Why Bollywood Movies Flop-बॉलीवुड फ़िल्में फेल क्यों हैं
बॉलीवुड फिल्मों की लगातार बॉक्स ऑफिस विफलता और साउथ में बनी की फिल्मों की अपार सफलता के कारण लोग सोचने लगे हैं कि क्या बॉलीवुड खत्म हो रहा है? और क्या बॉलीवुड ने अपना आकर्षण खो दिया है? आखिर इस बात में कितनी सच्चाई है?
वैसे रिकॉर्ड देखा जाए तो बॉलीवुड की सफल फिल्मों का प्रतिशत, फ्लॉप फिल्मों की तुलना में सदा से कम रहा है परन्तु आज के हालात कुछ ज्यादा ही बुरे हैं। हम देख रहे हैं कि दक्षिण भारत में बनी और हिंदी में डब की हुयी फिल्में देश विदेश में करोड़ों का बिज़नेस करके हजार करोड़ क्लब में शामिल हो रही हैं, वहीं बॉलीवुड की फिल्में अपनी लागत भी नहीं निकाल पा रही हैं।
हाल ही में फ्लॉप बॉलीवुड फिल्मों की लम्बी लिस्ट देखकर आपको इस बात का अंदाज़ा हो जाता है - बेल बॉटम, बंटी और बबली 2, अंतिम, सत्यमेव जयते 2, चंडीगढ़ करे आशिकी, तड़प, 83, बधाई दो, अटैक, जर्सी, रनवे 34 और हीरोपंती 2, जयेशभाई जोरदार, धाकड़ जैसी फिल्में दर्शकों को जरा भी प्रभावित नहीं कर सकीं और बॉक्स ऑफिस कलेक्शन में औंधे मुँह गिरीं।
आखिर क्या कारण है कि दर्शक बॉलीवुड फिल्मों से दूर होते जा रहे हैं और टॉलीवुड (दक्षिण भारतीय) फिल्मों को पसंद करने लगे हैं। विशेष बात यह है कि टॉलीवुड का दायरा अब क्षेत्रीय न होकर व्यापक होता जा रहा है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि दक्षिण भारतीय फिल्म उद्योग, बॉलीवुड पर हावी हो रहा है।
वास्तव में यह समय बॉलीवुड के लोगों को अपनी फिल्मों की समीक्षा करने के साथ उन कारणों के विश्लेषण करने का है, जिसके चलते फ़िल्में फ्लॉप हो रही हैं। आइये हम उन कारणों पर विचार करते हैं जिससे बॉलीवुड की फ़िल्में दर्शकों का मनोरंजन करने में सफल नहीं हो पा रही हैं और दर्शक इन्हें देखने के प्रति उत्सुक नहीं हो रहे हैं।
बॉलीवुड फ़िल्में फ्लॉप क्यों हो रहीं हैं (Why Bollywood Movies Flop)
1. कमजोर गीत संगीत -
अच्छा संगीत किसी फिल्म को सुपर हिट करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। परन्तु आज की फिल्मों में मधुर संगीत का अभाव दर्शकों को खटकता है, ऐसे में वे थिएटर जाकर फिल्म देखने के लिए उत्सुक नहीं हो पाते।
बॉलीवुड फिल्मों का इतिहास देखने पर पता चलता है कि बीते समय की अनेक फ़िल्में कहानी और निर्देशन में कुछ नया नहीं होने के बावजूद अपने अच्छे संगीत के कारण सुपर हिट रहीं है। पहले शंकर जयकिशन, ओ पी नैय्यर, कल्याणजी आनंदजी, खय्याम जैसे गुणी संगीतकार का नाम फिल्म से जुड़ा होना दर्शकों को सिनेमा हाल तक खींच लाता था और दर्शक यह कहते हुए हॉल से निकलता था कि सिर्फ गीतों से ही उसका पैसा वसूल हो गया।
