॉलीवुड अभिनेताओं की जमात इससे इंस्पायर्ड रही। पश्चिम में, सोफिया लॉरेन जैसे सितारे इस प्रदर्शन से काफी प्रभावित थे।


   फिल्म के कथानक ने पटकथा लेखक जोड़ी सलीम-जावेद को भी बहुत प्रेरित किया, जिन्होंने बाद में अमिताभ बच्चन-शशिकपूर अभिनीत हिट फिल्म दीवार (1975) में नायक को डकैत की जगह स्मगलर बनाकर समान विषय को प्रस्तुत किया। गंगा जमना के संवाद भी इस लेखक जोड़ी के दिलोदिमाग में छाये हुए थे, तभी दिलीप कुमार का फिल्म में नायिका को "अरी ओ धन्नों..." बुलाना , शोले के गब्बर का "अरे ओ साम्भा..."  बन गया और "धन्नों" हिरोइन का नाम न होकर उसकी घोड़ी का नाम हो गया। 


 3. वक्त (Waqt) 1965


"वक़्त" पारिवारिक ड्रामा पर आधारित बी आर चोपड़ा द्वारा निर्मित सुपरहिट फिल्म है, जिसका निर्देशन यश चोपड़ा ने किया है। फिल्म में सुनील दत्त, राज कुमार, शशि कपूर, साधना, शर्मिला टैगोर, अचला सचदेव और बलराज साहनी मुख्य भूमिकाओं में हैं।

 

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   इस फिल्म ने कई सितारों को साथ लेकर फिल्म बनाने की अवधारणा को मजबूत किया और इसके कथानक ने बॉलीवुड में बिछुड़ने और मिलने के फॉर्मूले को सफलतापूर्वक पेश किया, बाद में अन्य निर्माताओं ने इस फॉर्मूले को अपनाया।



   निर्देशक मनमोहन देसाई ने तो अपनी अमिताभ बच्चन अभिनीत अधिकतर फिल्मों में इसी कथानक को अपनाया और वे फ़िल्में सुपरहिट रहीं। जैसे - अमर अकबर एंथोनी, परवरिश, सुहाग आदि। 


    "वक्त" की सफलता में इसके संगीत का भी बड़ा योगदान रहा है। संगीतकार रवि की बनाई एक से बढ़कर एक धुनें आज भी लोगों द्वारा पसंद की जाती हैं।  फिल्म के लोकप्रिय गीतों में महेंद्र कपूर और आशा भोसले द्वारा गाया गया गीत "हम जब सिमट के.....", मोहम्मद रफी द्वारा गाया गया - "वक्त से दिन और रात......., आशा भोसले का गाया हुआ "आगे भी जाने ना तू....और "ऐ मेरी जोहरा जबीं ..." जिसे मन्ना डे ने गाया और बलराज साहनी व अचला सचदेव पर फिल्माया गया, आज भी बेहद लोकप्रिय है। 


    इस मनोरंजन से भरपूर फिल्म को राजकुमार की दमदार संवाद अदायगी के कारण भी याद किया जाता है, जिन्हें इस फिल्म के लिए बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया था। साथ ही इस फिल्म को बेस्ट डायरेक्टर, बेस्ट स्टोरी व बेस्ट सिनेमेटोग्राफर का फिल्म फेयर पुरस्कार भी प्राप्त हुआ था। बाद में इस फिल्म का तेलगु और मलयालम में रीमेक भी किया गया था। 


4. आनंद (Anand) 1971 


यह भारतीय सिनेमा के उत्कृष्ट फिल्म निर्देशक हृषिकेश मुखर्जी की फिल्म थी, जिसमें सुपर स्टार राजेश खन्ना ने जानलेवा बीमारी से पीड़ित एक जिंदादिल इंसान की भूमिका निभायी थी, जो हर पल खुशी से गुजारता है और लोगों के चेहरे पर मुस्कान लाता है। यह फिल्म लीक से हटकर होने के बाद भी सफल रही।


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   इस फिल्म में राजेश खन्ना ने अपनी भूमिका को इतनी पूर्णता से निभाया कि फिल्म खत्म होने पर दर्शक अपने आंसू नहीं रोक पाए। इसमें सहायक भूमिका में अमिताभ बच्चन थे, जिन्हें इस फिल्म से एक नई पहचान मिली। इस फिल्म लिए राजेश खन्ना को बेस्ट एक्टर और अमिताभ बच्चन को बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला साथ ही फिल्म ने बेस्ट फिल्म, बेस्ट डायलॉग, बेस्ट स्टोरी, बेस्ट एडिटिंग का फिल्मफेयर पुरस्कार भी अपने नाम किया। 


