Trading Myths of Share Market-इंट्राडे ट्रेडिंग के 12 झूठ
शेयर मार्केट में निवेश और ट्रेडिंग करने वाले लोगों की संख्या हमारे देश में यूरोप और अमेरिका की तुलना में अभी भी बहुत कम है, परन्तु पिछले कुछ वर्षों के दौरान शेयर बाज़ार में रूचि लेने वालों की संख्या में तेज़ी से वृद्धि देखी गई है। इसमें म्यूच्यूअल फण्ड के माध्यम से निवेश करने वालों के अलावा बड़ी संख्या शेयर निवेशको और ट्रेडर्स की भी रही है।
वैसे तो शेयर मार्केट में एक ट्रेडर अपने लम्बे अनुभव और सीखने की क्षमता के आधार पर ही पैसा बना पाता है, परन्तु इस लम्बी अवधि के दौरान उसका सामना ट्रेडिंग की दुनिया में फैले बहुत सारे मिथक और गलत धारणाओं से होता है जो यहाँ सालों से मौजूद हैं। अक्सर ये मिथक ट्रेडर को भ्रमित करके गलत दिशा में ले जाते हैं।
जब आप किसी ट्रेडर की बात सुनते हैं, तो आपको यह आभास होता है कि ये मिथक ट्रेडर्स के बीच "सामान्य ज्ञान" बन गए हैं। यह लेख 12 सबसे अधिक विश्वास किए जाने वाले ट्रेडिंग मिथकों पर प्रकाश डालता है। आइये जानते हैं, वे झूठे क्यों हैं और उन पर विश्वास करना आपके ट्रेड को कैसे नुकसान पहुंचा सकता है।
शेयर बाज़ार के ट्रेडिंग मिथक (Myths About Day Trading)
1. शेयर बाज़ार और ट्रेडिंग से दूर रहने में भलाई है -
जब कोई भी व्यक्ति शेयर बाज़ार में ट्रेडिंग की शुरूवात करना चाहता है, तो उसे मित्रों और रिश्तेदारों द्वारा सलाह दी जाती है कि शेयर बाजार से दूर रहें। इस प्रकार एक नया ट्रेडर हमेशा भयभीत रहने के साथ हार के प्रति कुछ ज्यादा ही सतर्क रहता है, इस आशंका के कारण वो ट्रेडिंग के दौरान आने वाले कुछ बेहतरीन अवसरों को खो देता है और मुनाफा कमाने में असमर्थ होता है।
वास्तव में डे ट्रेडिंग को किसी भी अन्य पेशे या व्यापार की तरह गंभीरता से लिया जाना चाहिए।जैसे किसी अन्य व्यापार में परीक्षण और गलती के माध्यम से किसी व्यापारी के सीखने की प्रक्रिया वर्षों तक चलती रहती है वैसा ही शेयर मार्केट में भी होता है। यहां सीखते हुए नए ट्रेडर को अपना तरीका विकसित करना और अनुशासन के साथ उसका पालन करना होता है।
नए ट्रेडर को सलाह दी जा सकती है कि वह अपनी ट्रेड पोजीशन को अपने लॉस सहने की क्षमता के अनुरूप रखते हुए ट्रेडिंग में कुछ कैलक्युलेटेड रिस्क ले, साथ ही मार्केट बंद होने के बाद अपने ट्रेडों की समीक्षा के माध्यम से यह देखे कि उसने गलती कहा पर की थी जिससे उसे लॉस हुआ और आगे के लिए उसी आधार पर सोच-समझकर निर्णय लें।
2. शेयर मार्केट में ट्रेडिंग, जुआ है -
एक सामान्य मिथक है कि शेयर मार्केट में ट्रेडिंग करना वैसा ही है, जैसे जुआ खेलना या सट्टा लगाना। निश्चित रूप से बिना तैयारी के कोई भी व्यवसाय चलाना जुआ है, भले ही वह छोटी सी चाय -पान की दुकान क्यों न हो। वास्तव में धन कमाने के लिए किया गया कोई भी व्यवसाय रिस्क से जुड़ा होता है, परन्तु यह रिस्क तब कई गुना बढ़ जाता है जब आप बिना किसी ठोस योजना के काम करते हैं।
