Risk of Margin or Leverage-शेयर ट्रेडिंग में मार्जिन का मायाजाल
शेयर ट्रेडिंग में अपने ट्रेड का आकार बढ़ाने के लिए लीवरेज (Leverage) का सहारा ट्रेडर्स द्वारा लिया जाता है, जिसे मार्जिन ट्रेडिंग भी कहा जाता है। लीवरेज का शाब्दिक अर्थ समझने के लिए आप एक लीवर की कल्पना कर सकते हैं, जिसकी सहायता से कम शक्ति लगाकर भारी वजन को उठाया जाता है।
इसी प्रकार शेयर ट्रेडिंग में अपने ब्रोकर से उधार लेकर अपने ट्रेडिंग अकाउंट में उपलब्ध पैसों से किये जा सकने वाले ट्रेड को कई गुना (times) बड़ा कर सकते हैं। इस प्रकार लीवरेज ट्रेडिंग के जरिये आपके ट्रेड का आकार बहुत बड़ा हो जाता है ताकि आप संभावित रूप से अधिक पैसा बना सकें।
इसी प्रकार शेयर ट्रेडिंग में अपने ब्रोकर से उधार लेकर अपने ट्रेडिंग अकाउंट में उपलब्ध पैसों से किये जा सकने वाले ट्रेड को कई गुना (times) बड़ा कर सकते हैं। इस प्रकार लीवरेज ट्रेडिंग के जरिये आपके ट्रेड का आकार बहुत बड़ा हो जाता है ताकि आप संभावित रूप से अधिक पैसा बना सकें।
ऑप्शन ट्रेडिंग, फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट्स, और इंट्राडे के लिए मार्जिन पर शेयर खरीदना या शार्ट करना सभी लीवरेज ट्रेडिंग के उदाहरण हैं। आपको कितना लीवरेज मिलेगा यह फिक्स नहीं होता, यह उस स्टॉक की केटेगरी, वोलैटिलिटी और ब्रोकर की पालिसी पर निर्भर करता है।
जब शेयर मार्केट बहुत अधिक वोलेटाइल होता है तब सेबी (SEBI) द्वारा दिए जाने वाले दिशा निर्देश पर भी लीवरेज निर्भर करता है, जिसके अनुसार ब्रोकर (Broker), ट्रेडर से मार्जिन की मांग करते हैं। कुछ ब्रोकर इंट्राडे के लिए 10 से 20 गुना तक Leaverage देते हैं।
जब शेयर मार्केट बहुत अधिक वोलेटाइल होता है तब सेबी (SEBI) द्वारा दिए जाने वाले दिशा निर्देश पर भी लीवरेज निर्भर करता है, जिसके अनुसार ब्रोकर (Broker), ट्रेडर से मार्जिन की मांग करते हैं। कुछ ब्रोकर इंट्राडे के लिए 10 से 20 गुना तक Leaverage देते हैं।
इसका मतलब यह हुआ कि आपका ब्रोकर जितना लीवरेज देता है, आपकी राशि (Amount) उतने गुणा हो जाती है और आप उस हिसाब से ट्रेड कर सकते हैं।
यहां यह समझने की भूल न करें कि ब्रोकर ने आपके पैसों को 20 गुना कर दिया है और अब आप शेयर बेचकर उसे कैश में बदलकर उन पैसों को निकाल लेंगे। ऐसा नहीं होता क्योंकि जैसे ही आप सौदे से एग्जिट करते हैं वैसे ही लीवरेज गायब हो जाता है। केवल इस सौदे के लॉस या प्रॉफिट को एडजस्ट करने के बाद आपका स्वयं का बचा हुआ एमाउंट ही शेष रह जाता है।
लीवरेज को रेश्यो में शो किया जाता है। मान लीजिये आप किसी कंपनी के कुछ शेयर खरीदना चाहते हैं जिनका टोटल मूल्य 1 लाख रूपये है। इसके लिए आपका ब्रोकर आपसे 20 हजार रूपये मार्जिन लगाने की मांग करता है तो मार्जिन हुआ 20% और लीवरेज हुई 5:1. इसे एक उदाहरण से समझते हैं -
