IsOptionSelling Profitable- क्या ऑप्शन सेलिंग प्रॉफिटेबल है?
शेयर बाज़ार में आने वाला नया ट्रेडर जब कैश में स्टॉक खरीदी- बिक्री को समझने लगता है तब अगला कदम वह futures और options की तरफ बढ़ाता है। यहां उसे स्टॉक या इंडेक्स के लॉट साइज़ और एक्सपायरी डेट के आधार पर ट्रेड करना होता है।
निवेशक जहां अपनी पोजीशन को ऑप्शन के जरिये हेज करते हैं, वही ट्रेडर्स के लिए ऑप्शन, पैसे कमाने का एक जरिया होते हैं। काल या पुट खरीदकर स्टॉक या इंडेक्स में अपनी तेजी या मंदी की पोजीशन बनाई जा सकती है और इसके लिए futures की तुलना में अपेक्षाकृत कम पैसों की जरूरत पड़ती है।
परन्तु गौर करने वाली बात यह है कि 80% से अधिक ऑप्शन बायर (buyer) यहां लॉस बुक करके निकलते हैं, वहीं ऑप्शन सेलर (seller) के पैसे कमाने के चान्सेस उतने ही अधिक होते हैं। ऐसा क्यों होता है इसकी चर्चा हम इस आर्टिकल में करेंगे, जिससे आप समझ सकते हैं कि बाजार कैसे ऑप्शन सेलर्स के पक्ष में अधिक होता है। तब आप ऑप्शन बायर होने से पहले एक बार फिर से विचार कर सकते हैं।
जब हम ऑप्शन के जरिये ट्रेडिंग की बात करते हैं, तब हमें अक्सर उपयोग किये जाने वाले कुछ शब्द सुनने को मिलते हैं, जिनका अर्थ हमें समझना होगा-
A. स्वाभाविक और समय मूल्य (intrinsic and time value) -
किसी ऑप्शन का मूल्य उसके स्वाभाविक मूल्य (intrinsic value) और समय मूल्य (time value) से मिलकर बनता है। किसी ऑप्शन की प्राइस (मूल्य) उसकी संभावनाओं से आंकी जाती है, जिसका निर्धारण इस आधार पर होता है कि ऑप्शन की समय सीमा (time limit) समाप्ति पर उसके इन दि मनी या आउट ऑफ़ मनी होने की संभावना है।
स्टॉक की अस्थिरता (volatility) भी ऑप्शन का मूल्य निर्धारित करने वाला प्रमुख घटक है। ज्यादातर जब volatility बढ़ी हुई होती है तो ऑप्शन का price भी बढ़ता है।
किसी ऑप्शन के स्वाभाविक मूल्य की गणना ऑप्शन स्ट्राइक price को spot price से घटा कर की जाती है। समय मूल्य (time value), स्वाभाविक मूल्य के ऊपर की राशि है जो खरीदार किसी ऑप्शन के लिए चुकाता है।
ऑप्शन बायर मानता है कि ऑप्शन समय-सीमा समाप्त होने से पहले स्टॉक का मूल्य तेजी से बढ़ेगा। जैसे जैसे ऑप्शन की एक्सपायरी डेट नजदीक आती है, इसका टाइम वैल्यू कम होने लगता है।
उदाहरण के लिए, यदि स्टेट बैंक का शेयर 252 रूपये पर ट्रेड कर रहा है और मार्च 260 स्ट्राइक का पुट, 18 रूपये पर ट्रेड का रहा है, तो स्वाभाविक मूल्य की गणना करने के लिए 260 से 252 को घटाने पर 8 रूपये उसका स्वाभाविक मूल्य प्राप्त होगा। शेष 10 रुपए को समय मूल्य (time value) के रूप में जाना जाता है।
B. इन-दि मनी ऑप्शन -
जब स्ट्राइक प्राइस, स्पॉट प्राइस से कम होता है तब कॉल ऑप्शन "इन-दि मनी" होता है। स्ट्राइक प्राइस के स्पॉट प्राइस अधिक होने पर पुट ऑप्शन "इन-दि मनी" होता है।
C. आउट ऑफ़ मनी ऑप्शन-