सामान्य बात यह है कि किसी भी व्यवसाय में सफलता के लिए गलतियों से सीखने का अभ्यास और पूरी तरह से समर्पण करने की आवश्यकता होती है। यदि आप व्यापार के नियमों का अनुशासन के साथ का पालन नहीं करते हैं तो आपको गंभीर हानि पहुंच सकती है, शेयर मार्केट में ट्रेडिंग भी इससे अलग नहीं है।
सारांश रूप में कह सकते हैं कि यदि आप दिन के दौरान शेयर बाज़ार की चाल और उसमें होने वाले उतार चढ़ाव के पैटर्न को बारीकी से वाच करते हैं और इस आधार पर अपना ट्रेडिंग का तरीका विकसित करते हुए काम करते हैं, तो यह जुआ न होकर एक व्यापार हो जाता है। अपने स्वयं के शोध और रिस्क लेने की क्षमता के आधार पर ट्रेड करना आपके रिस्क को लिमिटेड करता है।
जब आप भावनाओं में बहकर अपनी पूरी धनराशि किसी एक ट्रेड में लगा देते हैं, तब निश्चित रूप से यह व्यापार न होकर जुआ बन जाता है परन्तु इसमें सारा दोष आपका होता है। ट्रेडिंग में निश्चित रूप से थोड़ी जोखिम अधिक होती है, यही वजह है कि आपको मुनाफा भी किसी अन्य व्यवसाय की तुलना में अधिक मिल सकता है।
3. इंट्राडे ट्रेडर मतलब डेली ट्रेड करना -
इंट्राडे ट्रेडर्स के संबंध में यह मिथ या भ्रान्ति है कि उसे डेली ट्रेड करना है और नए ट्रेडर ऐसा करने की कोशिश में रहते भी हैं, जबकि यही एक बड़ा कारण होता है उनकी हार का। यहां आपको ट्रेड तभी लेना है जब आपके सेटअप में बाई या सेल का सिग्नल आये और हर दिन ऐसा हो यह जरूरी नहीं है। यहां पुराने और अनुभवी ट्रेडर भी महीने में 4 -6 से ज्यादा ट्रेड नहीं करते।
इस मार्केट में धैर्य के साथ मौके का इंतज़ार करना जरूरी है, हो सकता है ऐसा मौका महीने में एक या दो बार ही आये। वोलेटाइल मार्केट आपको ट्रेड करने के अवसर देता है, साइडवेज मार्केट में ट्रेड करने की कोशिश करना मतलब घाटे को आमंत्रित करना है। अगर आप ट्रेडिंग की लत के शिकार हैं तो उस आदत से निकलने के बाद ही ट्रेडिंग से कुछ कमा पाएंगे, अन्यथा यह आपके लिए एक वीडियो गेम ही साबित होगा और आप प्रतिदिन यहाँ कुछ न कुछ देकर जायेंगे।
4. पेनी स्टॉक में ट्रेड करना -
पेनी स्टॉक में ट्रेड करना ट्रेडर के लिए फायदेमंद होता है, यह एक मिथक है। पेनी स्टॉक अपने कम रेट के कारण ट्रेडर को आकर्षक लगते हैं परन्तु नए ट्रेडर के लिए पेनी स्टॉक में ट्रेडिंग करना उसके पूरे अमाउंट को एक ही ट्रेड में साफ़ कर सकता है, अगर उसने लीवरेज के जरिये ट्रेड किया हो।
बहुत से पेनी स्टॉक अत्यधिक वोलेटाइल होते हैं, इनमें 4% तेजी में दिखने वाला स्टॉक कब 6% की मंदी में आ जायेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता। यह सब इतनी तेज़ी से होता है कि ट्रेडर के लिए सम्भलना मुश्किल हो जाता है।