Example -
मान लीजिये आपके पास 10000 रुपए हैं। आपको इंट्राडे ट्रेड के लिए कोई शेयर खरीदना है अगर उसकी प्राइस 100 रुपए है तो आप अपने पैसों से 100 शेयर खरीद सकते हैं, यदि उस दिन शेयर की कीमत 105 रुपए हो जाती है तो आपको 500 रुपए का लाभ होता है।
परन्तु यदि आपका ब्रोकर उस शेयर के लिए 20 गुना लीवरेज देता है तो आपकी राशि 10000 का 20 गुना करने पर 2 लाख हो जाती है। इस तरह आप 100 रुपए कीमत वाले 2000 शेयर खरीद सकते हैं, फिर शेयर की कीमत 105 रुपए होने पर सौदे से एग्जिट करके आप 10 हजार रुपए का लाभ प्राप्त कर सकते हैं। क्योंकि आपने अपने ट्रेड का आकार बढ़ाकर शेयर्स की संख्या 100 से 2000 करली, इसलिए आपका लाभ 5 रूपये प्रति शेयर के हिसाब से 2000 x 5 = 10000/- हो गया।
यह सब लीवरेज के जरिये सम्भव हुआ, जिससे ट्रेडिंग अकाउंट में कम राशि होने पर भी आप ज्यादा शेयर खरीद कर ट्रेड करके अधिक मुनाफा प्राप्त कर सके।
यहां पर इसका दूसरा पक्ष भी समझ लीजिये। यदि आप 20 गुना लीवरेज लेकर ट्रेड कर रहे हैं और शेयर का भाव टूटना शुरू हो जाता है और आपके एग्जिट करते समय 5 रुपए कम होकर 95 रुपए होता है तब आपको 10 हजार रुपए का नुकसान (loss) होगा इस तरह आपको अपनी पूरी कैपिटल से हाथ धोना पड़ेगा।
इस कारण नए ट्रेडर के लिए इसे काफी रिस्की माना जाता है। क्योंकि दिशा गलत पड़ने पर आपका नुकसान भी उतना ही बड़ा होता है। आइये कुछ बिंदुओं के जरिये लीवरेज या मार्जिन के मायाजाल को समझते हैं।
जब किसी ट्रेडर को लगता है कि आने वाले 2 -4 दिनों में किसी शेयर का भाव तेज़ी से बढ़ सकता है तब पोज़िशनल ट्रेडिंग के लिए वह Leverage का लाभ लेता है। इससे उसकी buying कैपेसिटी बहुत बढ़ जाती है साथ ही लाभ की संभावना भी कई गुना हो जाती है।
अगर इंट्राडे में आप अपने 10 हजार रुपयों से 10 गुना लीवरेज लेकर 1 लाख रूपये का ट्रेड लेते हैं और स्टॉक आपकी सोची हुई दिशा के विपरीत चलना शुरू हो जाता है। अब यदि आप उस सौदे से एग्जिट नहीं करते हैं तो ब्रोकर का सॉफ्टवेयर या सिस्टम, नुकसान की सीमा 10 हजार तक पहुंचने के पहले ही आपको सौदे से बाहर कर देगा और आपकी ओपन पोजीशन समाप्त कर दी जायेगी, अगर आप सौदे में बने रहना चाहते हैं तो एग्जिट किये जाने के पहले आपको अपने ट्रेडिंग अकाउंट में और पैसे डालने पड़ेंगे।
आपको मिनिमम मार्जिन भी मेन्टेन करना पड़ता है मान लीजिये किसी फ़्यूचर्स के1 लॉट को लेने के लिए 70 हजार रूपये की मिनिमम मार्जिन की जरूरत है तो आपको यह ध्यान रखना पड़ता है कि लॉस होने की दशा में उतना पैसा ट्रेडिंग अकाउंट में डालकर उसे 70 हजार पर मेन्टेन रखा जाए। क्योंकि ब्रोकर आपके अकाउंट को M2M बेसिस पर अपडेट रखता है।