स्पॉट प्राइस के स्ट्राइक प्राइस से कम होने पर कॉल ऑप्शन "आउट-ऑफ़-मनी" होता है। स्पॉट प्राइस के स्ट्राइक प्राइस से अधिक होने पर पुट ऑप्शन "आउट-ऑफ़-दि-मनी" होता है।
D. एट-दि मनी -
स्पॉट प्राइस का ऑप्शन के स्ट्राइक प्राइस के करीब या लगभग बराबर होने की स्थिति को "एट-दि-मनी" कहते हैं।
ऑप्शन सेलर v/s ऑप्शन बायर
जब आप एक ऑप्शन बेचते हैं, तो आप ऑप्शन प्रीमियम को इकट्ठा करते हैं जो ऑप्शन बायर ने आपको दिया है। आपका लक्ष्य इसे कम कीमत पर वापस खरीदना है। जबकि खरीदार का लक्ष्य इसे हाई प्रीमियम पर बेचना होता है। आइए इस बात पर विचार करें कि ऑप्शन को सेल करने से आपके जीतने की संभावना क्यों बढ़ जाती है। इस लेख में, हम ऑप्शन बेचने के तीन फायदे बताने जा रहे हैं। आप मार्केट में अपने ऑब्जरवेशन द्वारा इन धारणाओं को समझ सकते हैं।
प्रत्येक ऑप्शन में टाइम वैल्यू जुडी होती है क्योंकि उसकी एक्सपायरी का एक निर्धारित समय होता है। समय बीतने के साथ उसकी टाइम वैल्यू क्षय होती है क्योंकि उसकी समय - सीमा समाप्त होने लगती है। जैसे धूप में रखी हुई बर्फ पिघलती है उसी प्रकार समय बीतने पर ऑप्शन की टाइम वैल्यू गलने लगती है।
इसलिए भले ही अन्य कारक जो किसी ऑप्शन की कीमत को प्रभावित करते हैं, जैसे कि स्टॉक की कीमत वोलेटाइल हो सकती है परन्तु समय समाप्ति पर टाइम वैल्यू खत्म हो जाती है। यह बात ऑप्शन बायर के विरुद्ध जाती है, इस प्रकार time decay, ऑप्शन सेलर के पक्ष में काम करता है।
ऑप्शन सेलिंग के 3प्रमुख लाभ ( 3 advantage of option selling)
1. टाइम decay, ऑप्शन सेलर के favour में काम करता है -
प्रत्येक ऑप्शन में टाइम वैल्यू जुडी होती है क्योंकि उसकी एक्सपायरी का एक निर्धारित समय होता है। समय बीतने के साथ उसकी टाइम वैल्यू क्षय होती है क्योंकि उसकी समय - सीमा समाप्त होने लगती है। जैसे धूप में रखी हुई बर्फ पिघलती है उसी प्रकार समय बीतने पर ऑप्शन की टाइम वैल्यू गलने लगती है।
इसलिए भले ही अन्य कारक जो किसी ऑप्शन की कीमत को प्रभावित करते हैं, जैसे कि स्टॉक की कीमत वोलेटाइल हो सकती है परन्तु समय समाप्ति पर टाइम वैल्यू खत्म हो जाती है। यह बात ऑप्शन बायर के विरुद्ध जाती है, इस प्रकार time decay, ऑप्शन सेलर के पक्ष में काम करता है।
ऑप्शन की एक्सपायरी में जितना अधिक समय बचा होगा, उतना ही अधिक उसका टाइम वैल्यू होगा जो ऑप्शन सेलर के पक्ष में जा सकता है।
इस प्रकार sideways मार्केट में भी ऑप्शन सेलर लाभ कमाता है और लगभग 70% समय market इसी प्रकार का होता है यानि एक छोटी रेंज में समय बिताता है। ऐसे समय ऑप्शन खरीदने वाला ( buyer) लॉस बुक करने पर मजबूर हो जाता है और उसे नुकसान उठा कर अपना ऑप्शन बेचना पड़ता है, क्योंकि ऑप्शन की वैल्यू घटने लगती है।
किसी भी शेयर की price या तो ऊपर या नीचे जाती है अथवा sideways होते हुए लगभग वहीं खड़ी रहती है। ऑप्शन सेलर्स इन तीनों कंडीशन में प्रॉफिट में हो सकते हैं जब -
