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Friday, 23 October 2020

Facts of Life Insurance-जीवन बीमा की सच्चाई जिसे आपको जानना चाहिए

Facts of Life Insurance-जीवन बीमा की सच्चाई जिसे आपको जानना चाहिए 

यदि आपके परिवार में ऐसे लोग हैं जो आपकी आय पर निर्भर हैं, तो यह विचार करने लायक है कि उनकी आर्थिक सुरक्षा कैसे होगी, यदि आपके साथ कुछ भी होता है। आपके इस उद्देश्य की पूर्ती जीवन बीमा (Life Insurance) के जरिये हो सकती है और यह आपके बाद आपके परिवार की आर्थिक सुरक्षा कर सकता है।


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    वास्तव में जीवन बीमा का संबंध जीवन के बाद यानि मृत्यु से होने के कारण इसके बारे में बात करना आसान नहीं है। यह सत्य है कि जीवन बीमा, किसी प्रियजन को खोने के बाद की पीड़ा और दर्द को नहीं मिटा सकता है; परन्तु यह उन्हें वित्तीय स्थिरता प्रदान करता है, ताकि परिवार के लोगों को पैसे के बारे में चिंता न करनी पड़े। इस प्रकार जीवन बीमा, परिजनों पर अचानक गहराए आर्थिक संकट के बादलों से उनकी सुरक्षा करता है।   


    जीवन बीमा क्या है? जीवन बीमा आपके और बीमा प्रदाता कंपनी के बीच एक समझौता है, जो आपके मासिक भुगतानों के बदले में बीमाकर्ता कंपनी आपके प्रियजनों को आपके मरने पर एक राशि का भुगतान करेगी।   


     कई अन्य क्षेत्रों की तरह जीवन बीमा का क्षेत्र भी भारी प्रतियोगिता वाला हो चुका है और भारत में लगभग 24 कंपनियां इस काम में लगी हैं। इस  कारण बीमा एजेंटों को अपनी पालिसी बेचने के लिए विभिन्न तरीके अपनाने पड़ते हैं, इसके लिए वे आपकी मौत के डर को भी भुना सकते हैं। इसलिए आपका जागरूक रहना और जीवन बीमा के संबंध में अच्छी तरह से जानकारी होना बहुत महत्वपूर्ण है।


    जीवन बीमा के विज्ञापनों में अक्सर इस बात पर जोर दिया जाता है कि अपने परिवार को आर्थिक संकट से बचाना जरूरी है, अगर परिवार के कमाने वाले मुखिया की मृत्यु हो जाए।  लेकिन क्या यह हमेशा सच है? और क्या सभी को जीवन बीमा पालिसी की जरूरत है? 


किन्हें जीवन बीमा पालिसी की जरूरत नहीं है?


A. हर किसी को लाइफ इंश्योरेंस की जरूरत नहीं होती है। यदि आप अकेले रहते हों, अथवा आपके परिजन आर्थिक रूप से स्वतंत्र हैं तो आपको जीवन बीमा पालिसी की आवश्यकता नहीं है।

 

B. आपके ऊपर बड़े लोन (ऋण),  संपत्ति या खुद के बिज़नेस के लोन नहीं है, तो आपको जीवन बीमा पालिसी की आवश्यकता नहीं है।


C. आपने अपने प्रियजनों की आर्थिक सुरक्षा के लिए आपने ऐसी सम्पत्ति की व्यवस्था कर दी है जिससे नियमित आय होती रहे, यदि आप मर जाते हैं।  तब आपको जीवन बीमा पॉलिसी की आवश्यकता नहीं है। बैंक में भरपूर रूपये डिपाजिट होने पर भी यही स्थिति होती है।

 

  जब आपके पास या आपके परिवार के पास पहले से ही आवश्यक धन है, तो जीवन बीमा होना एक बारिश के दिन दो छतरियों को ले जाने जैसा होगा।


D. जीवन बीमा में सुरक्षा नीति ही मुख्य आधार होने के कारण यह अच्छा निवेश नहीं है। अत: आप सभी को इसकी आवश्यकता नहीं होगी। जिन लोगों को इसकी सबसे ज्यादा जरूरत होती है, वे अक्सर इसे वहन करने में सक्षम नहीं होते हैं। 


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जीवन बीमा किसके पास होना चाहिए?


