7Habits of Unhappy People-दुखी लोगों की 7आदतें
जिस तरह खुश रहने वाला व्यक्ति संक्रामक होता है और अपने आसपास के लोगों को खुश करने की क्षमता रखता है, उसी प्रकार एक दुखी व्यक्ति दुःख का वातावरण पैदा करता है। यह न केवल उसे प्रभावित करता है, बल्कि यह आसपास के लोगों को भी दुखी करता है।
कभी-कभी, हमारी नाखुशी कुछ परिस्थितियों के कारण होती है। परन्तु इसका एक बड़ा हिस्सा हमारी अपनी सोच, व्यवहार और आदतों से आता है। ये आदतें व्यक्ति के उदास या चिंतित महसूस करने की संभावनाओं को बढ़ाती हैं।
कभी-कभी, हमारी नाखुशी कुछ परिस्थितियों के कारण होती है। परन्तु इसका एक बड़ा हिस्सा हमारी अपनी सोच, व्यवहार और आदतों से आता है। ये आदतें व्यक्ति के उदास या चिंतित महसूस करने की संभावनाओं को बढ़ाती हैं।
दुखी रहने वाले अधिकांश लोग गलती से आत्म-हीनभावना को बनाए रखते हैं, जो उनमें खराब मूड और नकारात्मक दृष्टिकोण को बढ़ावा देने का कारण बनता है।
मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि इसे बदलना हमारी शक्ति के भीतर है। इन आदतों को बदलने के लिए कुछ त्वरित सुझावों के साथ दुखी लोगों द्वारा प्रदर्शित उनके सोच पैटर्न पर विचार करना आवश्यक है।
मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि इसे बदलना हमारी शक्ति के भीतर है। इन आदतों को बदलने के लिए कुछ त्वरित सुझावों के साथ दुखी लोगों द्वारा प्रदर्शित उनके सोच पैटर्न पर विचार करना आवश्यक है।
इस लेख में सबसे अधिक विनाशकारी दैनिक आदतों में से 7 का उल्लेख किया गया है जो आपके जीवन में दुख पैदा कर सकते हैं।मनोवैज्ञानिकों के अनुसार ये दुखी लोगों की वे आदतें हैं, जिनसे आपको बचने की आवश्यकता है।
विज्ञान के अनुसार दुखी लोगों की 7आदतें (7Habits of Unhappy People)
1. हमेशा दूसरों से तुलना करना -
दुखी लोग अक्सर ईर्ष्यालु और नाराज होते हैं। वे यह मानकर चलते हैं कि दूसरों की सफलताएं अवांछनीय हैं। इनका मानना होता है कि दूसरों के साथ सबकुछ अच्छा होता है और सारी बुराई मेरे साथ ही घटित होती है। इस प्रकार दूसरों से लगातार अपनी तुलना करते रहने से इनमें हीनभावना आती है, जो इन्हें दुखी रखती है।
इस विनाशकारी आदत के शिकार लोग दूसरोंके पैसे, घरों, कारों, नौकरियों और सामाजिक लोकप्रियता की तुलना लगातार अपने से करते रहते हैं। इससे वे अपने आत्मसम्मान को गिराते हैं और बहुत सारी नकारात्मक भावनाओं को पैदा करते हैं। क्योंकि उनके पास उतना पैसा नहीं है जितना उनके पड़ोसी के पास है अथवा उसके पास एक अच्छा काम है।
सामान्य और सकारात्मक व्यक्ति के लिए, अन्य लोगों की उपलब्धियाँ प्रेरित करने वाली होती हैं, परन्तु दुखी व्यक्ति अपनी आदत के अनुरूप इसे नकारात्मक रूप में लेता है और स्वयं को उदास बना लेता है। धीरे धीरे ऐसे लोग अपनी किसी उपलब्धि पर भी खुश नहीं हो पाते।
ऐसे लोगों को यह समझना होगा कि खुशी कोई सीमित वस्तु नहीं है, वहाँ सभी के लिए पर्याप्त अवसर है। इस विनाशकारी आदत को दो अन्य आदतों से बदलकर दूर कर सकते हैं -
ऐसे लोगों को यह समझना होगा कि खुशी कोई सीमित वस्तु नहीं है, वहाँ सभी के लिए पर्याप्त अवसर है। इस विनाशकारी आदत को दो अन्य आदतों से बदलकर दूर कर सकते हैं -
A. अपनी तुलना खुद से करें -