A. शेयर की price आपके वांछित (सोची हुई) दिशा(direction) में चलती है।
B. स्टॉक की price, लगभग वहीं खड़ी रहती है यानि sideways होती है।
C. स्टॉक की price थोड़ा अवांछनीय दिशा में यानि आपके सोचे हुए डायरेक्शन से कुछ अपोजिट भी चलती है, तब भी आपका नुकसान नहीं होता।
कॉल ऑप्शन बेचने वाला तब तक जीतता है, जब तक कि स्पॉट प्राइस, स्ट्राइक प्राइस से कम हो और बेचते समय उसके पास प्रीमियम जमा (collect) हो जाए। पुट ऑप्शन बेचने पर स्ट्राइक प्राइस की स्थिति इसकी अपोजिट होगी परन्तु प्रॉफिट कमाने में कोई अंतर नहीं होता।
इस प्रकार sideways मार्केट में भी ऑप्शन सेलर लाभ कमाता है और लगभग 70% समय market इसी प्रकार का होता है यानि एक छोटी रेंज में समय बिताता है। ऐसे समय ऑप्शन खरीदने वाला ( buyer) लॉस बुक करने पर मजबूर हो जाता है और उसे नुकसान उठा कर अपना ऑप्शन बेचना पड़ता है, क्योंकि ऑप्शन की वैल्यू घटने लगती है।
2. ऑप्शन सेलर की वांक्षित दिशा में स्टॉक का चलना जरूरी नहीं -
किसी भी शेयर की price या तो ऊपर या नीचे जाती है अथवा sideways होते हुए लगभग वहीं खड़ी रहती है। ऑप्शन सेलर्स इन तीनों कंडीशन में प्रॉफिट में हो सकते हैं जब -
A. शेयर की price आपके वांछित (सोची हुई) दिशा(direction) में चलती है।
B. स्टॉक की price, लगभग वहीं खड़ी रहती है यानि sideways होती है।
C. स्टॉक की price थोड़ा अवांछनीय दिशा में यानि आपके सोचे हुए डायरेक्शन से कुछ अपोजिट भी चलती है, तब भी आपका नुकसान नहीं होता।
कॉल ऑप्शन बेचने वाला तब तक जीतता है, जब तक कि स्पॉट प्राइस, स्ट्राइक प्राइस से कम हो और बेचते समय उसके पास प्रीमियम जमा (collect) हो जाए। पुट ऑप्शन बेचने पर स्ट्राइक प्राइस की स्थिति इसकी अपोजिट होगी परन्तु प्रॉफिट कमाने में कोई अंतर नहीं होता।
जबकि ऑप्शन बायर सिर्फ एक ही कंडीशन में प्रॉफिट कमा सकता है जब शेयर उसकी सोची हुई दिशा में तेजी से चलते हुए स्ट्राइक प्राइस के ऊपर हो और उसे प्रीमियम मिले।
आइए कॉल ऑप्शन बेचने पर एक नज़र डालें। जब आप एक कॉल ऑप्शन बेचने निर्णय लेते हैं, तो आम तौर पर वर्तमान स्टॉक मूल्य (spot price) से अधिक वाले किसी स्ट्राइक price का चुनाव करते हैं।आप ऑप्शन सेलर के रूप में एक प्रीमियम collect करते हैं।
इस केस में यदि स्टॉक का भाव नीचे जाए या वहीं छोटी रेंज में समय बिताये (लगभग अपरिवर्तित) रहे तब आपको प्रॉफिट होता है। आपको तब भी प्रॉफिट होता है जब स्टॉक price आपकी सोची दिशा के विपरीत ऊपर ही क्यों न चला जाए, सिवाय इसके कि स्ट्राइक प्राइस (प्लस आपके द्वारा इकट्ठा किये गए प्रीमियम) के ऊपर जाए। इस प्रकार एक्सपायरी लाभदायक होने के लिए स्टॉक नीचे जा सकता है, या sideways रह सकता है, अथवा थोड़ा ऊपर भी बढ़ सकता है।