अर्थात 70 हजार रूपये से खरीदे गए फ्यूचर के 1 लॉट में शेयर का भाव नीचे आने पर यदि उस दिन का नुकसान 5 हजार रूपये होता है तो आपके अकाउंट से यह राशि घटा दी जाएगी और वहां 65 हजार रूपये रह जायेंगे।
इस तरह आपको 5 हजार रूपये और डालकर अपनी पोजीशन मेन्टेन करना पड़ेगा। ब्रोकर ऐसा इसलिए करता है कि अगले दिन बड़ी गैप अप या गैप डाउन ओपनिंग होने पर उसे किसी प्रकार का रिस्क न होने पाए।
यदि कहीं से अरेंज करके एक बार ये पैसे डाल भी दिए जाए तब भी इसकी गारंटी नहीं होती कि आप उस ट्रेड से कमा कर ही निकलेंगे। पूरे चांस इस बात के होते हैं कि आपके ये पैसे भी डूब जाएँ। कई बार इंडेक्स या स्टॉक किसी एक तरफ की चाल पकड़ता है, तब ये अनुमान लगाना असम्भव होता है कि यह चाल कहां जाकर रुकेगी। ऐसे में कोई ट्रेडर एग्जिट करने की जगह और मार्जिन डालकर सौदे में बना रहना चाहेगा तो उसका बचना बहुत मुश्किल है। वह पूरी तरह बर्बाद हो सकता है।
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यह भी हो सकता है कि अनुभव के बावजूद आप अपने सौदे प्रॉफिट में नहीं काट पाते और आपको लॉस ही होता है तो अभी आपको और अभ्यास की जरूरत है। इसके लिए कम संख्या में शेयर लेकर और सीखिए।लीवरेज आपके लिए बिलकुल भी सही नहीं होगा क्योंकि इससे आपका नुकसान कई गुना हो जाने वाला है।
आप सोच सकते हैं कि एक बार बड़ा मुनाफा लेकर अपने पिछले घाटे को पूरा कर लेंगे पर आप बड़े मुनाफे के चक्कर में और ज्यादा नुकसान कर बैठेंगे। जब तक किसी ट्रेडर को इंडिकेटर (Indicator), कैंडलस्टिक पैटर्न (Candlestick Pattern), स्टॉपलॉस (Stoploss) और मनी मैनेजमेंट की समझ आने के साथ इसे अपने ट्रेड में लागू करने की प्रैक्टिस सही तरीके से न हो जाए तब तक Leverage लेकर काम करना अपने रिस्क को जान बूझकर बड़ा करके अपना पूरा पैसा डुबाने की तरफ बढ़ना है।
आशा है ये आर्टिकल "Risk of Margin or Leverage-शेयर ट्रेडिंग में मार्जिन का मायाजाल " आपको शेयर मार्केट को और ज्यादा समझने में सहायक सिद्ध होगा। इसे अपने मित्रों को शेयर कर सकते हैं जिससे उन्हें भी इसका लाभ मिल सके। अपने सवाल एवं सुझाव कमेंट बॉक्स में लिखें। शेयर बाजार के अन्य रहस्यों को समझने के लिए इस वेबसाइट पर विज़िट करते रहें।
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यहां पर इसका दूसरा पक्ष भी समझ लीजिये। यदि आप 20 गुना लीवरेज लेकर ट्रेड कर रहे हैं और शेयर का भाव टूटना शुरू हो जाता है और आपके एग्जिट करते समय 5 रुपए कम होकर 95 रुपए होता है तब आपको 10 हजार रुपए का नुकसान (loss) होगा इस तरह आपको अपनी पूरी कैपिटल से हाथ धोना पड़ेगा।
इस कारण नए ट्रेडर के लिए इसे काफी रिस्की माना जाता है। क्योंकि दिशा गलत पड़ने पर आपका नुकसान भी उतना ही बड़ा होता है। आइये कुछ बिंदुओं के जरिये लीवरेज या मार्जिन के मायाजाल को समझते हैं।
शेयर ट्रेडिंग में मार्जिन का मायाजाल
