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Wednesday, 15 January 2020

Amarkantak tour guide- अमरकंटक के दर्शनीय स्थल

Amarkantak tour guideअमरकंटक के दर्शनीय स्थल

मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले में स्थित अमरकंटक, भारत की पांच प्रमुख नदियों में शामिल नर्मदा नदी के साथ सोन और जोहिला नदी का भी उदगम स्थान है। नर्मदा नदी यहां से पश्चिम की तरफ और सोन नदी पूर्व दिशा में बहती है। यहां के खूबसूरत झरने, हरे भरे जंगल और पहाडि़यों के मोहक दृश्य सैलानियों को मंत्रमुग्‍ध कर देते हैं। 

    समुद्र तल से 1065 मीटर ऊंचे इस स्‍थान पर मध्‍य भारत के विंध्य और सतपुड़ा की पहाडि़यों का मेल होता है। अमरकंटक में बहुत सी जड़ी बूटियां पाई जाती हैं जिनका प्रयोग आयुर्वेदिक दवाओं के निर्माण में होता है। 
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   प्रकृति प्रेमियों के साथ धार्मिक प्रवृत्ति के लोगों को यह स्‍थान काफी पसंद आता है, यहाँ  वर्ष भर लोग आते हैं। पुण्य दायिनी नर्मदा का उद्गम स्थल होने के कारण अमरकंटक का विशेष महत्व है, ऋषि मुनियों की इस पावन भूमि का उल्लेख बहुत से प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। 

    नर्मदा को शिव का इतना आशीर्वाद प्राप्त है कि उसकी धारा में पाए जाने वाले शिवलिंग की स्थापना के लिए प्राण-प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं पड़ती। नर्मदा में पाए जाने वाले शिवलिंग, बाण शिवलिंग कहलाते हैं। अमरकंटक के संबंध में यह भी मान्यता है कि जो साधु-संन्यासी यहाँ देह त्यागता है, वह स्वर्ग को प्राप्त होता है।


      यह स्थान प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है। जब नर्मदा अपने उद्गम से निकलकर आगे की तरफ प्रवाहित होती हैं, तब अनेक स्थानों पर छोटे-बड़े जलप्रपात बनते हैं। अमरकंटक में कपिलधारा और दूधधारा दो प्रमुख जलप्रपात हैं। बारिश के बाद इनमें जलराशि बढ़ जाती है और इनका सौंदर्य पूरे शबाब पर होता है। 

  हरियाली से घिरे अमरकंटक में जहां एक ओर प्रकृति की मनमोहक छटा को निहारते पर्यटक मिलेंगे वही दूसरी तरफ यहां के साधु-संन्यासी अपनी धुन में रमे आपको दिखेंगे। आध्यात्म पथ के पथिकों के लिए यह पुण्य भूमि उन्हें ध्यान की गहराइयों में डूबकर शांति पाने का पूर्ण अवसर प्रदान करती है एवं सामान्य जन के लिए यह हमारे जीवन की आपा-धापी के बीच थोड़ा सुकून देने के साथ मन की व्यथा को कम करने में सहयोगी बनती है।
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कैसे पहुंचें -

A . रेल मार्ग-  

अमरकंटक का नजदीकी रेलवे स्‍टेशन पेंड्रा रोड है, यहां से अमरकंटक की दूरी लगभग 40 KM. है। दूसरा  रेलवे स्‍टेशन अनूपपुर है जो अमरकंटक से 72 किलोमीटर दूर है।

B. सड़क मार्ग- 

अमरकंटक मध्‍य प्रदेश और निकटवर्ती शहरों से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। यहां आने के लिए पेंड्रा रोड, बिलासपुर, जबलपुर, उमरिया और शहडोल से टैक्सी और नियमित बस सेवा उपलब्ध है। निकटतम एयरपोर्ट जबलपुर और रायपुर हैं। बिलासपुर से सड़क मार्ग द्वारा अमरकंटक की दूरी 127 km. है। 

कहां ठहरें -

अमरकंटक में होटल और रिसोर्ट के साथ आश्रम, गुरुद्वारा  और धर्मशालाएं भी हैं। बाबाओं के आश्रम में रुकने के लिए उनके अनुयायियों को ही प्रमुखता दी जाती है। यहां धर्मशालाओं में रुकना भी सस्ता नहीं पड़ता क्योंकि अधिकतर धर्मशालाओं के रेट, होटल से बहुत कम नहीं होते।  


  अमरकंटक के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं- नर्मदा उद्गम मंदिर,  कपिल धारा, दूध धारा, प्राचीन मंदिर समूह, कबीर चबूतरा, भृगु कमण्डल, धूनी-पानी, श्रीयंत्र मंदिर, सोनमूड़ा, माई की बगिया, सर्वोदय जैन तीर्थ, प्राचीन जलेश्वर मंदिर और माई का मंडप।