पुट ऑप्शन बेचने के केस में भी ऐसा ही है। जब आप पुट ऑप्शन बेचते हैं, तो आप इसे वर्तमान मूल्य से नीचे के स्ट्राइक प्राइस के साथ बेचते हैं और आप ऑप्शन सेलर के रूप में इसका प्रीमियम प्राप्त करते हैं।
पुट खरीदने वाले (buyer) को प्रॉफिट तभी होगा जब स्पॉट प्राइस, एक्सपायरी तक स्ट्राइक प्राइस (प्लस प्रीमियम भुगतान) से नीचे चला जाए। लेकिन पुट ऑप्शन सेलर्स को प्रॉफिट के लिए आवश्यकता केवल इस बात की होती है कि शेयर का भाव, स्ट्राइक प्राइस से ऊपर रहे। सेलर्स को मुनाफा होता है- जब स्टॉक बढ़ता है, या लगभग वहीं टिका रहता है अथवा यहां तक कि थोड़ा नीचे चला जाता है।
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3. 7 ways to boost your self confidence-आत्म विश्वास बढ़ाने के 7 उपाय
ऑप्शन सेलर तब बेचना चाहते हैं, जब ऑप्शन की प्राइस अधिक हो और बाद में प्राइस कम होने पर उसे वापस खरीद लें।
आइए कॉल ऑप्शन बेचने पर एक नज़र डालें। जब आप एक कॉल ऑप्शन बेचने निर्णय लेते हैं, तो आम तौर पर वर्तमान स्टॉक मूल्य (spot price) से अधिक वाले किसी स्ट्राइक price का चुनाव करते हैं।आप ऑप्शन सेलर के रूप में एक प्रीमियम collect करते हैं।
इस केस में यदि स्टॉक का भाव नीचे जाए या वहीं छोटी रेंज में समय बिताये (लगभग अपरिवर्तित) रहे तब आपको प्रॉफिट होता है। आपको तब भी प्रॉफिट होता है जब स्टॉक price आपकी सोची दिशा के विपरीत ऊपर ही क्यों न चला जाए, सिवाय इसके कि स्ट्राइक प्राइस (प्लस आपके द्वारा इकट्ठा किये गए प्रीमियम) के ऊपर जाए। इस प्रकार एक्सपायरी लाभदायक होने के लिए स्टॉक नीचे जा सकता है, या sideways रह सकता है, अथवा थोड़ा ऊपर भी बढ़ सकता है।
example -
यदि स्टेट बैंक शेयर भाव 251 रूपये पर चल रहा है और आप मार्च की 260 स्ट्राइक प्राइस वाली काल 11 रूपये में बेचते हैं तब एक्सपायरी तक शेयर का भाव 251 रूपये के नीचे जाए या बढ़कर 260 रूपये तक भी जाए तो भी आप प्रॉफिट में रहेंगे।
क्योंकि 260 रूपये के नीचे का spot price रहने पर इस स्ट्राइक प्राइस का रेट एक्सपायरी के अंत तक बहुत कम (05 -10 पैसा) रह जायेगा और आप कभी भी उसे buy करके अपना सौदा square off करके मुनाफा बुक कर सकते हैं। यहां पर स्टेट बैंक के शेयर का रेट 270 रूपये तक जाने पर भी आपको लॉस नहीं होता और नो लॉस नो प्रॉफिट में आप निकल सकते हैं।
क्योंकि 260 रूपये के नीचे का spot price रहने पर इस स्ट्राइक प्राइस का रेट एक्सपायरी के अंत तक बहुत कम (05 -10 पैसा) रह जायेगा और आप कभी भी उसे buy करके अपना सौदा square off करके मुनाफा बुक कर सकते हैं। यहां पर स्टेट बैंक के शेयर का रेट 270 रूपये तक जाने पर भी आपको लॉस नहीं होता और नो लॉस नो प्रॉफिट में आप निकल सकते हैं।
पुट ऑप्शन बेचने के केस में भी ऐसा ही है। जब आप पुट ऑप्शन बेचते हैं, तो आप इसे वर्तमान मूल्य से नीचे के स्ट्राइक प्राइस के साथ बेचते हैं और आप ऑप्शन सेलर के रूप में इसका प्रीमियम प्राप्त करते हैं।
