Signs of Share Market Crash-क्या शेयर बाज़ार गिरने वाला है?
निवेशकों के लिए स्टॉक मार्केट का क्रैश (crash) होना एक डरावनी चीज है, यह भावनात्मक रूप से तनावपूर्ण और आर्थिक रूप से हानिकारक हो सकता है। शेयर बाज़ार में कुछ दिनों की तेज़ी के बाद थोड़ी गिरावट का आना तो सामान्य बात है, परन्तु जब स्टॉक मार्केट मे क्रैश या बड़ा करेक्शन होता है, तब शेयरों की कीमतें थोड़े ही दिनों में बहुत अधिक गिर जाती हैं। औसत रूप से होने वाली गिरावट की तुलना में इसका प्रतिशत भी बहुत अधिक होता है। यह एक तरह की सुनामी होती है और निवेशक को ऐसा लगता है जैसे सब खत्म होने जा रहा है।
जब शेयर बाजार ऊपर चढ़ना शुरू होता है, तब आम निवेशक सशंकित होता है और पैसा लगाने से डरता है। फिर जब बाज़ार तेज़ी से ऊपर जाता है तब वह पैसा लगाने को तैयार होता है, क्योंकि ऐसे समय में मार्केट की तेज़ी के ढोल चारो ओर बज रहे होते हैं। सब लोग इसके और ऊपर जाने की भविष्यवाणी कर रहे होते हैं। आम निवेशक भी गिरावट आने का संदेह अपने दिमाग से हटा चुके होते हैं और खरीदी के माहौल को देखते हुए गिरावट के भय से मुक्त होते हैं, तभी यह डूब जाता है।
दुर्भाग्य से, शेयर बाजार के निवेशक यहां आने वाले करेक्शन, तेज़ी और गंभीर क्रैश का पूरी तरह से अनुमान नहीं लगा सकते हैं या उससे बच नहीं सकते हैं। लेकिन बीते समय में होने वाले बड़े स्टॉक मार्केट क्रैश को देखने से अपने निवेश को सुरक्षित रखने में मदद मिल सकती है। बाज़ार में कुछ संकेतक होते हैं जिनकी चेतावनियों को ध्यान रखने पर आपको इसकी जानकारी मिल सकती है कि आप बेयर मार्केट शुरू होने के आसपास हैं।
आइये जानते हैं वे कौनसे संकेतक हैं जो शेयर बाजार में तेज़ गिरावट या क्रैश की भविष्यवाणी करने में मदद करते हैं।
शेयर मार्केट क्रैश होने के चेतावनी संकेत (Signs Before the Stock Market Crash)
1.जब अटकलें बहुत उग्र हों -
स्टॉक मार्केट का क्रैश की ओर बढ़ने का पहला संकेत तब मिलता है जब अटकलें (Speculation) उग्र हो जाती हैं। इस प्रकार की व्यापक अटकलबाजी यह धारणा बनाती है कि बाजार में अभी बहुत तेज़ी बाकी है और जो इसमें पार्टिसिपेट नहीं करेंगे वे बाद में पछतायेंगे। इस प्रकार एक बुलबुला बनाया जाता है।
नतीजतन, शेयर बाज़ार की गतिविधि से अनजान नए लोग भी शेयर खरीदने लगते हैं। इसलिए, स्टॉक अपने वास्तविक मूल्य से बहुत अधिक रेट तक पहुंच जाते हैं।
आम निवेशक, भविष्य की बढ़ोतरी की उम्मीद के कारण शेयर की वर्तमान उच्च कीमत को नजरअंदाज करते हैं। इसलिए, वे पीक के आसपास खरीदते हैं जिसमें अनिवार्य रूप से नुकसान उठाने की संभावना होती हैं। इस कारण से कुछ विशेषज्ञों का सुझाव है कि निवेश करने का सही तरीका -एक रिटेल निवेशक बाजार में जो कर रहा है, इसके ठीक विपरीत करना है।
निवेशकों को फंसाने के लिए इस बुलबुले (bubble) का निर्माण पहला कदम है, जोकि बाजार में गिरावट की भविष्यवाणी भी करता है। इस बीच मामूली करेक्शन आते हैं, परन्तु बबल बढ़ता रहता है। जब बबल का विस्तार जारी रहता है, तब एक समय आता है जब वह फट जाता है, परिणाम एक स्टॉक मार्केट क्रैश होता है।