अमरकंटक के प्रमुख दर्शनीय स्थल


1. नर्मदाकुंड और मंदिर -

यह अमरकंटक का सबसे पवित्र स्थान है। नर्मदाकुंड ही नर्मदा नदी का उदगम स्‍थल है। इसके बीच में और चारों ओर अनेक मंदिर बने हुए हैं जो सफेद रंग के हैं। 

  इन मंदिरों में नर्मदा और शिव मंदिर, श्रीराम जानकी मंदिर, अन्‍नपूर्णा मंदिर, गुरू गोरखनाथ मंदिर, श्री सूर्यनारायण मंदिर, सिद्धेश्‍वर महादेव मंदिर, श्रीराधा कृष्‍ण मंदिर और ग्‍यारह रूद्र मंदिर आदि प्रमुख हैं। 
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    यहां मंदिर में पत्थर का एक हाथी है जिसके नीचे से गुजरना शुभ माना जाता है बहुत से लोग इसके नीचे से गुजरने का प्रयास करते हैं। नर्मदा कुंड के स्वच्छ जल में मंदिरों का प्रतिबिम्ब दिखाई पड़ता है। इस सरोवर में रंगीन मछलियां देखी जा सकती हैं। यहां का पवित्र जल लोग अपने साथ लेकर जाते हैं।

   इस सरोवर में स्नान करने की मनाही है। परन्तु मंदिर परिसर के बाहर वाले कुंड में आप स्नान कर सकते हैं, यह जल बहुत ठंडा होता है। बहुत से श्रद्धालु यहां स्नान करने के बाद मंदिर दर्शन के लिए जाते हैं। 

2. कलचुरी काल के मंदिर -

नर्मदाकुंड के नजदीक ही दक्षिण में कलचुरी काल के भव्य एवं प्राचीन मंदिर बने हुए हैं। इन मंदिरों को कलचुरी महाराजा कर्णदेव ने 1041-1073 ई. के दौरान बनवाया था। मछेन्‍द्रथान और पातालेश्‍वर मंदिर इस काल के मंदिर निर्माण कला के बेहतरीन उदाहरण हैं। 

  अन्य मंदिरों में कर्ण मंदिर, विष्णु मंदिर, जोहिला मंदिर आदि हैं यह पूरा परिसर मन को शांति देने वाला है और भारतीय पुरातत्व विभाग इसकी देखरेख करता है। नर्मदा कुंड के दर्शन पश्चात इसे देखना न भूलें।
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3. सोनमूड़ा (Sonmuda) -


सोनमूड़ा, सोन नदी का उदगम स्‍थल है। कलचुरी काल के मंदिर परिसर से यहां की दूरी लगभग 1 KM. है। यहां पहुंचने के रास्ते में आप निर्माणधीन श्री यंत्र मंदिर देख सकते हैं। यहां से सोनमूड़ा पहुंचने का रास्ता ऊँचे ऊँचे पेड़ों से घिरा हुआ है। मैकाल पहाडि़यों पर स्थित सोनमूड़ा से घाटी और जंगल से ढ़की पहाडियों के सुंदर दृश्‍य दूर तक देखे जा सकते हैं। 


     यहां ठंडी हवा के झोंके आपको हिल स्टेशन में होने का अहसास करवाते हैं। यहां से सूर्योदय देखना एक अलग ही अनुभव प्रदान करता है, कुछ लोग सुबह सबेरे इसका आनंद लेने यहां पहुंचते हैं। यहां सोन नदी पहाड़ी से झरने के रूप में गिरती है, इसकी सुनहरी रेत के कारण इसका नाम सोन नदी पड़ा है। 
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    इस स्थान में बंदरों की बहुतायत है, यदि आपके हाथ में खाने का सामान है तो ये झपट्टा मार सकते हैं। इसलिए सावधान रहें, कार खड़ी करते समय उसके शीशे बंद करके ही कहीं जाएँ अन्यथा बंदर, कार के अंदर घुसकर नुकसान पहुंचा सकते हैं। 

4. कपिल धारा -

नर्मदा कुंड से लगभग 7 K.M. उत्तर-पश्चिम दिशा में कपिल धारा जलप्रपात है। अमरकंटक आने वाले प्रकृति प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र यह  झरना लगभग 100 फीट की ऊंचाई से गिरता है। यहां जाते हुए प्रकृति के सुंदर नजारे देखे जा सकते हैं। 