इसलिए पहले कुछ दिन किसी स्टॉक का उतार चढ़ाव बारीकी से वाच करें और अपने रिस्क उठाने की क्षमता के साथ उसकी वोलैटिलिटी का मिलान करें। जब लगे कि यह आपकी क्षमता के अनुकूल है तभी उसमें ट्रेड करें।
बेहतर होगा कि ट्रेडिंग सीखने की शुरुवात निफ़्टी 50 के स्टॉक से करें। अगर कम क्वांटिटी के साथ ट्रेड करेंगे तो आसानी से मैनेज कर पाएंगे। फिर धीरे धीरे क्वांटिटी बढ़ा सकते हैं साथ ही जरूरत पड़ने पर किसी स्टॉक को कुछ दिन होल्ड करने का भी सोच सकते हैं।
5. कंपनी का रिजल्ट -
किसी कंपनी का रिजल्ट अच्छा आएगा तो उसके शेयर प्राइस में वृद्धि निश्चित रूप से होगी, ट्रेडर का यह भी एक मिथक है। जब किसी कंपनी का त्रैमासिक या वार्षिक परिणाम घोषित होना होता है, तब उसके पूर्व विभिन्न चैनलों और अन्य माध्यमों में बताया जाता है कि उसका रिजल्ट कैसा सकता है।
अच्छे रिजल्ट की उम्मीद में ट्रेडर उस कंपनी के शेयर इस उम्मीद में खरीदने लगते हैं कि परिणाम आने पर उसके दाम में वृद्धि होगी और वे उसे बेचकर मुनाफा बुक करके निकल जाएंगे। परन्तु कई बार ऐसा नहीं होता। कंपनी के अच्छे रिजल्ट के बावजूद उसके शेयर के भाव गिरने लगते हैं और ट्रेडर उसमें लॉस बुक करने पर मजबूर हो जाता है।
ट्रेडर यह समझ ही नहीं पाता कि ऐसा क्यूँ हो रहा है। यह सुनकर वह और भ्रमित हो जाता है जब उसे बताया जाता है कि कंपनी का लाभ, अपेक्षित किये गए लाभ से कम होने के कारण शेयर प्राइस लुढ़क रहे हैं। इसलिए अंध श्रद्धा में पड़कर किसी पूर्व प्रसारित न्यूज़ के आधार पर ट्रेड न लें और जाँच परखकर पोजीशन लें।
6. ब्याज दरों में बदलाव -
अमेरिकी फेड या RBI के द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि करने से बाज़ार गिरेगा और दरें कम करने पर मार्केट ऊपर जायेगा, यह मिथक भी ट्रेडर्स के लिए घातक है। RBI की पालिसी घोषित होने के पूर्व कई सर्वे किये जाते हैं जिसके माध्यम से बताया जाता है कि इस बार ब्याज दरें बढ़ेंगी या कम होंगी।
दरें बढ़ने की आशंका होने पर सामान्य ट्रेडर बाज़ार में मंदी की पोजीशन बनाता है, यदि वास्तव में दरें बढ़ायी जाती हैं तब भी अक्सर मार्केट नीचे जाने की बजाय ऊपर जाता हुआ दिखता है और ट्रेडर नुकसान उठाता है। वैसा ही झटका उसे दरें कम होने की कंडीशन में भी लगता है।
सारांश यह है कि ट्रेड लेते समय ब्याज दरों में बदलाव की सामान्य धारणा या मिथ को अपने ऊपर हावी न होने दें, बल्कि सतर्क रहकर और विवेक के आधार पर ट्रेड लेने का विचार करें।
7. इंडीकेटर्स हमेशा सही होते हैं -