   आनंद को उस वर्ष की बेस्ट फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला था। हृषिकेश मुखर्जी की यह फिल्म अपनी भावनात्मक कथा और सटीक निर्देशन के कारण दर्शकों का मनोरंजन करने में सफल रही। इसमें तकनीकी उत्कर्ष और कैमरा ट्रिक्स दिखाने की जगह निर्देशक ने कहानी पर फोकस रखा। 


 हृषिकेश मुखर्जी की फिल्मों में पारिवारिक कहानी होती थी जिसे वे अपनी ख़ास शैली में दर्शकों के सामने प्रस्तुत करते थे; इनकी अन्य फिल्मों में गुड्डी (1971), बावर्ची (1972), अभिमान, नमक हराम (1973), चुपके चुपके (1975), गोलमाल (1979), और खूबसूरत (1980) शामिल हैं।


5. शोले (Sholay) 1975  


भारतीय सिनेमा की सबसे सफल फिल्मों में शोले एक माइलस्टोन है। वास्तव में बॉलीवुड की ब्लॉकबस्टर फिल्मों के इतिहास की चर्चा इस फिल्म के बिना अधूरी है। धर्मेंद्र, अमिताभ बच्चन, संजीव कुमार, हेमा मालिनी, जया भादुड़ी और अमजद खान की मुख्य भूमिकाओं के साथ, शोले ने बॉक्स-ऑफिस पर हर रिकॉर्ड तोड़ दिया और अभी भी मनोरंजन करने में सफल है।


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   सलीम जावेद द्वारा लिखी और रमेश सिप्पी के निर्देशन में बनी इस फिल्म का प्रभाव इतना गहरा है कि फिल्म का हर एक पात्र आज तक याद किया जाता है। चाहे वह गब्बर सिंह के रूप में अमज़द खान हों या सूरमा भोपाली की छोटी सी भूमिका में जगदीप अथवा जेलर की भूमिका में असरानी। 


   इस फिल्म के संवाद बेहद लोकप्रिय हुए जो रिकार्ड्स व ऑडियो कैसेट पर जारी किए गए थे और हर फिल्म प्रेमी की जुबान पर चढ़ गए थे। विशेषकर डाकू गब्बर सिंह के डायलॉग, भारतीय सिनेमा के इतिहास में शायद पहली बार लोगों ने किसी खलनायक को इतना पसंद किया होगा। 


  पहले गब्बर वाली भूमिका डैनी करने वाले थे परन्तु डेट्स की समस्या के कारण वे यह फिल्म न कर सके। अंततः इस रोल को नवोदित अभिनेता अमजद खान द्वारा इतने अच्छे ढंग से निभाया गया कि वे बॉलीवुड में स्थापित हो गए।


  फिल्म बनने के दौरान उद्योग के अंदरूनी सूत्रों ने इस बड़े बजट की 70 मिमी फिल्म का चलना संदिग्ध बताया था और 15 अगस्त 1975 को रिलीज़ हुई इस फिल्म की शुरुवात भी कोई ख़ास नहीं थी। परन्तु बाद के दिनों में लोग फिल्म की ओर खिंचते चले गए और इसने कमाई के सारे रिकॉर्ड तोड़ डाले। देश के सभी प्रमुख शहरों में यह फिल्म महीनों-सालों तक चलती रही। 


  अमिताभ बच्चन को 70 के दशक का सुपरस्टार बनाने में मदद करने वाली फिल्मों में से एक "शोले" को कहा जा सकता है। इस फिल्म ने सिनेमैटोग्राफी और एक्शन दृश्यों में भी नए मानक स्थापित किए। इसका ट्रेन में फाइट वाला प्रारम्भिक सीन रोचकता से भरा हुआ है, वहीं पूरी फिल्म शानदार फोटोग्राफी के कारण और भी आकर्षक बन पड़ी है। 


6. उपकार (Upkar) 1967


उपकार, मनोज कुमार के निर्देशन में बनी पहली फिल्म थी, इस फिल्म ने देशभक्ति की भावना से परिपूर्ण फिल्मों की एक नई शैली की शुरुआत की। आगे चलकर मनोज कुमार ने इसी शैली को सफलतापूर्वक अपनाया और वे इसमें निपुण माने जाते थे, जिस कारण उन्हें 'भारत कुमार' का उपनाम मिला। इस फिल्म का गीत मेरे देश की धरती..... फिल्म रिलीज़ के 50 से अधिक वर्षों के बाद आज भी स्कूलों सहित देश भर के राष्ट्रीय समारोहों में बजाया जाता है।