दूसरे लोगों से तुलना करने की बजाय खुद से तुलना करने की आदत बनाएं। देखें कि आप कितना आगे बढ़े हैं, आपने क्या हासिल किया है और अपने लक्ष्यों की दिशा में क्या प्रगति की है। इस आदत से आपमें खुद के प्रति कृतज्ञता, प्रशंसा और दयालुता का भाव उतपन्न होता है।
आप देख सकते हैं कि आपने कितनी बाधाएं सफलतापूर्वक पार की है और आपकी उपलब्धियां क्या हैं। इससे आप अन्य लोगों के बारे में कम सोचते हैं और अपने बारे में अच्छा महसूस करते हैं।
आप देख सकते हैं कि आपने कितनी बाधाएं सफलतापूर्वक पार की है और आपकी उपलब्धियां क्या हैं। इससे आप अन्य लोगों के बारे में कम सोचते हैं और अपने बारे में अच्छा महसूस करते हैं।
B. दयालु बनें -
अन्य लोगों के प्रति दयालु बनें और उनकी मदद करें इससे आप स्वयं के प्रति भी अधिक दयालु बन सकेंगे। आप जिस तरह से व्यवहार करते हैं और दूसरों के प्रति सोचते हैं, उससे पता लगता है कि आप अपने प्रति कैसा व्यवहार करते हैं और अपने बारे में क्या सोचते हैं।
अपने आप में ही नहीं बल्कि अपने आसपास के लोगों की सकारात्मक चीजों पर ध्यान दें। अपने और दूसरों में जो सकारात्मक है, उसकी सराहना करें।
इस तरह आप खुद को रैंकिंग करने और अपने मन में मतभेद पैदा करने के बजाय अधिक ठीक हो जाते हैं। याद रखें, यदि आप तुलना करते रहते हैं तो आप जीत नहीं सकते। बस होशपूर्वक यह एहसास मददगार हो सकता है।
कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप क्या काम करते हैं अथवा आपके पास कितना पैसा है। आपकी अपनी अलग विशेषता है जिसके बल पर आप दुनिया में किसी और चीज़ को पा सकते हैं जो किसी अन्य के पास उपस्थित किसी चीज से बेहतर है।
अतीत की पुरानी दर्दनाक यादों में बहुत समय व्यतीत करना और छूटे हुए अवसरों के बारे में सोचते रहना मानसिक स्वास्थ्य को बहुत नुकसान पहुंचा सकता है।
2. नकारात्मक यादों को रिकॉल करना-
दुखी लोगों में बीते समय की नकारात्मक बातों या घटनाओं पर ध्यान केंद्रित करने की आदत होती हैं। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, हमारी भावना और स्मृति के बीच एक पारस्परिक संबंध है। इसका अर्थ यह है कि जिन्हें हम याद करते हैं, वे यादें हमारी मनोदशा को प्रभावित करती हैं।अतीत की पुरानी दर्दनाक यादों में बहुत समय व्यतीत करना और छूटे हुए अवसरों के बारे में सोचते रहना मानसिक स्वास्थ्य को बहुत नुकसान पहुंचा सकता है।
उसी प्रकार भविष्य के बारे में बहुत अधिक सोचना और कल्पना करना कि आगे चलकर काम में और स्वास्थ्य के साथ क्या क्या गलत हो सकता है, स्व-संदेह पैदा करता है और भयावह परिदृश्यों का निर्माण कर सकता है। यह सब दुखी आदमी के सिर में चलता रहता है और यह खेल उसे दुखी बनाता है।
इस आदत को दूर करने के लिए अपना अधिकांश समय वर्तमान में ध्यान केंद्रित करते हुए बिताना आवश्यक है। वास्तव में अतीत या भविष्य के बारे में कुछ भी न सोचना लगभग असंभव है। आने वाले कल या अगले साल की योजना बनाना और अपने अतीत से सीखने की कोशिश करना निश्चित रूप से महत्वपूर्ण है।
लेकिन उन चीजों पर अपना फोकस बनाये रखना किसी प्रकार लाभकारी नहीं होता है। अगर आप खुश रहना चाहते हैं तो जो भी करें वहां पूरी तरह मौजूद रहें, इससे मन भविष्य या अतीत में नहीं बहता।