कहा जाता है कि इंडीकेटर्स के आधार पर ट्रेड करने से जीत सुनिश्चित हो जाती है, परन्तु जब ऐसा नहीं होता तब यह कहने में भी देर नहीं लगती कि इंडीकेटर्स काम नहीं करते। वास्तव में इंडिकेटर खरीदने या बेचने के संकेत की गारंटी नहीं देते हैं। इंडिकेटर केवल आपके चार्ट पर दिखाई देने वाली प्राइस की जानकारी लेते हैं, गणना करते हैं और फिर परिणामों की कल्पना आप स्वयं करते हैं।
इंडिकेटर का उपयोग करने और समझने में ट्रेडर का अनुभव और योग्यता काम आती है, अधिकांश ट्रेडर इसकी बारीकी से अनभिज्ञ होते हैं। एक बार जब ट्रेडर यह समझ जाता है कि एक संकेतक का उद्देश्य खरीदने या बेचने के संकेत देना नहीं है, बल्कि प्राइस की जानकारी को आसानी से समझने योग्य प्रारूप में बदलना है, तो वह इंडिकेटर का अधिक प्रभावी ढंग से उपयोग कर सकता है।
इंडिकेटर से प्राप्त जानकारी की व्याख्या करना और उसके आधार पर कोई ट्रेड लेना एक ट्रेडर के रूप में आपका काम है। अनिश्चित रहना शेयर बाज़ार का स्वभाव है। किसी एक सूचना पर यह वैसी ही प्रतिक्रिया करेगा जैसा वह पिछली बार किया था, यह समझना भूल है। यहां कभी भी किसी भी दिशा में कोई बड़ा मूव आता ही रहता है, ऐसे किसी मूव की जानकारी देने में इंडिकेटर असमर्थ होते हैं। इसके लिए आपको अपने ज्ञान का उपयोग करते हुए सतर्क रहना पड़ता है।
इंडीकेटर्स के संबंध में एक मान्यता यह भी है कि अधिक इंडिकेटर का उपयोग बेहतर हैं, परन्तु डे ट्रेडिंग में एक या दो संकेतकों को देखना महत्वपूर्ण है, क्योंकि अधिक इंडिकेटर न केवल आपको कंफ्यूज कर सकते हैं, बल्कि आपको त्वरित निर्णय लेने में कठिनाई उतपन्न करते हैं। जबकि इंट्राडे में शीघ्र निर्णय लेना जरूरी होता है।
जैसे बहुत से रसोइये किसी पकवान को खराब करते हैं, वैसे ही बहुत सारे इंडिकेटर, ट्रेडर को सही दिशा दिखाने के बजाय भ्रमित कर सकते हैं। इसलिए उनमें से कुछ पर अपनी नजरें जमाएं और अपने अनुभव के आधार पर सर्वोत्तम परिणाम देने वाले इंडीकेटर्स का अनुसरण करें।
8. लीवरेज खराब होता है -
हर नए ट्रेडर को बताया जाता है कि वो लीवरेज लेने से बचे। लेकिन क्या लीवरेज हमेशा घाटा ही देगा? ऐसा क्या है जो लीवरेज के साथ ट्रेडिंग को इतना विवादास्पद बना देता है? वास्तव में लीवरेज न तो अच्छा है और न ही बुरा, यह सिर्फ एक साधन और एक सिस्टम है। जो चीज लीवरेज के साथ ट्रेडिंग को खतरनाक बनाती है, वह है मार्केट संबंधी अज्ञानता और ज्ञान की कमी।
जब कोई ट्रेड आप अपने अनुभव और ज्ञान के आधार पर सही पाते हैं तो वहां थोड़ी मात्रा में लीवरेज लेना आपके मुनाफे को बढ़ाने में मदद कर सकता है। इसके विपरीत किसी ठोस आधार के बिना बड़ी मात्रा में लीवरेज और विशाल पोजीशन साइज के साथ ट्रेड करना वित्तीय आत्महत्या हो सकता है। जब कीमत आपके खिलाफ जाने लगे और आप लीवरेज का उपयोग कर रहे हों, तो छोटा नुकसान एक बड़े नुकसान में बदल जाएगा और आपके अकाउंट को तेजी से साफ़ कर देगा।