1. क्या कोई Extra Charge देना पड़ेगा -
इंट्राडे ट्रेडिंग के लिए लीवरेज प्राप्त करने पर किसी तरह का अतिरिक्त चार्ज ब्रोकर को नहीं दिया जाता। परन्तु जब कुछ ट्रेडर 5 या अधिक दिनों के लिए आपको यह सुविधा देते हैं तो वे प्रतिदिन के हिसाब से कुछ ब्याज चार्ज करते हैं।जब किसी ट्रेडर को लगता है कि आने वाले 2 -4 दिनों में किसी शेयर का भाव तेज़ी से बढ़ सकता है तब पोज़िशनल ट्रेडिंग के लिए वह Leverage का लाभ लेता है। इससे उसकी buying कैपेसिटी बहुत बढ़ जाती है साथ ही लाभ की संभावना भी कई गुना हो जाती है।
2. ब्रोकर को क्या फायदा होता है -
लीवरेज लेकर ट्रेड करने पर ट्रेड का साइज बहुत बड़ा हो जाता है इससे जो ब्रोकर, ट्रेडिंग अमाउंट के पर्सेंटेज बेसिस पर ब्रोकरेज वसूलते हैं उन्हें बहुत लाभ होता है।3. क्या ब्रोकर को रिस्क होता है -
आप सोच रहे होंगे ब्रोकर आपकी रकम से 20 गुना बड़ा ट्रेड करने की अनुमति देता है तो उसका रिस्क होता होगा या क्या उसे नुकसान हो सकता है? ऐसा बिलकुल भी नहीं होता और सारा रिस्क आपका होता है।अगर इंट्राडे में आप अपने 10 हजार रुपयों से 10 गुना लीवरेज लेकर 1 लाख रूपये का ट्रेड लेते हैं और स्टॉक आपकी सोची हुई दिशा के विपरीत चलना शुरू हो जाता है। अब यदि आप उस सौदे से एग्जिट नहीं करते हैं तो ब्रोकर का सॉफ्टवेयर या सिस्टम, नुकसान की सीमा 10 हजार तक पहुंचने के पहले ही आपको सौदे से बाहर कर देगा और आपकी ओपन पोजीशन समाप्त कर दी जायेगी, अगर आप सौदे में बने रहना चाहते हैं तो एग्जिट किये जाने के पहले आपको अपने ट्रेडिंग अकाउंट में और पैसे डालने पड़ेंगे।
आपको मिनिमम मार्जिन भी मेन्टेन करना पड़ता है मान लीजिये किसी फ़्यूचर्स के1 लॉट को लेने के लिए 70 हजार रूपये की मिनिमम मार्जिन की जरूरत है तो आपको यह ध्यान रखना पड़ता है कि लॉस होने की दशा में उतना पैसा ट्रेडिंग अकाउंट में डालकर उसे 70 हजार पर मेन्टेन रखा जाए। क्योंकि ब्रोकर आपके अकाउंट को M2M बेसिस पर अपडेट रखता है।
अर्थात 70 हजार रूपये से खरीदे गए फ्यूचर के 1 लॉट में शेयर का भाव नीचे आने पर यदि उस दिन का नुकसान 5 हजार रूपये होता है तो आपके अकाउंट से यह राशि घटा दी जाएगी और वहां 65 हजार रूपये रह जायेंगे।
इस तरह आपको 5 हजार रूपये और डालकर अपनी पोजीशन मेन्टेन करना पड़ेगा। ब्रोकर ऐसा इसलिए करता है कि अगले दिन बड़ी गैप अप या गैप डाउन ओपनिंग होने पर उसे किसी प्रकार का रिस्क न होने पाए।
4. ट्रेडर का रिस्क क्या है (Risk of Margin or Leverage) -
A. ट्रेड क्लोज होने का डर -
ब्रोकर अपने सिस्टम में ऐसी व्यवस्था रखते हैं कि जब आपका नुकसान आपके मार्जिन के करीब पहुंचने लगता है तब आपको एक मार्जिन कॉल मिलती है। जिसमें आपको अलर्ट किया जाता है कि अब या तो अपने ट्रेड को नुकसान के साथ बंद कर दीजिये या अपने मार्जिन को मेन्टेन रखने के लिए अपने खाते में अतिरिक्त पैसे डालिये।ऐसा नहीं करने पर ऑटोमेटिकली आपका ट्रेड क्लोज हो जाता है।B. ट्रेडिंग अकाउंट जीरो होने का रिस्क-