इस आदत को दूर करने के लिए अपना अधिकांश समय वर्तमान में ध्यान केंद्रित करते हुए बिताना आवश्यक है। वास्तव में अतीत या भविष्य के बारे में कुछ भी न सोचना लगभग असंभव है। आने वाले कल या अगले साल की योजना बनाना और अपने अतीत से सीखने की कोशिश करना निश्चित रूप से महत्वपूर्ण है।
लेकिन उन चीजों पर अपना फोकस बनाये रखना किसी प्रकार लाभकारी नहीं होता है। अगर आप खुश रहना चाहते हैं तो जो भी करें वहां पूरी तरह मौजूद रहें, इससे मन भविष्य या अतीत में नहीं बहता।
3. निराशावादी सोच रखना -
दुखी लोग निराशावादी सोच रखते हैं।शोध के अनुसार, अनुचित निराशावाद जीवन को दुखी करता है क्योंकि निराशावादी के विचारों में अत्यधिक मात्रा में भय, चिंता और तनाव होता है। निराशावादी किसी स्थिति के सकारात्मक पहलुओं को भूलते हुए नकारात्मक संकेतों पर अधिक ध्यान देता है। वह गुलाब में भी कांटे गिनना अधिक पसंद करता है।
विशेषज्ञों के अनुसार, आप दूसरों को कितना सकारात्मक रूप से देखते हैं, इससे पता चलता है कि आप स्वयं से कितने खुश हैं। दूसरों के प्रति आपकी धारणाएं आपके स्वयं के व्यक्तित्व के बारे में बहुत कुछ बताती हैं।
किसी व्यक्ति का सकारात्मक शब्दों में दूसरों का वर्णन करने की प्रवृत्ति, उसके स्वयं के सकारात्मक व्यक्तित्व के लक्षणों से आती है। दूसरे शब्दों में, दूसरों को नकारात्मक रूप से आंकना हमारे अपने नकारात्मक लक्षणों से उपजता है।
इसके अलावा जब वांछित लक्ष्य की ओर रास्ते में बाधाओं का सामना करना पड़ता है तब निराशावादी लोग आसानी से पीछे हट जाते हैं। अध्ययन के अनुसार निराशावादी विचारों से डिप्रेशन और आत्महत्या हो सकती है। आत्महत्या के प्रयास अंतिम निराशावादी स्थिति और अत्यधिक निराशा को दर्शाते हैं।
जीवन को नकारात्मक दृष्टिकोण से देखने पर खुश होना बहुत मुश्किल हो जाता है। ऐसे लोग इस बात को मानकर चलते हैं कि उनका जीवन हमेशा दुख, भय और चिंता से भरा रहेगा।
इस आदत को दूर करने के लिए अपना दृष्टिकोण, नकारात्मक से सकारात्मक करना होगा। इससे आपके सामने एक पूरी नई दुनिया होगी। इसके लिए सकारात्मक लोगों के साथ अधिक समय बिताएं, प्रेरणादायक प्रवचन सुनें और किताबें पढ़ें।
उन फिल्मों और टीवी-शो को देखें, जो आपको हंसाते हैं और जीवन के बारे में नए तरीके से सोचने की दिशा देते हैं। छोटी शुरुआत करने के लिए मोटिवेशनल ब्लॉग पढ़ सकते हैं और सुबह पेपर पढ़ने या टीवी पर कोई नकारात्मक खबर देखने की जगह एक ऑडियो बुक सुन सकते हैं।
परिणाम बताते हैं कि जब शारीरिक गतिविधि बढ़ जाती है, तो समय के साथ मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। दुखी व्यक्ति शारीरिक रूप से जितना अधिक सक्रिय होगा, उतनी ही तेज़ी से वह अपने आपको सुधारकर ख़ुशी की ओर बढ़ सकेगा।
इससे बचने के लिए समाजिक भागीदारी बढ़ाने की आवश्यकता है।अध्ययन से पता चलता है कि सामाजिक अलगाव, स्वास्थ्य जोखिम पैदा करता है। एक छोटे से दायरे में रहना और सामाजिक नेटवर्क न होना, शारीरिक स्वास्थ्य के निम्न स्तर के साथ जुड़ा हुआ है। लोगों से संबंध सुधारकर व्यक्ति दुखी होने से बच सकता है।
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विशेषज्ञों के अनुसार, आप दूसरों को कितना सकारात्मक रूप से देखते हैं, इससे पता चलता है कि आप स्वयं से कितने खुश हैं। दूसरों के प्रति आपकी धारणाएं आपके स्वयं के व्यक्तित्व के बारे में बहुत कुछ बताती हैं।