परन्तु आज के अधिकतर गाने सुनकर दर्शकों का सर भन्नाने लगता है, संगीत का माधुर्य खो गया है और गीतकार भी कुछ अच्छा नहीं लिख पा रहे हैं। शायद यही कारण है कि निर्माता निर्देशक मजबूरी में ही सही पुराने गीतों को अपनी फिल्मों में जगह दे रहे हैं।
2. निर्माताओं की भेड़चाल -
बॉलीवुड भेड़चाल का बुरी तरह शिकार है। यहां किसी फिल्म के हिट होते ही उसी जॉनर की वैसी ही फ़िल्में बनाने की होड़ मच जाती है। जैसे कोई बायोपिक फिल्म, बढ़िया बिज़नेस कर लेती है तो निर्माता- निर्देशक बिना सोचे समझे बायोपिक फिल्में बनाना शुरू कर देते हैं। इसका परिणाम भी कोई अच्छा नही होता। जल्दबाज़ी में फिल्मकार, मनोरंजन के लिए आवश्यक तत्वों का समावेश पटकथा में नहीं कर पाते साथ ही कमजोर निर्देशन के कारण फ़िल्में लाइन से पिटने लगती हैं।
ऐसी एक बानगी देखिये - दंगल (2016) के सुपर हिट होने के बाद बायोपिक का दौर चल पड़ा। इसके बाद हिट फिल्म बनाने के लिए खोज खोजकर इतिहास के पन्नों से ऐसे पात्रों को निकाला गया, बिना इस बात का ध्यान रखे कि उनकी कहानी न तो सिनेमा माध्यम के अनुकूल है और न ही मनोरंजक है। इस तरह बे सिरपैर की फ़िल्में बनाई जाने लगी जिससे दर्शक ऊब गए और उन्होंने सिनेमा हाल से दूरी बना ली।
ऐसी फ्लॉप बायोपिक फिल्मों की लिस्ट में शामिल हैं -पूरना, एक थी रानी ऐसी भी, अज़ब सिंग की गज़ब कहानी, सचिन (2017), सूरमा, मंटो, राष्ट्रपुत्र (2018), मौलाना आज़ाद, ठाकरे, सांड की आँख (2019), शकुंतला देवी, गुल मकाई, गुंजन सक्सेना (2020), सत्य साई बाबा, साइना, 83 (2021) और झुंड, जय भीम (2022) आदि। इस बीच अच्छी पटकथा व निर्देशन वाली संजू (2018) और तान्हाजी (2020) जैसी एक्का दुक्का फ़िल्में जरूर सफल रहीं हैं।
3. अच्छी पटकथा और निर्देशन का अभाव -
निर्माताओं को इस बात को मानना होगा कि फिल्म के हिट होने में अच्छी पटकथा और चुस्त निर्देशन का होना आवश्यक है। ऐसा नहीं हो सकता कि क्रिकेट पर आधारित एम. एस. धोनी फिल्म के सफल होने से क्रिकेट पर बेस्ड कोई भी फिल्म बना दो और वो चल जाएगी, जर्सी और 83 का डरावना अनुभव सबके सामने है।
बॉलीवुड में स्टोरी स्क्रीनप्ले डिपार्टमेंट पर बहुत ध्यान देने की जरूरत है, इसके लिए लेखकों को उचित पारिश्रमिक देने के अलावा नए प्रतिभावान लेखकों को मौका मिलना चाहिए। बॉलीवुड को अब हॉलीवुड फिल्मों की कॉपी करने की जगह ओरिजिनल आईडिया जो हमारे परिवेश के अनुसार हो उस पर काम करना होगा।
अब कॉपी करने से काम नहीं चलेगा, हिंदी फिल्म दर्शक के सामने जब विदेशी फिल्म से कॉपी किए गए सीन दोहराए जाते हैं तो दर्शकों के लिए इसे स्वीकारना मुश्किल हो जाता है। हमारे फिल्म मेकर तो अब फिल्मों के पोस्टर भी कॉपी करने लगे हैं। बहुत सी फिल्मों के डायलॉग से लेकर एक्शन सीन तक चुराए हुए होते हैं।