यदि आपने अपने मकान, बिज़नेस आदि के लिए बड़ा लोन ले रखा है, आपके बच्चे छोटे हैं और पति पत्नी में से सिर्फ एक ही कमाऊ है, तब जीवन बीमा आपके पास होना चाहिए। अगर आपने जीवन बीमा की ठोस जरूरत का आधार तलाश लिया है तो इसके प्रत्येक पहलू को समझकर ही इसे अपने लक्ष्य के अनुरूप बना सकते हैं।  


   जीवन बीमा समझौते (Agreement) को पढ़ना बहुत उबाऊ लग सकता है, लेकिन वास्तव में आपको उसे पढ़ना जरूरी है। जीवन बीमा की शर्तें और यह कैसे काम करता है, इसे समझने के लिए इन शब्दों का अर्थ समझना आवश्यक है।

 

पॉलिसी - आपके और बीमा कंपनी के बीच का अनुबंध


प्रीमियम - मासिक या वार्षिक भुगतान 


पॉलिसीधारक - पॉलिसी का मालिक, जो सामान्य रूप से आप (एक बीमाधारक) होगा, लेकिन आप किसी अन्य व्यक्ति के लिए पॉलिसी खरीद सकते हैं


डेथ बेनिफिटपॉलिसीधारक के मर जाने पर दिया गया पैसा


राइडर - बेसिक प्लान में जोड़ा जाने वाला अन्य बेनिफिट जैसे क्रिटिकल इलनेस कवर या एक्सीडेंट डेथ बेनिफिट 


लाभार्थी (Beneficiary) - वे लोग जिन्हें आप अपनी पॉलिसी का मृत्यु लाभ प्राप्त करने के लिए चुनते हैं (जैसे आपके पति या पत्नी या बच्चे, लेकिन यह नाम आपकी पसंद पर कोई भी हो सकता है). 


   संक्षेप में, एक बार जब आप (पॉलिसीधारक) आपके प्रीमियम का भुगतान करना शुरू कर देते हैं, तो बीमा कंपनी गारंटी देती है कि आपकी मृत्यु होने पर, वे आपके लाभार्थियों को मृत्यु लाभ का भुगतान करेंगे।


जीवन बीमा के प्रकार


 जीवन बीमा के दो मुख्य प्रकार हैं - एक जो निश्चित वर्षों (टर्म लाइफ इंश्योरेंसके लिए रहता है और दूसरा जो आपके पूरे जीवन (स्थायी जीवन बीमा) रहता है।


टर्म लाइफ इंश्योरेंस -


जीवन बीमा के लिए टर्म प्लान एक बेसिक प्लान है।टर्म लाइफ इंश्योरेंस एक निश्चित समय के लिए कवरेज प्रदान करता है। यदि आप इस अवधि के दौरान किसी भी समय गुजर जाते हैं, तो आपके लाभार्थियों को पॉलिसी से मृत्यु लाभ प्राप्त होगा।


    टर्म प्लान, एक स्थायी योजना या पारम्परिक बीमा (Endowment Plan) की तुलना में सस्ता होता है क्योंकि इसमें निर्धारित अवधि के दौरान मृत्यु लाभ का भुगतान करने का एक सरल लक्ष्य है। यहां बीमा अवधि समाप्त होने के बाद कोई पैसा नहीं मिलता।


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स्थायी जीवन बीमा -


स्थायी जीवन बीमा आपके पूरे जीवनकाल तक चलता है। इसमें विभिन्न प्रकार की पालिसी आती है - प्रत्येक दूसरे से थोड़ा भिन्न होता है। यह बीमा और निवेश का संगम हो सकता है, जिसमें पालिसी धारक की मृत्यु न होने पर भी निर्धारित अवधि में आपके दिए पैसों में से कुछ पैसा लौटाया जाता है अथवा पालिसी की अवधि खत्म होने पर एकमुश्त भुगतान किया जाता है। 