9. बाजार अंततः दिशा बदलेगा -
ट्रेडर के दिमाग में यह भ्रम रहता है कि उसका लिया ट्रेड भले ही अभी गलत जा रहा है पर अंततः दिशा बदलेगी। हो सकता है आपने किसी ठोस लॉजिक के आधार पर ट्रेड लिया हो, परन्तु यह जरूरी नहीं है कि बाज़ार वैसा ही चले। याद रखें बाजार आपकी सोच के विपरीत लम्बे समय तक तर्कहीन रह सकता है।
कभी भी यह मानकर ट्रेड न करें कि तर्कहीन आधार पर चलता हुआ बाजार शीघ्र ही पलट जाएगा, यहां आप ही इंतजार करते हुए थक सकते हैं और अंततः अधिक प्रतिकूल स्तरों पर आपको बाहर निकलना पड़ सकता है। जिद्दी लोगों को यह मार्केट कठोर सज़ा देता है, इसलिए इसके प्रतिकूल चलने का न सोचें।
बाजार, पलटाव अवश्य कर सकता है, लेकिन इस आशा में बहुत समय भी लग सकता है। इस बीच कई अच्छे ट्रेड आपके हाथ से निकल सकते हैं। बाज़ार बहुत देर से पलटा और आपका ऑप्शन का गेम हुआ तो भी मुनाफा अधिक नहीं होने वाला और नहीं पलटने की दशा में तो लम्बा नुकसान होना तय है।
10. ट्रेड में लम्बे समय तक रुकने से आसानी होती है -
ट्रेड में लम्बे समय तक रुकने से आसानी होती है और कम समय-सीमा का ट्रेड कठिन होता है, यह भी एक भ्रम है। वास्तव में आपके ट्रेड की समय-सीमा का चुनाव एक बहुत ही व्यक्तिगत मामला है। यदि आपके पास लम्बी समय सीमा तक सौदे को रखने का कौशल और धैर्य नहीं है तो उच्च समय-सीमा में ट्रेड करना आपके लिए सबसे कठिन काम हो सकता है।
यदि आपकी ताकत भावनात्मक स्थिरता के साथ तेजी से निष्पादन करने की है, तो कम समय-सीमा या स्केल्पिंग (Scalping) अधिक आकर्षक हो सकती है।
इंट्राडे ट्रेडर की सफलता के लिए किसी एक ट्रेडिंग पैटर्न की सिफारिश नहीं कर सकते हैं। आपको यह खोजना होगा कि आपके लिए क्या काम करता है। स्विंग, स्केल्पिंग या ऑप्शन ट्रेडिंग में से क्या बेस्ट है इसके लिए खुद का ऑडिट करें। किसी मिथक पर विश्वास करना और सामान्यीकरण करना आमतौर पर हमेशा खराब ट्रेड की ओर ले जाता है। आपको प्रयोग करके यह पता लगाना होगा कि आपके लिए क्या काम कर रहा है।
11. इंट्राडे ट्रेडर को तैयारी की जरूरत नहीं होती -
एक भ्रान्ति है कि इंट्राडे में थोड़े समय के लिए ट्रेड में बने रहना होता है इसलिए ज्यादा समय देने की जरूरत नहीं है। वास्तव में जितना अधिक आप चार्ट को देखने और विश्लेषण करने में समय बिताएंगे उतना ही आपको एक बेहतर ट्रेडर बनने में मदद मिलेगी। किसी भी चीज़ में बेहतर बनना आपके पूरे विश्लेषण, अभ्यास और तैयारी पर निर्भर करता है।
इंट्राडे में बिना किसी समझ के कोई ट्रेड लेना, जुआ खेलने के जैसा है। मार्केट की दिशा का आकलन करने के लिए आपको बहुत से बिंदुओं पर विचार करना होता है इसलिए एनालिसिस के लिए आपके द्वारा दिया गया स्क्रीनटाइम आपको बेहतर बनने में मदद करेगा।