बॉलीवुड में बड़े फिल्म निर्माता की सोच होती है कि जब वह बड़े बजट की फिल्म बना रहा है तो किसी बड़े स्टार का उसकी फिल्म में होना सफलता के लिए पर्याप्त है, जबकि ऐसा होता नहीं है। फिल्म की सफलता के लिए कहानी और निर्देशन पक्ष में बहुत बारीकी से काम करने की जरूरत होती है।
बॉलीवुड में एक दो निर्देशकों को छोड़ दिया जाए तो यहां कुशल निर्देशकों की कमी दिखाई पड़ती है। आजकल बड़े बजट की फिल्मों को डांस डायरेक्टर बना रहे हैं। कोरियोग्राफर से डायरेक्टर बने ये लोग नृत्य निर्देशन में माहिर होते हैं, परन्तु फिल्म के दृश्यों की बारीकियों पर ध्यान देना भूल जाते हैं। इस प्रकार कमजोर निर्देशन फिल्म की नैया कैसे पार लगा सकता है। हाल ही रिलीज़ हीरोपंथी 2 इस बात का उदाहरण है।
4. अंग्रेजियत का दुष्प्रभाव -
बॉलीवुड की एक बड़ी परेशानी इसका अंग्रेजी परस्त होना भी है। हिंदी फिल्मों से पैसे कमाने वाले कलाकार हिंदी बोलने की जगह अंग्रेजी में बाते करना अपनी शान समझते हैं और तो और इन्हें फिल्म की स्क्रिप्ट भी अंग्रेजी में चाहिए होती है।
ऐसे वातावरण में उन प्रतिभावान कलाकारों को बड़ी परेशानी होती है, जो छोटे कस्बों से यहां आते हैं। वे सेट पर भौचक रह जाते हैं जब डायरेक्टर और असिस्टेंट डायरेक्टर उनसे अंग्रेजी में गिटपिट करते हैं और उनके पल्ले कुछ नहीं पड़ता। बॉलीवुड की अंग्रेजी के प्रति दीवानगी वाली इस बात का जिक्र नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने अपने इंटरव्यू किया है।
हिंदी में फ़िल्में बनाना है तो हिंदी का सम्मान भी करना होगा। वरना फिल्म तो हिंदी की होगी परन्तु उसकी आत्मा कुछ और होगी इस कारण फिल्म का दर्शकों के दिलों तक पहुंचना मुश्किल होगा।
5. रीमेक में भी फेल -
जैसे ही साउथ में कोई फिल्म हिट होती है, वैसे ही बॉलीवुड के निर्माता निर्देशकों के बीच उसका रीमेक बनाने की होड़ मच जाती है। पैसे बनाने की फ़िराक में लगे इन निर्माताओं को इस बात का भी होश नहीं होता कि उस फिल्म की विषयवस्तु, हिंदी फिल्म दर्शकों के अनुकूल नहीं है और उसे केवल क्षेत्रीय दर्शकों की रूचि को देखकर बनाया गया था।
फलस्वरूप ऐसी फ़िल्में साउथ में तो बड़ी हिट होती हैं परन्तु उनका हिंदी रीमेक बुरी तरह फ्लॉप साबित होता है। "जहां जाए भूखा वहां पड़े सूखा" मुहावरे की तर्ज़ पर बॉलीवुड वाले जब साउथ की फिल्मों का रीमेक करते समय उसे अच्छा बनाने के लिए जो चेंज करते हैं, उससे फिल्म बेहतर होने बजाय और बुरी हो जाती है, नतीजे में फिल्म सुपर फ्लॉप साबित होती है।