   जीवन बीमा को निवेश के नजरिये से देखने पर यह सबसे खराब वित्तीय विकल्पों में से एक है, निवेश करने के लिए आपको दूसरी बेहतर जगह मिलेंगी जो आपको बेहतर रिटर्न देंगे।  जीवन बीमा आपके परिवार के लिए एक सुरक्षा की तरह होना चाहिए, न कि निवेश या धन कमाने की योजना। इस मामले में टर्म लाइफ इंश्योरेंस आपके लिए सबसे अच्छा विकल्प है। 


     सामान्य तौर पर बीमा लेने वाला एक व्यक्ति किसी लाइफ इंश्योरेंस एजेंट को बुलाकर सेवा लेता है और उसके दिए प्रपोजल फॉर्म में हस्ताक्षर कर देता है और चेक दे देता है। प्रपोजल फॉर्म को बारीकी से पढ़ने की जहमत अधिकतर लोग नहीं उठाते। उनके दिमाग में बस यही होता है कि उन्होंने बीमा करवा लिया है और असमय उनकी मृत्यु के बाद उसका परिवार क्लेम का पैसा प्राप्त कर लेगा और वित्तीय संकट के दौर से नहीं गुजरेगा। 


    लेकिन जीवन बीमा लेने से पहले ये जानना जरूरी है कि इसमें हर तरह की मृत्यु कवर नहीं होती। परिजनों को क्लेम तभी मिलता है जब पॉलिसीधारक की मृत्यु, कवर होने वाली वजहों से हुई हो अगर उन वजहों से अलग किसी वजह से पॉलिसीधारक की मृत्यु होती है तो बीमा क्लेम रिजेक्ट हो सकता है।  आइए जानते हैं टर्म लाइफ इंश्योरेंस प्लान के तहत कवर न होने वाली मृत्यु (Death) के प्रकार के बारे मे-


इन वजहों से मृत्यु नहीं होती कवर (Types of Death Not Covered under Term life Insurance)


1.पॉलिसीधारक की हत्या -


टर्म प्लान के क्लेम को बीमा कंपनी उस स्थिति में देने से मना कर सकती है, अगर पॉलिसीधारक की हत्या हो जाए और उसमें नॉमिनी का हाथ होने की भूमिका सामने आए या वह संदिग्ध में शामिल हो। ऐसे में क्लेम रिक्वेस्ट तब तक होल्ड पर रहेगी, जब तक नॉमिनी को क्लीन चिट नहीं मिल जाती यानी वह निर्दोष साबित नहीं हो जाता। 


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2. आपराधिक गतिविधि में लिप्त होना -


यदि पॉलिसीधारक लूट, डकैती आदि किसी आपराधिक गतिविधि में लिप्त होता है और इस दौरान  उसकी हत्या हो जाती है तब भी बीमा क्लेम की रकम नहीं मिलेगी। 


3. जीवन दांव पर लगाने वाले गेम -


अगर पॉलिसीधारक खतरों से भरे गेम खेलता है या ऐसी कोई एक्टिविटी में भाग लेता है, जो जीवन को खतरा पैदा करने वाली हो और किसी खतरनाक गतिविधि  को करते हुए उसकी मृत्यु हो जाती है तो बीमा कंपनी टर्म प्लान के क्लेम को रिजेक्ट कर देती है। जीवन को खतरा पैदा करने वाली कोई भी गतिविधि इस दायरे में आ सकती है, जैसे- कार या बाइक स्टंट, स्काई डाइविंग, पैरा ग्लाइडिंग, बंजी जंपिंग आदि। 


   पावर बोट रेसिंग, कार रेसिंग और मोटर स्पोर्ट जैसे आउटडोर साहसिक खेल (Adventure Sport) में भाग लेने की वजह से हुई मौत भी इंश्योरेंस पॉलिसी में कवर नहीं होती।  बाइक रेसिंग में शामिल होने के दौरान हुई मौत के लिए भी बीमा कंपनियां कोई भुगतान नहीं करती।


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4. नशे की वजह से  मृत्यु होने पर - 