किसी व्यक्ति का सकारात्मक शब्दों में दूसरों का वर्णन करने की प्रवृत्ति, उसके स्वयं के सकारात्मक व्यक्तित्व के लक्षणों से आती है। दूसरे शब्दों में, दूसरों को नकारात्मक रूप से आंकना हमारे अपने नकारात्मक लक्षणों से उपजता है।
जीवन को नकारात्मक दृष्टिकोण से देखने पर खुश होना बहुत मुश्किल हो जाता है। ऐसे लोग इस बात को मानकर चलते हैं कि उनका जीवन हमेशा दुख, भय और चिंता से भरा रहेगा।
इस आदत को दूर करने के लिए अपना दृष्टिकोण, नकारात्मक से सकारात्मक करना होगा। इससे आपके सामने एक पूरी नई दुनिया होगी। इसके लिए सकारात्मक लोगों के साथ अधिक समय बिताएं, प्रेरणादायक प्रवचन सुनें और किताबें पढ़ें।
उन फिल्मों और टीवी-शो को देखें, जो आपको हंसाते हैं और जीवन के बारे में नए तरीके से सोचने की दिशा देते हैं। छोटी शुरुआत करने के लिए मोटिवेशनल ब्लॉग पढ़ सकते हैं और सुबह पेपर पढ़ने या टीवी पर कोई नकारात्मक खबर देखने की जगह एक ऑडियो बुक सुन सकते हैं।
4. आलसी प्रवृति का होना -
गतिहीन जीवन शैली, दुखी लोगों की आदत बन जाती है। ये लोग काम करने की जगह सोचते रहते हैं और दुखी होते रहते हैं। वयस्कों के एक समूह पर दस साल तक किये गए अध्ययन में पाया गया कि शारीरिक गतिविधि और मानसिक स्वास्थ्य के बीच एक संबंध है।परिणाम बताते हैं कि जब शारीरिक गतिविधि बढ़ जाती है, तो समय के साथ मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। दुखी व्यक्ति शारीरिक रूप से जितना अधिक सक्रिय होगा, उतनी ही तेज़ी से वह अपने आपको सुधारकर ख़ुशी की ओर बढ़ सकेगा।
5. शत्रुतापूर्ण स्वभाव -
जो लोग दुखी होते हैं, वे ज्यादातर समय शत्रुतापूर्ण होते हैं और लोगों के प्रति इनका नजरिया मित्रतापूर्ण न होकर दुश्मनी भरा होता है। इस बारे में किये गए अध्ययन के परिणाम बताते हैं कि शत्रुतापूर्ण स्वभाव, सामाजिक तनाव का पूर्वसूचक है। शत्रुतापूर्ण मूड से उतपन्न तनाव व्यक्ति को खुश नहीं रहने देता और उसे दुःख की तरफ ले जाता है।इससे बचने के लिए समाजिक भागीदारी बढ़ाने की आवश्यकता है।अध्ययन से पता चलता है कि सामाजिक अलगाव, स्वास्थ्य जोखिम पैदा करता है। एक छोटे से दायरे में रहना और सामाजिक नेटवर्क न होना, शारीरिक स्वास्थ्य के निम्न स्तर के साथ जुड़ा हुआ है। लोगों से संबंध सुधारकर व्यक्ति दुखी होने से बच सकता है।
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6. आध्यात्मिकता का अभाव -
दुखी लोग भौतिक चीजों को बहुत अधिक महत्व देते हैं और इनके जीवन में आध्यात्मिकता का अभाव होता है। एक अध्ययन के अनुसार जो लोग भौतिकवादी होते हैं, उनके दुखी होने की संभावना अधिक होती है। भौतिकवाद और जीवन की संतुष्टि के बीच संबंध का परीक्षण किया गया तो पाया गया कि भौतिक चीजों की अति लालसा आदमी को हमेशा दुखी रखती है।
संसार में चीजों की भरमार है, यहां एक वस्तु पाने के बाद दूसरी किसी वस्तु को पाने की चाह पैदा हो जाती है और यह क्रम निरंतर चलता रहता है। इस दुष्चक्र में फंसा व्यक्ति इन्हें भोगने की बजाय और पाने की धुन में हमेशा लगा रहता है, जिसके कारण वह हमेशा परेशान और चिंतित रहता है। इस चक्र को समझने की जरूरत है।