ऐसी कुछ फिल्मों की बानगी देखिये -प्रियदर्शन की कॉमेडी ड्रामा मलयालम फिल्म Vellanakalude Nadu की अक्षय कुमार स्टारर खट्टा मीठा, वेंकटेश की तेलगु सुपरहिट फिल्म Kalisundam Raa जिसने उस वर्ष की बेस्ट तेलगु फिल्म का नेशनल अवार्ड भी जीता था, की रीमेक कुछ तुम कहो कुछ हम, जिसके हीरो फरदीन खान थे बुरी तरह फ्लॉप रही।
तमिल ब्लॉकबस्टर कॉप ड्रामा Saamy की रीमेक संजय दत्त स्टारर पुलिसगिरी फ्लॉप रही। सुपरहिट मलयालम फिल्म Kadha Parayumbol की रीमेक बिल्लू, शाहरुख़ खान स्टारर होने के बावजूद फ्लॉप रही। जॉन अब्राहम की फ्लॉप फिल्म फोर्स, गौतम मेनन की तमिल हिट Kaakha Kaakha पर आधारित थी।
इतना सब होने पर भी बॉलीवुड, टॉलीवुड का पिछलग्गू बना हुआ है और रीमेक थोक के भाव में फ्लॉप होने के बावजूद, धड़ाधड़ रीमेक बन रहे हैं। बॉलीवुड के सभी हीरो इन रीमेक फिल्मों को कर रहे हैं। भविष्य में आने वाली, साउथ फिल्मों की होने वाली रीमेक फिल्मों की लिस्ट देखिये -
तमिल ब्लॉकबस्टर विक्रम वेधा को ऋतिक रोशन और सैफ अली खान के साथ बनाया जा रहा है मूल फिल्म में आर माधवन और विजय सेतुपथी ने अभिनय किया था। अजय देवगन, प्रोड्यूसर दिल राजू के साथ तेलगु फिल्म नाँधी की रीमेक बना रहे हैं। मलयालम में 2019 बनी सर्वाइवल स्टोरी फिल्म हेलेन में जान्हवी कपूर लीड रोल कर रही हैं।
निर्देशक शंकर की तमिल ब्लॉकबस्टर Anniyan (2005) की हिंदी रीमेक, रणवीर सिंग को लेकर बनाई जा रही है। निर्माता बोनी कपूर तमिल हिट कोमाली की रीमेक अर्जुन कपूर को लेकर बना रहे हैं। रोहित धवन, अल्लू अर्जुन की तेलगु ब्लॉकबस्टर फिल्म की रीमेक शहज़ादा, कार्तिक आर्यन को लेकर बना रहे हैं।
सोचने वाली बात यह है कि जब टॉलीवुड खुद अपनी फिल्मों को हिंदी में डब करके ला रहा है तब उन फिल्मों की रीमेक को लोग क्यों देखेंगे। अगर हिंदी में डब साउथ की फिल्म थिएटर में नहीं भी पहुंचती, तो वह थोड़े दिनों में यूट्यूब पर उपलब्ध हो जाती है। वहां बड़ी संख्या में दर्शक उसे देख लेते हैं स्वाभाविक रूप से ऐसी फिल्मों की रीमेक फ्लॉप हो जाती है।
6. टॉलीवुड से तगड़ा कॉम्पीटिशन -
पहले हिंदी फिल्म दर्शकों के सामने बॉलीवुड के अलावा कोई विकल्प नहीं था, बॉलीवुड निर्माता यह मान कर चलते थे कि हिंदी फिल्मों के शौक़ीन, हमारी बनाई फिल्मों को देखेंगे ही। हिंदी फिल्म दर्शकों के सामने कोई विकल्प न था। परन्तु पहले बाहुबली और अब पुष्पा, RRR व KGF2 के बाद यह मिथक टूट गया है साथ ही टॉलीवुड शुद्ध मनोरंजन से भरपूर फ़िल्में देकर बॉलीवुड का मजबूत विकल्प बनकर उभरने में सफल रहा है।