क्रैश होने पर शेयर की कीमतों में गिरावट अक्सर इस तेज़ी से होती है कि अधिकतर निवेशकों को उबरने का कोई मौका नहीं मिल पाता है। इसलिए जब भी बबल बनने के संकेत मिलें तब सावधान हो जाना चाहिए और बुलबुले को चोटी तक सवारी नहीं करनी चाहिए। इससे निवेशक भले ही कम पैसा कमायेगा, परन्तु उसके पैसे खोने का जोखिम भी काफी कम हो जाता है।
2. कम विकास दर -
समग्र आर्थिक विकास में मंदी, एक महत्वपूर्ण संकेतक है कि शेयर बाजार क्रैश होने जा रहा है। मंदी का मतलब यह नहीं है कि बाजार तुरंत गिर जाएगा। परन्तु मंदी के साथ आगामी समय में होने वाली विकास दर में भारी वृद्धि की अटकलें मार्केट क्रैश के लिए एक शक्तिशाली संयोजन है।अतीत में कई बार शेयर बाजारों के क्रैश होने के समय यह देखा गया है।
अर्थशास्त्रियों के पास कई संकेतक हैं जो वे आर्थिक विकास के लिए बैरोमीटर के रूप में उपयोग करते हैं। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) इन संकेतकों में सबसे आम है। अन्य कारकों जैसे बेरोजगारी, मुद्रास्फीति, आदि को भी ध्यान में रखा जाता है।
यदि ये संकेतक एक निर्दिष्ट अवधि में नकारात्मक हैं और बाजार अभी भी आगे जा रहा है, तो शेयर बाजारों और आर्थिक वास्तविकता के बीच तारतम्य टूट रहा है। इसका परिणाम आमतौर पर शेयर बाजार के लिए अच्छा नहीं होता है। इसलिए, उपर्युक्त स्थिती में होल्डिंग्स को कम करके कैश पोजीशन में बैठना ठीक है।
3. पीक वैल्यूएशंस -
शेयर मार्केट में क्रैश या मंदी से ठीक पहले शेयरों का वैल्यूएशन अक्सर अपने चरम पर होता है। ऐतिहासिक रिकॉर्ड बताते हैं कि जब वैल्यूएशन काफी बढ़ जाता है तब अच्छी कंपनियों के शेयर भी गिर जाते हैं। एक ओवरवैल्यूड मार्केट को समझने के लिए P/E ( price-to-earnings ratio) सबसे अच्छा संकेतक है। जब कंपनी की कमाई कम होगी तो P/E रेश्यो बढ़ेगा जोकि आर्थिक संकट या मंदी का संकेत है।
जिस तरह से आप P/E के जरिये किसी स्टॉक का विश्लेषण करते हैं उसी प्रकार शेयर बाजार के कुल मूल्य को कंपनियों की कमाई से विभाजित करके देख सकते हैं कि शेयर बाजार अंडरवैल्यूड या ओवरवैल्यूड है।
परन्तु ध्यान रखने योग्य बात यह है कि क्रैश होने से पहले, एक ओवरवैल्यूड मार्केट लम्बे समय तक टिका रह सकता है। इसलिए P/E के जरिये यह अनुमान तो लगाया जा सकता है कि निकट भविष्य में शेयर मार्केट के लिए गिरने का खतरा है परन्तु यह बताना मुश्किल है कि मार्केट क्रैश की घटना कब होगी।
4. कम-ब्याज दरें -
जब केंद्रीय बैंक ब्याज दर कम करते हैं, तो बाजारों में अधिक पैसा आने लगता है और इससे निवेश की बाढ़ आती है। इसके परिणामस्वरूप शेयर्स की कीमत अत्यधिक बढ़ जाती है और एक बबल का निर्माण होता है। चूँकि यह बुलबुला कृत्रिम रूप से बनाया गया है, इसलिए यह स्थायी नहीं रह सकता है। अंततः बबल फटता है और मार्केट क्रैश का कारण बनता है।