अगर टर्म पॉलिसी लेने वाला शराब पीकर गाडी चला रहा हो (Drunk Driving) या उसने ड्रग्स लिया हो, तो ऐसी स्थिति में मृत्यु होने पर बीमा कंपनी, टर्म प्लान की क्लेम राशि देने से इंकार कर सकती है।  ड्रग्स या शराब के ओवरडोज से मरने वाले पॉलिसीहोल्डर के मामले में भी क्लेम रिजेक्ट हो जाता है।  


5. किसी पुरानी बीमारी की वजह से मृत्यु -


अगर टर्म पॉलिसी लेते समय व्यक्ति को कोई बीमारी है और उसका उल्लेख उसने प्रपोजल फॉर्म में नहीं किया है, अर्थात उसने अपनी बीमारी की जानकारी बीमा कंपनी से छिपाई है तो उस बीमारी से मौत होने पर बीमा कंपनी, टर्म प्लान का क्लेम रिजेक्ट कर सकती है। 


6. पॉलिसी लेने के बाद स्मोकिंग -


सिगरेट नहीं पीने वालों की तुलना में सिगरेट पीने वालों का लाइफ इंश्योरेंस प्रीमियम अधिक होता है। जिस व्यक्ति का टर्म इंश्योरेंस है और उसने बाद में स्मोकिंग शुरू कर दी है तो पॉलिसी होल्डर के लिए यह जरूरी है कि वो इंश्योरेंस कंपनी को इसकी जानकारी दे। इसकी वजह से आपके प्रीमियम में बढ़ोत्तरी हो सकती है। 


   अगर कोई व्यक्ति गलत स्वास्थ्य आदतों, जिससे उसकी लाइफ को खतरा होता है, की जानकारी बीमा कम्पनी को समय पर नहीं देता और किसी बीमारी की वजह से उसकी मौत हो जाती है तो कंपनी क्लेम राशि देने से मना कर सकती है। 


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7. प्राकृतिक आपदा से होने वाली मृत्यु -


अगर टर्म प्लान लेने वाले व्यक्ति की मृत्यु प्राकृतिक आपदा जैसे चक्रवात, भूकंप, सुनामी, बाढ़, आग, आसमानी बिजली गिरने जैसे कारणों से हो जाती है तो बीमा कंपनी मुआवजे के भुगतान से इंकार कर सकती है।   हालांकि अगर इसके लिए पॉलिसीधारक ने टर्म प्लान के अलावा अलग से कोई राइडर लिया हो तो उसका फायदा मिलेगा। 


8. आतंकवादी हमला (Terrorist attack) -


 इंश्योरेंस प्लान के अंदर आतंकवादी हमलों को शामिल नहीं किया जाता है। जैसे मुंबई में किया गया आतंकवादी हमला, ऐसे में पालिसी होल्डर को क्लेम मिलना मुश्किल होता है। ज्यादातर इंश्योरेंस कंपनियां इस तरह की घटनाओं के लिए बीमा कवर उपलब्ध नहीं कराती हैं।


9. आत्महत्या के मामले में -


इंश्योरेंस रेगुलेटर IRDAI ने जीवन बीमा के तहत आत्महत्या के क्लॉज में 1 जनवरी 2014 से बदलाव किए हैं।  इसलिए 1 जनवरी 2014 से पहले जारी हुई पॉलिसी में आत्महत्या के पुराने क्लॉज रहेंगे, जबकि बाद की नई पॉलिसीज में नए आत्महत्या क्लॉज को लागू किया जाएगा। हालांकि कुछ बीमा कंपनियां आत्महत्या के मामले में कवरेज देती हैं कुछ नहीं देती हैं। 


  पुराने क्लॉज के तहत अगर टर्म इंश्योरेंस लेने वाला पॉलिसी लेने के 1 साल के अंदर आत्महत्या कर लेता है तो पॉलिसी का क्लेम नहीं मिलेगा, वहीं अगर पॉलिसी शुरू होने के 1 साल के बाद ऐसा होता है तो पॉलिसी का क्लेम मिलेगा।  कुछ बीमा कंपनियां इस वेटिंग पीरियड को 2 साल भी रखती हैं, इसलिए पॉलिसी लेने से पहले नियम व शर्तें ध्यान से पढ़ें। 


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जीवन बीमा कितनी राशि का लें?