वास्तव में लम्बे समय से बॉलीवुड, दर्शकों को भरपूर मनोरंजन वाली मसाला फ़िल्में परोसने में चूक रहा था। जबकि ऐसी फ़िल्मेों का एक बड़ा दर्शक वर्ग है, दर्शकों की इस चाहत को टॉलीवुड के निर्माता निर्देशकों ने पूरा किया और दर्शक ऐसी फ़िल्में देखने के लिए टूट पड़े।
अब टॉलीवुड के नायकों को हिंदी बेल्ट दर्शक भी जानने लगे हैं। पहले जहां दक्षिण के रजनीकांत जैसे कुछ ही नायकों से हिंदी दर्शक परिचित थे वहीं आज अल्लू अर्जुन, प्रभास, थलापति विजय, रामचरण जैसे बहुत से हीरो, हिंदी दर्शकों के बीच लोकप्रिय हो चुके हैं। आज बॉलीवुड भौचक्का होकर यह सब देख रहा है।
दरअसल दक्षिण की फिल्मों में रोमांस, एक्शन, ड्रामा, कॉमेडी, डांस जैसे मनोरंजन के सभी तत्वों को बड़ी चतुराई के साथ कहानी में गूँथा जाता है। जिससे दर्शक संतुष्ट होकर सिनेमा हॉल से निकलता है और वे फ़िल्में सफल होती हैं। बॉलीवुड लम्बे समय से इस कला को भूल चुका है उसका ध्यान केवल सीक्वल बनाने और साउथ की फिल्मों का रीमेक करने में केंद्रित है।
साउथ में मसाला फ़िल्में बहुतायत में बनाई जाती हैं, लेकिन वहां मल्टी जॉनर फ़िल्में जैसे- एक्शन कॉमेडी इमोशन, एक्शन रोमांस इमोशन, रोमांस कॉमेडी इमोशन, कॉमेडी ड्रामा फैमिली, हॉरर कॉमेडी थ्रिल, एक्शन थ्रिल इमोशन, कॉमेडी इमोशन ड्रामा, पीरियड ड्रामा रोमांस की फ़िल्में भी सफलतापूर्वक बनाई जाती हैं और दर्शकों द्वारा पसंद की जाती हैं।
साउथ के फिल्म मेकर अपने सांस्कृतिक वातावरण का पूरा ध्यान रखते हुए फिल्म बनाते हैं। वे फिल्म के सभी डिपार्टमेंट चाहे वह कथा- पटकथा हो, कैमरा वर्क, एक्शन, डांस या VFX हो सभी पर बारीकी से काम करना पसंद करते हैं। टॉलीवुड को वैसे भी अनुशासित फिल्म इंडस्ट्री माना जाता है।
7. ओटीटी के प्रति झुकाव -
ओटीटी का आगमन एक और कारक है जो दर्शकों को औसत दर्जे की बॉलीवुड फिल्म देखने के लिए सिनेमा हॉल जाने से दूर रखता है। आज फिल्म के दर्शक मल्टीप्लेक्स में ज्यादा पैसे देकर फिल्म देखने की बजाय चार सप्ताह के भीतर अपनी सुविधानुसार ओटीटी पर फिल्म देखना पसंद करने लगे हैं।
ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर ऐसे कंटेंट परोसे जा रहे हैं जो दर्शकों का भरपूर मनोरंजन कर रहे हैं। रोचक वेब्सीरिज़ के साथ, बहुत सी बॉलीवुड फिल्मों का सीधे इन प्लेटफार्म में रिलीज़ किया जाना इसे और बढ़ावा दे रहा है।
अब जो दर्शक मेन स्ट्रीम की फिल्मों से हटकर फिल्म देखना चाहते थे उन्हें सिनेमा हॉल जाकर फिल्म देखने की मजबूरी नहीं रह गई है क्योंकि वे जानते हैं कि थोड़े दिनों बाद वे उस फिल्म को ओटीटी पर देख सकते हैं। ओटीटी से बचा हुआ दर्शक वर्ग मनोरंजन से भरपूर मसाला फ़िल्में देखना पसंद करता है, हम पहले ही बता चुके हैं ऐसे दर्शकों का एक बड़ा वर्ग अब साउथ की फ़िल्में देखने लगा है।