   अपनी सुंदरता के कारण कपिल धारा झरना बहुत लोकप्रिय है। आप यहां नीचे उतरकर झरने के पीछे तक जा सकते हैं। कुछ लोग यहां स्नान का आनंद लेते हैं।
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   पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कपिल मुनी यहां रहते थे और उन्होंने सांख्‍य दर्शन की रचना इसी स्‍थान पर की थी। यहां निकट ही कपिलेश्‍वर मंदिर भी बना हुआ है। कपिलधारा के आसपास बहुत सी गुफाएं हैं, जहां ध्‍यानमग्‍न साधु संत  देखे जा सकते हैं।

5. दूधधारा -

कपिल धारा से लगभग 1 K.M. की दूरी पर पश्चिम दिशा कि ओर दूधधारा झरना है। इस झरने का पानी गिरते हुए दूध जैसा सफेद दिखाई पड़ता है। यह छोटा किन्तु आकर्षक झरना घने वनों के मध्य स्थित है।

   पौराणिक मान्यता के अनुसार इस स्थान पर दुर्वासा ऋषि ने तपस्या की थी,  इसलिए इसका नाम दुर्वासा धारा पड़ा परंतु कालांतर मे  अपभ्रंस होकर यह दूध धारा के रूप मे प्रचलित हुआ। 
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6. कबीर चबूतरा -

नर्मदा उद्गम मंदिर से पश्चिम-दक्षिण दिशा की ओर 5 K.M. की दूरी पर कबीर चबूतरा नामक स्थान है।  यहां तक जाने के लिए पक्की सड़क है।कबीर चबूतरे का कबीरपंथियों के लिए  बहुत महत्‍व है। कहा जाता है कि संत कबीर यहां वर्षों तक रहकर अपनी साधना में लीन रहे। बाद में उन्होंने यहां संत समागम भी किया था। 


    कबीर पंथ के अनुयायी कुछ लोग इस जगह पर रहते भी हैं। चारों ओर घने जंगलों से घिरा यह स्थान आपका मन मोह लेगा। यहां पास ही बरगद का एक विशाल वृक्ष है, जो दर्शनीय है। कबीर चबूतरे के निकट ही कबीर झरना भी है। 

7. माँई की बगिया
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माता नर्मदा को समर्पित यह बगिया, नर्मदाकुंड से पूर्व दिशा की ओर 1 K.M. की दूरी पर स्थित है। इसे चरणोदक कुंड के नाम से भी जाना जाता है। गुलबकावली और गुलाब के सुंदर पौधे यहां की सुंदरता में बढोतरी करते हैं। 

   इसके अलावा आम, केले और अन्‍य बहुत से फलों के पेड़ यहां प्राकृतिक रूप से उगे हुए हैं। गुलबकावली पुष्प के अर्क से औषधि बनायी जाती है जो नेत्र रोगियों के लिए लाभकारी होती है। 


8. भृगु कमंडल -

नर्मदा मंदिर से 4 K.M. की दूरी पर भृगु कमंडल स्थित है। ऐसी जनश्रुति है कि इस स्थान पर भृगु ऋषि ने कठोर तप किया था। भृगु कमंडल में कमंडल की आकृति की चट्टान से पानी की धार दिखाई देती है जो बाद में  नर्मदा नदी से जाकर मिलती है।

9. धुनी पानी -

अमरकंटक का यह गर्म पानी का झरना है। कहा जाता है कि यह झरना औषधीय गुणों से संपन्‍न है और इसमें स्‍नान करने से शरीर के रोग ठीक हो जाते हैं। इसलिए दूर-दूर से लोग इस झरने में स्‍नान करने आते हैं, जिससे वे स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर सकें।
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10. सर्वोदय जैन मंदिर -

पिछले कई सालों से इसका निर्माण हो रहा है और यह कार्य अभी भी चल रहा है। कम्पलीट होने के बाद यह मंदिर भारत के अद्वितीय मंदिरों में गिना जायेगा और अमरकंटक के प्रमुख दर्शनीय स्‍थानों में शामिल होगा। 

    इस मंदिर को बनाने में सीमेंट और लोहे का इस्‍तेमाल नहीं किया गया है। मंदिर में स्‍थापित महावीर की मूर्ति विश्व में अद्वितीय है।

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11. श्री ज्‍वालेश्‍वर महादेव मंदिर -
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अमरकंटक की तीसरी नदी, जोहिला नदी का उद्गम स्थान, श्री ज्‍वालेश्‍वर महादेव मंदिर अमरकंटक से 8 K.M. दूर शहडोल रोड पर स्थित है। यहां भगवान शिव का मंदिर है। यह स्थान बहुत मनोरम है, मंदिर के निकट ही सनसेट प्‍वाइंट है 

   पुराणों में इस स्‍थान को महारूद्र मेरू कहा गया है। माना जाता है कि भगवान शिव अपनी पत्‍नी पार्वती से साथ इस रमणीय स्‍थान पर निवास करते थे। 

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