वित्तीय विशेषज्ञ, आपके परिवार के आर्थिक भविष्य को सुरक्षा प्रदान करने के लिए, आपके वार्षिक वेतन का 10 से 12 गुना तक मृत्यु लाभ निर्धारित करने की सलाह देते हैं। ऐसा करने पर बीमाधारक के परिवार को  वास्तविक मदद मिल सकती है। 

  

   आइए इसे एक उदाहरण से समझते हैं। मान लीजिए सुरेश का वेतन 4,00,000/- रूपये है और उनकी पालिसी में डेथ बेनिफिट 40 लाख रूपये (4,00,000 x 10) है। अगर सुरेश की मृत्यु हो गई, तो उसका परिवार 40 लाख रूपये का निवेश म्यूचुअल फंड में कर सकता है जो 10% रिटर्न देता है।


   उस निवेश से प्रति वर्ष 4,00,000/- (चार लाख रूपये) मिल सकते हैं जो सुरेश के मूल वेतन के बराबर है। इस प्रकार सुरेश का परिवार उसे हर साल मिलने वाले वेतन के बराबर राशि प्राप्त कर सकता है और निवेश की गई मूल राशि अनिश्चित काल तक वहां रह सकती है।


जीवन बीमा लेते समय कौनसी सावधानियां रखें -


A. तुलना करके देखें -


जीवन बीमा खरीदते समय विभिन्न जीवन बीमा कंपनियों की तुलना जरूरी है। आज भारत में दर्जनों जीवन बीमा कंपनियां हैं और प्रत्येक विभिन्न प्रकार के जीवन बीमा उत्पादों की पेशकश करती हैं। 


  उपलब्ध जीवन बीमा उत्पादों में से बेहतर का चुनाव करने के लिए ऑनलाइन तथ्यों की जांच करना ज्यादा बेहतर होगा। ऑनलाइन उपलब्ध विकल्पों के साथ, आपको कुछ बिंदुओं के आधार पर तुलना करना पड़ेगा -


a. क्लेम रेश्यो की जांच करें -


 कंपनी का क्लेम रेश्यो यानि उसके पास आने वाले क्लेम में से कितने केस में वह भुगतान करती है और कितने केस रिजेक्ट करती है यह देखिये। कई बार कंपनियां छोटे क्लेम का भुगतान तो कर देती हैं परन्तु बड़े क्लेम को रिजेक्ट कर देती हैं इसलिए एमाउंट बेसिस पर भी यह तुलना करके देखिये।

 

b. बीमाकर्ता कम्पनी की साख -


बीमा एक प्रॉमिस है इसलिए यह देखिये कि बीमाकर्ता कम्पनी की साख कैसी है। क्योंकि बीमा 20 -30 साल की लम्बी अवधि के लिए होता है इसलिए यह समझना पड़ेगा कि क्या कंपनी उस समय तक रहेगी। कंपनी के प्रमोटर और मैनेजमेंट का पिछला रिकॉर्ड देखकर इसका अंदाज़ लगा सकते हैं। 


c. प्रीमियम चेक करें -


अगर कोई कंपनी उक्त दोनों आधारों पर खरी उतरती है तो उसके प्रीमियम पर गौर कीजिये। एक ही तरह की प्रोडक्ट में तुलनात्मक रूप से उनके प्रीमियम के अंतर को कम्पेयर करने के बाद कोई निर्णय लीजिये। समान तरह के प्रोडक्ट होने के बाद यदि कोई कंपनी इसमें अतिरिक्त सुविधा के रूप में बिना किसी चार्ज के राइडर भी उपलब्ध करवाती हो तो इसे देखें।


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2. अपनी जरूरत को समझें -


अपनी जरूरत और परिस्थितियों के अनुसार राइडर अपने प्लान में जुड़वाएं। एक्सीडेंटल डेथ राइडर, क्रिटिकल इलनेस राइडर की स्थिति आपके टर्म प्लान में क्या है इसे देखें। अलग-अलग बीमा कंपनियों में डेथ बेनिफिट के क्लॉज अलग-अलग हैं, एक्सीडेंटल डेथ के कुछ प्रकार इस तरह हैं - फैक्ट्री में मशीन की चपेट में आना, अचानक आग लगना, बिल्डिंग या छत से गिर जाना, बाथरूम में फिसल जाना, नदी में डूबना, इलेक्ट्रिक शॉक से मृत्यु आदि।  पॉलिसी लेने से पहले इन क्लॉज के बारे में अच्छे से जांच-पड़ताल कर लें। 