इसका कारण यह है कि एक बार ब्याज दरें कम होने पर आने वाला अधिक पैसा बाजारों में अचल संपत्ति या शेयरों की कीमतों को बहुत बढ़ा देता है। जिससे जल्दी या थोड़े समय बाद में, केंद्रीय बैंक को बढ़ती मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए ब्याज दरों को बढ़ाना पड़ता है। ब्याज दर बढ़ने से परिसंपत्ति की कीमतों में गिरावट आती है क्योंकि यह बाजार से अतिरिक्त धन को हटा देता है।
स्टॉक मार्केट की दिशा निर्धारण में अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेड का अपना महत्व है। जब फेड लिक्विडिटी और कम ब्याज दर प्रदान करे तो इसे बाजार के अनुकूल समझना चाहिए और बाजार में बढ़त की उम्मीद करना चाहिए। इसके विपरीत, जब फेड ब्याज दरों को मजबूत कर रहा है, जिससे अर्थव्यवस्था को कम पैसा मिल रहा है, तो आपको बाजार में गिरावट के लिए तैयार होना चाहिए।
5. वैश्विक मंदी -
शेयर बाजारों के नीचे जाने के सबसे बड़े कारणों में से एक वैश्विक मंदी का आना भी है। ऐसे समय में दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएं प्रभावित होती हैं, जब लोगों के पास खर्च करने के लिए कम पैसे होते हैं तब लोग केवल जरूरी वस्तुओं के लिए खर्च करते हैं। जिससे अधिकतर उत्पादों की खपत में कमी आती है और कंपनियों का मुनाफा कम हो सकता है। जोकि शेयरों के भाव में गिरावट का कारण बनता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था वैश्विक बाजारों के संपर्क में है, जिसमें कई विदेशी निवेशक भारतीय कंपनियों में भारी पूंजी निवेश करते हैं। जब ये बड़े खिलाड़ी, शेयर बाजार से बड़े पैमाने पर अपना पैसा निकालना शुरू करते हैं तब ये बाजार में अचानक गिरावट का कारण बनते हैं।
भारतीय कंपनियां विदेशी स्टॉक एक्सचेंजों पर अपने शेयरों को सूचीबद्ध करके भी धन जुटाती हैं। जब विश्व अर्थव्यवस्था में गिरावट आती है, तो ऐसी कंपनियों के शेयरों पर इसका नेगेटिव प्रभाव पड़ता है, फिर यह प्रभाव घरेलू शेयर बाजार पर दिखता है।
यदि वैश्विक एक्सचेंजों में गिरावट आती है, खासकर अमेरिकी शेयर बाजार में तब भारतीय निवेशक भी आशंकित होकर बिकवाली शुरू करते हैं, अगर यह गिरावट बहुत बड़ी है, तो भारतीय शेयर बाजार में भी तेज़ गिरावट आ सकती है।
6. अंतर्राष्ट्रीय घटनायें -
शेयर बाजार, देश की घटनाओं से ही नहीं बल्कि वैश्विक अस्थिरता से भी प्रभावित होता है।स्टॉक की कीमतों को प्रभावित करने वाले कारकों में युद्ध या युद्ध जैसी परिस्थितियां, आंतरिक संघर्ष, अप्रत्याशित प्राकृतिक आपदायें और बड़ी आतंकी घटनाएं शामिल हो सकती है।
भले ही इन घटनाओं से देश का कोई सीधा संबंध न हो लेकिन निवेशकों में इस बात का डर होता है कि उन घटनाओं का आर्थिक प्रभाव हमारी अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है। यदि ये आशंकाएँ बढ़ती हैं या वास्तविकता बन जाती हैं, तो यह शेयर बाज़ार में बड़े उतार-चढ़ाव का कारण बन सकता है।
7. घरेलू राजनीतिक और आर्थिक कारक -
