Drug Varieties- गांजा भांग, हशीश चरस और अफीम क्या है,कैसे बनता है?
नशे का इस्तेमाल पहले तो आदमी थोड़े से मजे के लिए करता है, पर बाद में यही नशा दानव बनकर उसे अपनी गिरफ्त में ले लेता है और उसका नाश कर देता है, इसलिए कहा जाता है -नशा, नाश की जड़ है। इसके सेवन से इंसान की अनमोल जिंदगी समय से पहले ही काल के गाल में समा जाती है।
ड्रग्स लेने वाले कहते हैं कि इसके जरिये हम अपने आपको अजेय व शक्तिशाली महसूस करते हैं और अपनी चिंताओं और परेशानियों को भूल जाते हैं। वहीं कुछ लोग ड्रग्स को अपनी रचनात्मकता बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करने का बहाना बनाते हैं। बॉलीवुड सितारों का ड्रग कनेक्शन चर्चा का विषय रहा है।
नशे के जरिये मूङ बदलना अल्पकालिक है, यह समझना आवश्यक है कि सभी ड्रग्स के हानिकारक दीर्घकालिक प्रभाव हैं। इसके सेवन से व्यक्ति थोड़ी देर के लिए अपने मस्तिष्क को अस्थिर और आनंदित महसूस कर सकता है, लेकिन अधिक मात्रा में लेने पर कई गंभीर जटिलताएं और यहां तक कि मौत भी हो सकती है।
नशे से मतिभ्रम, कार्य क्षमता घट जाना, आर्थिक नुकसान व शारीरिक अंगों पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव के बावजूद आज नशेड़ियों की संख्या बढ़ती जा रही है। अब तो महानगरों की तर्ज पर छोटे शहरों में भी ड्रग्स पार्टियों का आयोजन किया जा रहा है, इसमें सामूहिक रूप से नशे के अलग-अलग साधनों का इस्तेमाल हो रहा है। आइये जानते हैं उन मादक पदार्थों के बारे में, जिनका लती होकर इंसान अपनी जिंदगी बर्बाद कर रहा है।
नशे के विभिन्न प्रकार (Drug Varieties)
नशे के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले गांजा, भांग, अफीम, चरस जैसे मादक पदार्थ पेड़-पौधों से प्राप्त किये जाते है और सीधे प्रयोग में लाये जाते हैं। वहीं कुछ नशीले पदार्थ मानव द्वारा निर्मित किये जाते हैं। इसके लिए उपरोक्त कच्ची सामग्री को लेकर उसमें कुछ रासायनिक पदार्थ मिलाकर शोधित किया जाता है, जिससे नशे का प्रभाव बढ़ाया जा सके। इस श्रेणी में स्मैक, क्रिस्टल मेथ, हेरोइन, कोकीन, एलएसडी जैसे ड्रग्स शामिल हैं।
भांग और गांजा क्या होता है?
भांग (Bhang) और गांजा (Ganja), कैनाबिस (Cannabis) के पौधे से निकलता है। भांग और गांजे का उपयोग भारत में बहुत से लोग करते हैं, गांजे को मरिजुआना (Marijuana) के नाम से जाना जाता है।भांग और गांजा दोनों ही एक ही प्रजाति के पौधे से प्राप्त होते हैं, इस पौधे के कई अलग-अलग उपभेद हैं।
पौधे की नर प्रजाति से भांग और मादा प्रजाति से गांजा मिलता है। भांग के पौधे को अग्रेजी में कैनाबिस प्लांट के नाम से जाना जाता है, इसकी पत्तियां गेंदे के पौधे की पत्तियों से मिलती जुलती होती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, पूरे विश्व में अवैध उत्पादन, तस्करी और नशे के लिए सर्वाधिक दुरूपयोग कैनाबिस का किया जाता है।
गांजा (Ganja), पौधे के फूल व आसपास की पत्ती और पतली टहनी को सुखा कर तैयार किया जाता है, जो गांजा कहलाता है। जिसे लोग चिलम में भर कर नशे के लिए प्रयोग करते हैं। ज्यादातर देशों में गांजे का सेवन प्रतिबंधित है। अमेरिका के कुछ राज्यों में मरिजुआना अर्थात गांजे के उपयोग की छूट दे दी गयी है।