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   इस फिल्म का विचार मनोज कुमार की एक और फिल्म शहीद (1965) के प्रीमियर पर उत्पन्न हुआ था। तब प्रधानमंत्री शास्त्रीजी ने मनोज कुमार को सुझाव दिया था कि उनके 'जय जवान, जय किसान' के नारे पर एक फिल्म बनाई जाए, जिसमें सैनिक के साथ-साथ किसान का गौरव गान हो। अपनी दिल्ली से मुंबई ट्रेन यात्रा के दौरान मनोज कुमार ने फिल्म की कथा तैयार की, गुलशन बावरा के गीतों और कल्याणजी आनंदजी की धुनों से सजी यह फिल्म सुपरहिट रही। इस फिल्म ने उस वर्ष फिल्म फेयर पुरस्कार की 7 विभिन्न श्रेणियों में अपना कब्ज़ा किया था। 


   इस फिल्म में मनोजकुमार के साथ आशा पारेख, प्रेमचोपड़ा और प्राण मुख्य भूमिकाओं में थे। प्राण के लिए यह फिल्म उनके करियर का टर्निंग पॉइंट थी। इस फिल्म में वे पहली बार अपनी विलेन की छवि से बाहर निकले और मलंग चाचा के रूप में लोगों ने उन्हें पसंद किया, इसके बाद उन्हें चरित्र भूमिकाएं मिलने लगीं। उन पर फिल्माया गया गीत कस्मे वादे प्यार वफ़ा .....आज भी संगीत प्रेमियों के दिलों को छू जाता है।


7. दुश्मन (Dushman)1972 


राजेश खन्ना के स्टारडम को चार चाँद लगाने वाली यह यह फिल्म साल 1972 की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्मों में शामिल थी। "दुश्मन" का निर्देशन दुलाल गुहा ने और निर्माण प्रेमजी ने किया था।


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    वीरेन्द्र सिन्हा के एक उपन्यास पर आधारित इस फिल्म में कानून और जेल व्यवस्था पर एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया है। फिल्म में ट्रक ड्राइवर राजेश खन्ना की ट्रक से दबकर एक व्यक्ति की मौत हो जाती है, दंडस्वरूप अदालत द्वारा उसे जेल भेजने की बजाय मृतक के परिवार की वित्तीय मदद और सेवा का काम दिया जाता है। 


   इस फिल्म में राजेश खन्ना के शानदार अभिनय के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिये फिल्मफेयर नामांकन मिला।  युवा वर्ग में उनका क्रेज और बढ़ गया यहां तक कि फिल्म में चोट लगने के बाद माथे पर उनका रुमाल बाँधने का स्टाइल भी लोग फॉलो करने लगे थे। मीना कुमारी, मुमताज़, रहमान, असित सेन, अनवर हुसैन और लीला मिश्रा फिल्म के अन्य कलाकार हैं। फिल्म का गाना "वादा तेरा वादा ......." और इसमें बिंदु का डांस उस समय बेहद लोकप्रिय हुआ था।


8. बॉबी (Bobby)1973 


बॉबी का निर्माण और निर्देशन राज कपूर ने किया है, इसमें उन्होंने अपने बेटे ऋषि कपूर को नायक के रूप में पहली बार प्रस्तुत किया, नायिका डिंपल कपाड़िया की भी यह पहली फिल्म थी। इस संगीतमय रोमांटिक फिल्म के साथ बॉलीवुड में टीनएज लव जॉनर की शुरुआत हुई थी।  इस फिल्म में अमीर नायक और गरीब नायिका की प्रेम कहानी को दर्शाया गया था, जिसे बाद के वर्षों में बॉलीवुड ने अपनी कई फिल्मों में दोहराया।


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  इस फिल्म को समीक्षकों और दर्शकों दोनों ने सराहा और यह 1973 की सबसे अधिक कमाई करने वाली ब्लॉकबस्टर बन गई।  मधुर संगीत से सजी इस फिल्म के गीतों ने सफलता के झंडे गाड़ दिए। झूठ बोले कौवा काटे ......  मैं शायर तो नहीं ........ हम तुम एक कमरे में बंद हों ....... जैसे गीतों को संगीत प्रेमियों ने खूब पसंद किया। 