8. बॉलीवुड कलाकारों की बिगड़ती इमेज -
निजी जीवन में बॉलीवुड हीरो- हेरोइन ऐसी हरकतें कर रहे हैं जिससे उनकी छवि लोगों के बीच खराब होती जा रही है। पहले सुशांत केस में बॉलीवुड दिग्गजों की ख़ामोशी फिर नेपोटिस्म का विवाद छिड़ने से बॉलीवुड में छवि का संकट गहराया। दर्शकों ने ऐसी फिल्मों को रिजेक्ट करना शुरू किया जिसमें हीरो, अभिनय में जीरो था परन्तु केवल किसी बड़े निर्माता का पुत्र होने के कारण उसे लांच किया गया।
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बॉलीवुड के नशेड़ी गैंग ने इसे बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। सुशांत केस के तुरंत बाद ड्रग्स मामले में बहुत से बॉलीवुड सेलिब्रिटी का नाम जुड़ने, नशीले पदार्थ बरामद होने और इनमें से कुछ की गिरफ्तारी से लोग इनसे कटने लगे साथ ही इन स्टार्स की फैन फॉलोविंग्स कम होने लगी। लोगों को लगने लगा कि ये चरसी, गंजेड़ी और कोकीन प्रेमी बॉलीवुड के लोग उनके आदर्श नहीं हो सकते।
इनकी छवि बिगड़ने का एक कारण इनका टीवी में ऊलजलूल विज्ञापन करना भी है। टीवी में इतने अधिक विज्ञापन ये लोग करने लगे हैं कि दर्शक अब इनसे ऊबने लगे हैं और बड़े पर्दे पर इन हीरो की फ़िल्में देखने की उत्सुकता खत्म होने लगी है।
लोगों ने इस बात को महसूस किया कि इनकी कथनी और करनी में बड़ा फर्क है। जहां एक तरफ बॉलीवुड के सुपर स्टार्स तम्बाकू सेवन से दूर रहने की बात करते हैं वहीं पैसे के लिए ये लोग स्वास्थ्य के लिए हानिकारक पान मसाला का विज्ञापन "जुबां केसरी" करने से नहीं चूकते। कभी ये सुगंधित इलायची बेचते नज़र आते हैं, ये जानते हुए भी कि जिस सुगंधित इलायची का ये विज्ञापन कर रहे हैं वास्तव में उस कम्पनी का मुख्य प्रोडक्ट पान मसाला है।
अब तो गाहे बगाहे बॉलीवुड कलाकारों के बयानों से देश विरोध की बू आने लगी है। मोदी सरकार आने के बाद समुदाय विशेष के कलाकारों ने अपने बयानों में कहा कि वे भारत में अपने आपको सुरक्षित महसूस नहीं करते। इस तरह के स्टेटमेंट से लोगों को लगा कि ये कैसे हीरो हैं जो अपने देश का सम्मान करना तक नहीं जानते, फिर ये लोग यहां टिके क्यों हैं।
अंत में ........हम चाहेंगे की बॉलीवुड सलामत रहे, इसने हमें पूर्व समय में बेहतरीन फ़िल्में दी हैं और हमारा मनोरंजन किया है। अब बॉलीवुड इंडस्ट्री को कोरोना महामारी और दर्शकों के स्वाद में बदलाव को दोष देने के बजाय, आत्मनिरीक्षण करने और ऐसी सामग्री बनाने की जरूरत है जो दर्शकों को बड़े पर्दे पर आने के लिए उत्साहित करे।
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