इसके लिए व्यक्ति को आत्मतत्व का बोध होना जरूरी है। आध्यात्मिकता के जरिये जीवन में जो कुछ मिला है उसके प्रति एक अहोभाव पैदा होता है साथ ही हम आवश्यकता और तृष्णा का भेद समझ पाते हैं। अपने जीवन में ध्यान (Meditation) को स्थान देकर हम अपनी तृष्णा को मिटाने में सफल हो सकते हैं।
दुखी लोग शराब बहुत पीते हैं। अध्ययन से इस बात की पुष्टि होती है कि शराब के दुरुपयोग और नाखुशी के बीच एक मजबूत संबंध है। शराब पीने की आदत से उदासी और चिंता का क्रम टूटने की बजाय और बढ़ता जाता है। किशोर उम्र में शराब पीने की आदत लगने की अधिक संभावना होती है।
सुस्त पड़े रहना और व्यायाम रहित जीवनशैली, इनकी एक और आदत होती है।अध्ययनों से पता चलता है कि जो लोग व्यायाम करते हैं या हरियाली से भरी जगह पर घूमने का समय निकालते हैं, वे उन लोगों की तुलना में अधिक खुश होते हैं जो दिन भर अपनी कुर्सी पर जमे रहते हैं और इन चीज़ों के लिए समय नहीं निकालते।
संसार में चीजों की भरमार है, यहां एक वस्तु पाने के बाद दूसरी किसी वस्तु को पाने की चाह पैदा हो जाती है और यह क्रम निरंतर चलता रहता है। इस दुष्चक्र में फंसा व्यक्ति इन्हें भोगने की बजाय और पाने की धुन में हमेशा लगा रहता है, जिसके कारण वह हमेशा परेशान और चिंतित रहता है। इस चक्र को समझने की जरूरत है।
इसके लिए व्यक्ति को आत्मतत्व का बोध होना जरूरी है। आध्यात्मिकता के जरिये जीवन में जो कुछ मिला है उसके प्रति एक अहोभाव पैदा होता है साथ ही हम आवश्यकता और तृष्णा का भेद समझ पाते हैं। अपने जीवन में ध्यान (Meditation) को स्थान देकर हम अपनी तृष्णा को मिटाने में सफल हो सकते हैं।
7. अस्वास्थ्यकर रहन सहन -
दुखी लोगों की अधिकांश आदतें मनोवैज्ञानिक हैं, लेकिन इनकी सबसे आम शारीरिक आदतों में से एक है खान पान में पौष्टिकता की कमी और व्यायाम का अभाव। शोध से पाया गया है कि चिंता और अवसाद, पौष्टिक खाद्य पदार्थों की कमी से जुड़े हैं और आहार में सुधार का उपयोग, अवसाद के प्रबंधन के लिए किया जा सकता है।दुखी लोग शराब बहुत पीते हैं। अध्ययन से इस बात की पुष्टि होती है कि शराब के दुरुपयोग और नाखुशी के बीच एक मजबूत संबंध है। शराब पीने की आदत से उदासी और चिंता का क्रम टूटने की बजाय और बढ़ता जाता है। किशोर उम्र में शराब पीने की आदत लगने की अधिक संभावना होती है।
सुस्त पड़े रहना और व्यायाम रहित जीवनशैली, इनकी एक और आदत होती है।अध्ययनों से पता चलता है कि जो लोग व्यायाम करते हैं या हरियाली से भरी जगह पर घूमने का समय निकालते हैं, वे उन लोगों की तुलना में अधिक खुश होते हैं जो दिन भर अपनी कुर्सी पर जमे रहते हैं और इन चीज़ों के लिए समय नहीं निकालते।
Conclusion -
दुखी लोगों की उपर्युक्त आदतें इस बात का प्रमाण हैं कि उनकी सोच यह है कि जीवन में दुःख की तुलना में खुशी बहुत कम है और यह परिस्थितियों पर निर्भर है। वास्तव में, खुशी आपके नियंत्रण में है। यह आपकी आदतों और जीवन के प्रति आपके दृष्टिकोण का उत्पाद है। विशेषज्ञ के अनुसार जीवन की परिस्थितियों का प्रभाव एक व्यक्ति की खुशी पर केवल 10% है।
बाकी आप पर निर्भर करता है।
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बाकी आप पर निर्भर करता है।
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