राजनैतिक उथल पुथल से शेयर बाज़ार में अस्थिरता पैदा होती है। देश में चुनावी वर्ष भी शेयर बाजार में अनिश्चितता के लिए उपजाऊ जमीन बनाता है। किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत न मिलने की संभावना होने पर बाजार नकारात्मक प्रतिक्रिया कर सकता है। चुनाव परिणाम संबंधी अटकलें, बाजार में अनिश्चितता का वातावरण उतपन्न करती हैं।
आर्थिक सुधारों की आशा में स्टॉक की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि हो सकती है। यदि ऐसा लगता है कि एक पार्टी या उम्मीदवार जो कॉर्पोरेट का हितैषी नहीं है वह विजेता हो सकता है, तो बाजार एक बड़ा गोता लगा सकता है।
प्रमुख आर्थिक कारकों में रिज़र्व बैंक द्वारा ब्याज दरों में बदलाव, अर्थव्यवस्था में गिरावट, मुद्रास्फीति, वित्तीय झटके, आर्थिक नीति में बदलाव, भारतीय रुपए का अवमूल्यन, कुछ ऐसे कारक हैं जो शेयर बाजार में गिरावट का कारण बन सकते हैं। इन स्थितियों को हमेशा एक संभावित कारक के रूप में ही देखा जा सकता है और इनका परिणाम निवेशकों के नियंत्रण से परे हैं।
8. उत्प्रेरक घटना -
जब बाजार क्रैश होते हैं तब उसकी शुरुवात किसी उत्प्रेरक घटना से होती है। परन्तु उत्प्रेरक घटना मार्केट के पतन का वास्तविक कारण नहीं होती, इसकी जमीन मार्केट में पहले ही तैयार होती है। वहां बारूद पहले से फैला होता है यह उत्प्रेरक घटना तो बस एक चिंगारी का काम करती है। सरल शब्दों में, यदि बाजार बहुत अधिक बढ़ गया है तो क्रैश भी तेजी से और स्ट्रैट होगा।
उत्प्रेरक घटना पतन का वास्तविक कारण नहीं होती है। मिसाल के तौर पर, लेहमैन ब्रदर्स के पतन से 2008 का संकट पैदा नहीं हुआ। इसके बजाय, पहले से ही मार्केट में गिरने योग्य परिस्थितियां पैदा हो चुकी थीं, लेहमन भाइयों ने केवल घटना को ट्रिगर किया। यही स्थिति डॉट बबल या स्टॉक मार्केट्स के इतिहास में हुई किसी अन्य क्रैश की है।
वर्तमान संकेत क्या कहते हैं -
कई विशेषज्ञों का मानना है कि अगर कुछ संकेतकों पर ध्यान दिया जाए तो बड़े करेक्शन या क्रैश का आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है। जागरूक निवेशक इन संकेतकों पर ध्यान दे सकते हैं और एग्जिट पॉइंट की तलाश कर सकते हैं।
उपरोक्त वर्णित खतरे के संकेतकों को वर्तमान संदर्भ में देखें तो एक खतरनाक तस्वीर उभर कर सामने आती है। जिसका आधार इस प्रकार है -
A. तथ्यों से परे निवेश -
अभी होने वाला निवेश भावनात्मक मुद्दों पर आधारित है, तथ्यों से इसका कोई लेना देना नहीं है। आर्थिक विकास के मुख्य संकेतक GDP की बात करें तो यह नेगेटिव में है, विषेशज्ञों के अनुसार इसमें तुरंत सुधार की कोई संभावना नहीं है।
B. P/E रेश्यो का बहुत बढ़ जाना -
P/E रेश्यो 20 साल में सबसे अधिक 37 तक पहुंच चुका है। कहने वाले कह रहे हैं कि सन 2000 और 2008 में आये मार्केट क्रैश के समय P/E रेश्यो 25-26 था और 26 के ऊपर हम 2018 से ही बने हुए हैं, जब पिछले 3 साल में कुछ नहीं हुआ तो आगे भी कुछ होने वाला नहीं है। अगर आप भी इसी खेमे में शामिल हैं और खतरा देखकर रेत में अपना मुहं छिपाकर खुश होना चाहते हैं तो यह आपकी मर्जी.....