मार्जिन ट्रेडिंग किसी भी ट्रेडर के लिए सबसे विनाशकारी अनुभवों में से एक है। विशेषकर नए ट्रेडर के लिए जिसकी पूरी पूँजी किसी एक मार्जिन ट्रेड में साफ़ हो सकती है। यह तब होता है जब आपकी इक्विटी एक विशिष्ट बिंदु से नीचे चली जाती है, और आपके पास अपना मिनिमम मार्जिन मेन्टेन करने के लिए अतिरिक्त पैसे भी नहीं होते।यदि कहीं से अरेंज करके एक बार ये पैसे डाल भी दिए जाए तब भी इसकी गारंटी नहीं होती कि आप उस ट्रेड से कमा कर ही निकलेंगे। पूरे चांस इस बात के होते हैं कि आपके ये पैसे भी डूब जाएँ। कई बार इंडेक्स या स्टॉक किसी एक तरफ की चाल पकड़ता है, तब ये अनुमान लगाना असम्भव होता है कि यह चाल कहां जाकर रुकेगी। ऐसे में कोई ट्रेडर एग्जिट करने की जगह और मार्जिन डालकर सौदे में बना रहना चाहेगा तो उसका बचना बहुत मुश्किल है। वह पूरी तरह बर्बाद हो सकता है।
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5. लीवरेज ट्रेडिंग किसके लिए है -
नए ट्रेडर के लिए यह खतरनाक है। जो ट्रेडर लम्बे समय से शेयर मार्केट में ट्रेड कर रहे हैं वे थोड़ी लीवरेज लेकर अवश्य ट्रेड कर सकते हैं। अगर आपको कुछ सालों का ट्रेडिंग का अनुभव है और अब आपके अधिकतर सौदे प्लस में कटते हैं तो आपके लिए लीवरेज बहुत फायदेमंद हो सकता है।यह भी हो सकता है कि अनुभव के बावजूद आप अपने सौदे प्रॉफिट में नहीं काट पाते और आपको लॉस ही होता है तो अभी आपको और अभ्यास की जरूरत है। इसके लिए कम संख्या में शेयर लेकर और सीखिए।लीवरेज आपके लिए बिलकुल भी सही नहीं होगा क्योंकि इससे आपका नुकसान कई गुना हो जाने वाला है।
आप सोच सकते हैं कि एक बार बड़ा मुनाफा लेकर अपने पिछले घाटे को पूरा कर लेंगे पर आप बड़े मुनाफे के चक्कर में और ज्यादा नुकसान कर बैठेंगे। जब तक किसी ट्रेडर को इंडिकेटर (Indicator), कैंडलस्टिक पैटर्न (Candlestick Pattern), स्टॉपलॉस (Stoploss) और मनी मैनेजमेंट की समझ आने के साथ इसे अपने ट्रेड में लागू करने की प्रैक्टिस सही तरीके से न हो जाए तब तक Leverage लेकर काम करना अपने रिस्क को जान बूझकर बड़ा करके अपना पूरा पैसा डुबाने की तरफ बढ़ना है।
आशा है ये आर्टिकल "Risk of Margin or Leverage-शेयर ट्रेडिंग में मार्जिन का मायाजाल " आपको शेयर मार्केट को और ज्यादा समझने में सहायक सिद्ध होगा। इसे अपने मित्रों को शेयर कर सकते हैं जिससे उन्हें भी इसका लाभ मिल सके। अपने सवाल एवं सुझाव कमेंट बॉक्स में लिखें। शेयर बाजार के अन्य रहस्यों को समझने के लिए इस वेबसाइट पर विज़िट करते रहें।
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