कैनबिस में THC (Tetra hydro cannabinol) होता है, जिसमें व्यक्ति के मूड को बदलने वाले गुण होते हैं। गांजा ( मारिजुआना) में भांग के मुक़ाबले टीएचसी (THC) ज़्यादा होता है। कैनाबिस या मादा भांग पौधे के फूल में रेजिन (राल के समान पदार्थ) का उत्पादन होता है, जिसमें बहुत अधिक मात्रा में टीएचसी होता है। मादा पौधे के फूल के रेजिन से हैश और चरस आदि मादक पदार्थ प्राप्त किए जाते हैं।
यदि भांग की बात की जाये तो यह कैनाबिस प्लांट के नर पौधे की पत्तियों को सुखाकर प्राप्त किया जाता है। भांग का सक्रिय घटक भी टीएचसी ही होता है परंतु इसका स्तर गांजे की तुलना में कम होता है। भांग, पौधे की पत्तियों को पीस कर तैयार की जाती है।
भारतवर्ष में भांग के पौधे बहुतायत में पाये जाते हैं। उत्तर भारत में रास्ते के किनारे, गाँवों के बाहरी इलाके व निर्जन स्थानों में इसके पौधे देखने को मिल जाते हैं। इसका प्रयोग दवाओं के अलावा होली के अवसर पर बनने वाली मिठाई व पेय पदार्थों जैसे ठंडाई आदि में भी किया जाता है। भांग की खरीदी सरकारी ठेके या लाइसेंस प्राप्त दुकानों से की जाती है।
कैनबिस के पौधे से प्राप्त होने वाले गांजा और भांग का उपयोग आध्यात्म के पथ पर चलने वाले लोग प्राचीन समय से करते रहे हैं। ऐसा माना जाता है कि इसके प्रयोग से ध्यान लगाने में मदद मिलती है। भांग को औघड़नाथ भगवान शिव की पसंदीदा जड़ी-बूटी माना जाता है।
परन्तु इसकी आड़ में सांसारिक लोग बहुतायत में इसका प्रयोग कर रहे हैं, इसके अधिक सेवन से मति भ्रम और कार्य विमुखता आने लगती है, जिससे जीवन निर्वाह करना कठिन हो जाता है।
हशीश और चरस क्या है और कैसे बनता है?
हशीश Hashish (जिसे संक्षेप में हैश कहा जाता है) और चरस (Charas) व्यावहारिक रूप से ये दोनों समान हैं। इनके विवरण में आपको Google पर मामूली अंतर पढ़ने को मिल सकता है। चरस और हैश (Hash) में विशिष्ट अंतर यह है कि चरस जीवित पौधे से बनाया जाता है। लेकिन ये एक जैसे ही दिखते हैं और एक ही क्रिया करते हैं। बड़े नशेड़ी या जो लोग सामान्य नशे से ऊब जाते हैं, वे इसकी लत के शिकार होते हैं।
चरस (Charas), कैनाबिस पौधे के फूलों की राल से मिलता है। (जैसा कि ऊपर बताया गया है कैनाबिस वही पौधा है जिससे गांजा और भांग प्राप्त होता है) चरस शब्द, चमड़े के बैग से निकला है, पहले कैनाबिस राल को चमड़े के बैग में संग्रहीत करके ले जाया जाता था, इस कारण इसका नाम चरस पड़ा।
परम्परागत विधि में चरस निकालने के लिए कैनाबिस पौधे के फूलों की राल को हाथ से रगड़ा जाता है। लगातार बहुत से कैनाबिस पौधे के फूलों को रगड़ने पर हाथों में एक परत सी जम जाती है। इस क्रिया से चिपचिपे ट्राइकोम्स की एक मोटी परत हथेलियों पर एकत्र होने लगती है जिसे रगड़कर छुड़ा लिया जाता है, यही चरस है।
अन्य विधि में गांजा (कैनाबिस) के पौधों को निचोड़कर, छानकर और सुखाकर इसे निकाला जाता है। इसे केक या ब्लॉक के रूप में रखा जाता है। इसका उत्पादन हिमाचल प्रदेश के अलावा नेपाल के पर्वतीय क्षेत्रों में होता है।
हैश, नरम या कठोर और भंगुर हो सकता है। यह लाल, काला, भूरा, हरा या पीले रंग का हो सकता है। हैश, तेल, मक्खन, या क्रीम जैसी चीजों में घुलनशील होता है। सामान्य तौर पर हैश, भांग का सबसे शक्तिशाली और केंद्रित रूप है। हैश और चरस में टीएचसी के उच्च स्तर होते हैं, जो कि गांजे (मारिजुआना) की तुलना में बहुत अधिक होता है।