3. बीमा फॉर्म को ध्यान से पढ़ें और स्वयं भरें -


बीमा प्रपोजल फॉर्म को ध्यान से पढ़ें और उसे स्वयं, सही सही जानकारी देते हुए भरें। अगर आपको कोई पुरानी बीमारी है तो उसका उल्लेख करें। भले ही आपको इसके लिए अधिक प्रीमियम चुकाना पड़ेगा परन्तु क्लेम प्रक्रिया के दौरान किसी भी अप्रिय स्थिति से आपके परिजन बच सकें इसके लिए आवेदन प्रक्रिया के दौरान सही जानकारी साझा करना बहुत महत्वपूर्ण है।


   गलत जानकारी या बीमारी व मेडिकल हिस्ट्री को छिपाया जाना क्लेम रिजेक्ट होने का एक बड़ा कारण है। ऐसे केस में मृतक के परिजन कंज्यूमर कोर्ट के चक्कर लगाते देखे जाते हैं।  


    जैसे किसी को हार्ट या कैंसर की बीमारी है और वह इसका उल्लेख आवेदन फॉर्म में नहीं करता है, परन्तु बीमा लेने के 1 साल में उसकी मृत्यु इन्हीं रोगों से हो जाती है और बीमा कंपनी की जानकारी में यह बात आती है कि उसे यह बीमारी पिछले 3 वर्षों से थी, तो उसका क्लेम रिजेक्ट हो जाता है।


4. पॉलिसी वापसी का विकल्प -


अगर कोई एजेंट आपको गलत जानकारी देकर अथवा क्लेम राशि के संबंध में झूठे वादे करके बीमा बेंच देता है तो आप पालिसी लेने के 15 दिनों के भीतर पालिसी वापस करके अपना पूरा पैसा प्राप्त कर सकते हैं और एजेंट की शिकायत कर सकते हैं। बेहतर होगा कि पालिसी खरीदने से पहले बीमा कंपनी के टोल फ्री नंबर पर बात करके अथवा सीधे ऑफिस जाकर उस प्लान की सत्यता की जांच कर लें। 


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5. अपने आर्थिक पक्ष को समझें -


लोग पालिसी ले तो लेते हैं पर बीमा अवधि के दौरान प्रीमियम न दे पाने के कारण पालिसी बंद करने की नौबत भी बहुत देखी जाती है। इस तरह आपकी अब तक प्रीमियम के रूप में दी गई रकम डूबने का खतरा हो जाता है। 


  3 साल तक प्रीमियम देने के बाद यदि आप पॉलिसी सरेंडर करते हैं तो आप अपनी दी गई रकम का 70 प्रतिशत तक खो सकते हैं। इसके बाद जितने अधिक वर्षों तक पॉलिसी जारी रखेंगे उतनी कम राशि आपकी काटी जाती है। कुल मिलाकर पॉलिसी सरेंडर करने पर आपको अच्छा ख़ासा नुकसान झेलना पड़ता है। 

 

6. परिवार को अवश्य बताएं -


यदि आपने कोई जीवन बीमा करवाया है, तो इसकी जानकारी अपने परिवार को अवश्य दें। आज हजारों करोड़ रूपये बीमा कंपनियों के पास इसलिए पड़े हैं कि पालिसी लेने वाले लोग अपने परिवार को इसकी जानकारी दिए बिना गुजर गए। इससे बचने के लिए अपनी पॉलिसी संख्या, दिए गए प्रीमियम आदि की जानकारी कहीं लिख कर रखें व इस बारे में परिवार के किसी सदस्य को बता दें। मूल पॉलिसी बांड पेपर को किसी सुरक्षित स्थान में रखें व इसकी फोटोकॉपी को अलग रखें। 


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