   इस फिल्म के पहले राज कपूर की महत्वाकांक्षी फिल्म "मेरा नाम जोकर" बॉक्स ऑफिस पर पिट चुकी थी और अपने कर्ज़ों को खत्म करने के लिए उन्हें एक हिट फिल्म की सख्त जरूरत थी। उनके संगीतमय रोमांटिक फिल्म बनाने के ख्वाब को पूरा किया लेखक ख्वाजा अहमद अब्बास ने और संगीत दिया लक्ष्मीकांत प्यारेलाल की जोड़ी ने, इसमें शोमैन राजकपूर के निर्देशन ने कमाल कर दिया। 


    यह फिल्म सोवियत संघ में भी ब्लॉकबस्टर भी बन गई, जहाँ इसने 62.6 मिलियन दर्शकों को आकर्षित किया।  बॉबी, सोवियत संघ में अब तक की शीर्ष 20 सबसे बड़ी बॉक्स ऑफिस हिट फिल्मों में से एक बन गई। बॉबी डिंपल कपाड़िया की 1970 के दशक की पहली और एकमात्र फिल्म थी, क्योंकि उन्होंने 1980 के दशक में लौटने से पहले, राजेश खन्ना से शादी के बाद फ़िल्में करना छोड़  दिया था।  


9. नाचे मयूरी (Nache Mayuri)1986 


टी रामाराव के निर्देशन में बनी फिल्म "नाचे मयूरी" भरतनाट्यम नृत्यांगना सुधा चंद्रन की एक वास्तविक कहानी है, जिसने जून 1981 में त्रिची से चेन्नई जाते समय एक दुर्घटना में अपना पैर खो दिया था। कहानी दर्शाती है कि कैसे उसने एक कृत्रिम जयपुर पैर प्राप्त किया और अंततः कठिनाइयों  पर विजय प्राप्त करते हुए अपने नृत्य करने के सपने को पूरा किया।


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  यह फिल्म दर्शाती है कि मानव अगर दृढ निश्चय के साथ आगे बढ़े तो अपनी हर अक्षमता पर विजय प्राप्त कर सकता है और अंततः अपने जीवन में सफल हो सकता है। अपनी मोटिवेशनल वैल्यू के कारण बहुत से राज्यों ने इस फिल्म को टैक्स फ्री कर दिया था और फिल्म बॉक्स ऑफिस में रही। 


  अपने जीवन पर बनी इस फिल्म में स्वयं सुधा चंद्रन ने लीड रोल किया था, उनके साथ थे शेखर सुमन, अरुणा ईरानी और दीना पाठक।  फिल्म में संगीत दिया था लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने, जिसे लोगों ने बहुत पसंद किया।  


10. गैंग्स ऑफ वासेपुर(Gangs Of Wasseypur) 2012 


 अनुराग कश्यप द्वारा निर्मित और निर्देशित इस फिल्म की कहानी को दो भागों में प्रदर्शित किया गया था। इसमें धनबाद के कोयला माफिया और अपराध में लिप्त परिवारों के बीच अंतर्निहित सत्ता संघर्ष, राजनीति और प्रतिशोध को केंद्र में रखा गया है। फिल्म में मनोज बाजपेयी, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, पंकज त्रिपाठी, ऋचा चड्ढा, हुमा कुरैशी और तिग्मांशु धूलिया प्रमुख भूमिकाओं में हैं। 

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   फिल्म के दोनों भागों को ज्यादातर समीक्षकों की प्रशंसा मिली और वे व्यावसायिक रूप से सफल रहीं। फिल्म के गाने फिल्म के स्थानीय परिवेश के अनुसार देसी अंदाज़ में बनाये गए थे, जिन्हें दर्शकों ने खूब पसंद किया। इस फिल्म के एक्शन दृश्य बेहद प्रभावशाली हैं साथ ही निर्देशन की कुशलता और सभी पात्रों का बेहतरीन अभिनय फिल्म को दर्शनीय बनाता है। 


  विदेशी फिल्म समीक्षकों ने भी "गैंग्स ऑफ़ वासेपुर" को  बेस्ट गैंस्टर फिल्मों की सूची में रखा है, यहां तक कि इसकी तुलना "कोपोला" की "गॉडफादर" फिल्मों से की है।  बॉलीवुड फिल्म में ऐसे क्रूर चरित्रों को उनके कस्बाई परिवेश में देखना एक नया अनुभव देता है। फिल्म में गैंगस्टरवाद का पीढ़ी दर पीढ़ी टकराव का एक घना और नग्न चित्रण है। "गैंग्स ऑफ वासेपुर" बॉलीवुड सिनेमा में एक नई उपलब्धि है। 


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