मारिजुआना, आमतौर पर राल से निकाले गए हैश की तुलना में कम शक्तिशाली होता है। सामान्य रूप से मारिजुआना में 10-20 प्रतिशत THC की क्षमता हो सकती है, जबकि हैश में THC का स्तर 20 प्रतिशत से 60 प्रतिशत तक हो सकता है।
अफीम (Afeem) को भूमध्य सागरीय क्षेत्र में उगाया जाता है, इसका पौधा एक से डेढ़ मीटर ऊँचा होता है। अफीम जिसे ओपियम कहा जाता है, हमें पोस्त (Poppy) के पौधे से प्राप्त होती है। इसका रंग काला होता है और स्वाद कड़वा होता है, इसकी तासीर बहुत गर्म होती है।
विभिन्न दवाओं के निर्माण में अफीम का इस्तेमाल किया जाता है। दवा कंपनियों के मांग की पूर्ती करने के लिए अफीम या पोस्त की खेती भारत के कुछ क्षेत्रों में की जाती है। भारत में अफीम की खेती करने के लिए सरकार से अनुमति लेनी पड़ती है। भारत में इसकी खेती उत्तर प्रदेश , मध्यप्रदेश और राजस्थान के कुछ जिलों में की जाती है।
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अफीम को इसके पौधे के फूल के नीचे लगने वाले डोडे से प्राप्त किया जाता है, पोस्ता दाना इसका बीज है। इसके डोडे में एक विशेष प्रकार का दूध होता है, जिसे चीरा लगा कर निकाला जाता है। डोडे में चीरा लगाते ही सफ़ेद रंग का दूध निकलना शुरू हो जाता है, जिसे डोडे में ही छोड़ दिया जाता है।
यह दूध बाद में काला पड़ जाता है जिसे ख़ास किस्म के औज़ार से इकट्ठा कर लिया जाता है। अफीम से ही स्मैक, हेरोइन जैसे मादक पदार्थों के अलावा दर्द निवारक, खांसी एवं नींद की औषधियों का निर्माण होता है।
नशे के मामले में सबसे हानिकारक वर्ग में अफीम का ही नाम आता है। अफीम से स्मैक बनाते हैं। मध्यप्रदेश में पुलिस के हत्थे चढ़े तस्कर खुद ही इसकी प्रोसेस बता चुके हैं। जिसके अनुसार अफीम को चूने के साथ उबालकर केमिकल (एसिटेट एनहाइड्राइड) मिलाते हैं, इससे अफीम फट जाती है। इसे गाढ़ा होने तक उबालने के बाद इस घोल को सुखाकर पाउडर बनाया जाता है।
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इस प्रकार से बना पाउडर ही स्मैक है। इस विधि के जरिये एक किलो अफीम से 30 ग्राम स्मैक बनती है। लोकल में यह 40 से 45 लाख रुपए प्रति किलो में बिकती है। जबकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत करीब एक करोड़ रुपए प्रति किलो है।
अफीम से हेरोइन भी बनाई जाती है, पहले इसे परिष्कृत किया जाता है, फिर आगे रासायनिक क्रिया के जरिये हेरोइन बनाने के लिए संशोधित किया जाता है।
चेतावनी -
इस लेख का उद्देश्य केवल आपको मादक द्रव्यों की जानकारी से अवगत कराना है। भारत में ड्रग्स का उत्पादन, परिवहन, व्यवसाय एवं उपयोग दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है। इसमें 10 साल की जेल हो सकती है, अतः इससे बचकर रहने में ही भलाई है। याद रखें - नशा, नाश की जड़ है।
आशा है ये आर्टिकल "Drug Varieties- गांजा भांग, हशीश चरस और अफीम क्या है,कैसे बनता है?" आपको ज्ञानवर्धक लगा होगा। इसे अपने मित्रों तक शेयर कर सकते हैं। अपने सवाल और सुझाव कमेंट बॉक्स में लिखें। ऐसी ही और भी उपयोगी जानकारी के लिए इस वेबसाइट पर विज़िट करते रहें।
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