पुट खरीदने वाले (buyer) को प्रॉफिट तभी होगा जब स्पॉट प्राइस, एक्सपायरी तक स्ट्राइक प्राइस (प्लस प्रीमियम भुगतान) से नीचे चला जाए। लेकिन पुट ऑप्शन सेलर्स को प्रॉफिट के लिए आवश्यकता केवल इस बात की होती है कि शेयर का भाव, स्ट्राइक प्राइस से ऊपर रहे। सेलर्स को मुनाफा होता है- जब स्टॉक बढ़ता है, या लगभग वहीं टिका रहता है अथवा यहां तक कि थोड़ा नीचे चला जाता है।
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3. ऑप्शन सेलर को volatility से लाभ होता है -
जब बाजार अस्थिर (volatile) होता है तब ऑप्शन का रेट अधिक हो जाता है और उसमे तेज़ी आ जाती है। इस प्रकार मार्केट की अस्थिरता, ऑप्शन सेलर की पक्षधर है। मार्केट या कोई स्टॉक जितना अधिक volatile होगा उसका रेट उतना महंगा होगा और जब ऑप्शन सस्ता होगा तो उसमें निहित volatility (अस्थिरता) कम होती है।ऑप्शन सेलर तब बेचना चाहते हैं, जब ऑप्शन की प्राइस अधिक हो और बाद में प्राइस कम होने पर उसे वापस खरीद लें।
ऐसातब होता है जब volatility (निहित अस्थिरता) अधिक होती है, फिर बाद में घट जाती है। अक्सर समय के साथ volatility घटने की प्रवृत्ति होती है जो कुछ समय बाद अपनी सामान्य स्थिति में आ जाती है। इस प्रकार अधिक volatility भी ऑप्शन सेलर के पक्ष में काम करते हुए उसकी ट्रेडिंग रणनीति को सरल बनाती है।
conclusion -
ऑप्शन बायर तभी लाभ कमा सकता है जब स्टॉक तेजी से उसकी दिशा में चले इसके अतिरिक्त अन्य सभी मार्केट कंडीशन उसके विपरीत काम करती हैं। मार्केट में ऑप्शन सेलर के पक्ष में अधिक मौके होते है इसलिए उसके पैसे कमाने के अवसर बहुत अधिक होते हैं, परन्तु इसके विरोध में यह तर्क भी है कि ऑप्शन सेलर की प्रॉफिट लिमिटेड होती है और उसका लॉस अनलिमिटेड हो सकता है।
क्योंकि सेलर को अधिकतम प्रॉफिट सिर्फ उतना ही मिल सकता है, जितने में उसने ऑप्शन बेचा है परन्तु यदि स्टॉक बहुत तेजी से सेलर की सोची हुई दिशा के विपरीत चलता है, तो उस ऑप्शन का भाव कई गुना हो सकता है।
क्योंकि सेलर को अधिकतम प्रॉफिट सिर्फ उतना ही मिल सकता है, जितने में उसने ऑप्शन बेचा है परन्तु यदि स्टॉक बहुत तेजी से सेलर की सोची हुई दिशा के विपरीत चलता है, तो उस ऑप्शन का भाव कई गुना हो सकता है।
यदि ऑप्शन सेलर ने स्टॉप लॉस का ध्यान नहीं रखा तो उसका बड़ा लॉस होना निश्चित है। इसलिए ऑप्शन सेलिंग बहुत रिस्की काम समझा जाता है और मार्केट में ट्रेडिंग का अच्छा अनुभव व कुशलता प्राप्त होने के बाद इसे करना चाहिए।
आशा है ये आर्टिकल "Is Option Selling Profitable-क्या ऑप्शन सेलिंग प्रॉफिटेबल है?" आपको ऑप्शन सेलिंग को समझने में लाभदायक लगा होगा। इसे अपने मित्रों तक शेयर करें साथ ही अपने सवाल एवं सुझाव कमेंट बॉक्स में लिख सकते हैं। शेयर मार्केट की और भी उपयोगी जानकारी के लिए इस वेबसाइट पर विज़िट करते रहें।
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