एक एथलीट अपने 2 मिनट के प्रदर्शन के लिए वर्षों तक मेहनत करता है वैसे ही एक टेनिस खिलाड़ी अपने प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ खेले जाने वाले कुछ सेटों के दौरान अपने कौशल में सुधार करने से मैच नहीं जीत जाता है। वैसी ही इंट्राडे ट्रेडिंग भी है; आप सिर्फ ट्रेड करने से एक बेहतर ट्रेडर नहीं बनते हैं, बल्कि अपनी तैयारी, प्रदर्शन की समीक्षा और अपने ट्रेड पर सक्रिय रूप से काम करने के बाद ही कुछ हासिल करने की उम्मीद कर सकते हैं।
12. रिस्क रिवॉर्ड रेश्यो 1:2 रखना जरूरी है -
ट्रेडर्स सोचते हैं कि हर सौदे में रिस्क रिवॉर्ड रेश्यो कम से कम 1:2 रखना जरूरी है, तभी ट्रेडिंग में सफल हुआ जा सकता है। यह बात सुनने में अच्छी लग सकती है, परन्तु प्रैक्टिकल में हर बार ऐसा हो यह जरूरी नहीं है।
बाज़ार अपने ढंग से चलता है, उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपने कहाँ 10/- स्टॉपलॉस के बदले 20 /- का मुनाफा सोच रखा है। हो सकता है आपके सौदा लेने के बाद रेट आपकी सोची हुई दिशा में चले और आपको लगे कि 20/- प्रॉफिट सुनिश्चित है, परन्तु वह 19/- तक जाकर वापस घूमने लगे तब आप क्या कहेंगे।
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इसलिए ट्रेडिंग में रिस्क रिवॉर्ड का कोई रेश्यो फिक्स करना ठीक नहीं होता, इसे मार्केट की चाल को देखते हुए एडजस्ट करने में ही भलाई है। अन्यथा यहां आपके प्रॉफिट वाले ट्रेड को लॉस में बदलने में देर नहीं लगती। जब मार्केट में रेंज बड़ा दिखे तब अवश्य अपने टारगेट को बड़ा किया जा सकता है।
यहां रिस्क रिवॉर्ड का अनुपात विभिन्न कारकों और व्यक्तिगत प्राथमिकताओं पर निर्भर करता है। आपके सिस्टम की जीत दर इस बात पर निर्भर करती है कि आपने संभावित बड़े नुकसान को किस हद तक कम किया है और छोटे नुकसान में निकलने में सफल रहे हैं।
ट्रेडिंग में कोई एक मापदंड सभी पर खरा नहीं उतरता, क्योकि प्रत्येक की नुकसान सहने की क्षमता अलग होती है। अगर आप किसी एक ट्रेड में बड़ा नुकसान लेते हैं तो उससे आपको उबरने में उतनी ही अधिक कठिनाई होने वाली है। क्योकि बाद के ट्रेड में उतना बड़ा प्रॉफिट लेना आपके लिए कठिन होगा, जबकि आपका कैपिटल टूट चुका होता है। इसलिए ट्रेडिंग में आपको अपनी रणनीति का ऑडिट करते हुए आगे बढ़ना होगा।
क्या आप किसी अन्य मिथक के बारे में जानते हैं जो ट्रेडर्स के बीच चला आ रहा है और ट्रेडर्स इसे सच मानकर ट्रेड लेते हैं, तो उसे कमेंट बॉक्स में लिख सकते हैं।
आशा है ये आर्टिकल "Trading Myths of Share Market-इंट्राडे ट्रेडिंग के 12 झूठ" आपको पसंद आया होगा, इसे अपने मित्रों को शेयर कर सकते हैं। ऐसी ही और भी उपयोगी जानकारी के लिए इस वेबसाइट पर विज़िट करते रहें।
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