C. अत्यधिक मनी प्रिंटिंग -
आर्थिक विषेशज्ञ विश्व भर की सरकारों द्वारा प्रोत्साहन पैकेज के लिए मनी प्रिंटिंग की योजना को खतरनाक बता रहे हैं और चेतावनी दे रहे हैं कि भारी मात्रा में और लम्बे समय तक नोट छापकर वर्तमान संकट से निकलने की कोशिश अंततः आत्मघाती होने वाली है। अमेरिका में फेड ने कहा है कि उसकी मनी प्रिंटिंग की योजना आगामी 3 साल तक चलने वाली है, उसकी कुल मुद्रा का 22 -24 परसेंट तो वर्तमान समय में छापा गया है।
D. द बफेट इंडिकेटर -
वर्तमान समय में वारेन बफेट जैसे दिग्गज निवेशक वर्तमान रैली में पार्टिसिपेट करने की जगह कैश में बैठना पसंद कर रहे हैं और शेयर्स की बिक्री पर जोर दे रहे हैं। क्योंकि बफेट इंडिकेटर जोकि बाज़ार के कुल पूंजीकरण की तुलना GDP से करता है, वह अभी मार्केट में खतरे के संकेत दे रहा है।
भले ही तेज़ी की खुशियां मना रहे रिटेल निवेशक, वारेन बफेट जैसे निवेश गुरु पर हंस रहे हों। पर वारेन बफेट दूर खड़े होकर ऐसे निवेशकों को देख कर मुस्कुरा रहे हैं। शायद निवेश गुरु का ये अनुमान सच साबित हो जाए कि हंसने वाले ये लोग जिस लकड़ी के मकान में उत्सव मना रहे हैं उसमें एक चिंगारी जल्द ही गिरने वाली है।
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मार्केट क्रैश की संभावना दिखे तो क्या करना है-
अगर आप ज्यादा रिस्क नहीं उठाना चाहते हैं तो जब बाजार ओवरवैल्यूड दिखे तभी अपने स्टॉक होल्डिंग्स को ट्रिम करने पर विचार कर सकते हैं। परन्तु इस बात का ध्यान रखें कि जरूरी नहीं है कि बाज़ार वहीं से गिरना शुरू हो जाए, इस प्रकार आप कुछ मुनाफा खो भी सकते हैं।
लेकिन जब मार्केट क्रैश होगा तब आपको बड़ा झटका लग सकता है। इससे बचने के लिए अपने सभी पैसे एक जगह पर न रखें। आप चाहें तो बॉन्ड, गोल्ड और रियल एस्टेट जैसे अन्य निवेशों पर विचार करें, और कुछ पैसे नकद में रखें।
इसके अलावा जब आपको आगामी मार्केट क्रैश या बेयर मार्केट के कुछ संभावित संकेतक दिखाई दे रहे हैं, तो आप उन रक्षात्मक रणनीतियों पर भी एक नज़र डाल सकते हैं, जिनका उपयोग आप अपने पोर्टफोलियो के एक बड़े हिस्से को खोने से बचाने के लिए कर सकते हैं।
जब आप बेयर मार्केट में आते हैं तब आपको अपनी नीतियों में परिवर्तन करना होता है, जिनका आनंद आपने पूरी आक्रामकता के साथ बुल मार्केट के दौरान लिया था।
शेयर बाजार में क्रैश स्थायी नहीं हैं और नीचे जाने वाला बाज़ार ऊपर भी आता है जैसा कि हम पहले भी देख चुके हैं। एक निवेशक के रूप में आपके लिए महत्वपूर्ण बात यह है कि शेयर मार्केट के अनुभव से खुद को शिक्षित करना है। अपना ज्ञान बढ़ाते रहें, बाजार के रुझानों के बारे में पढ़ें, वैश्विक बाजारों के बारे में समाचार देखें, और शेयर बाजार की वोलैटिलिटी को देखते हुए अपनी नीतियां बनाकर काम करें।
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