Bollywood film Business-फिल्म से कमाई कैसे होती है
हम अक्सर सुनते हैं कि इस फिल्म ने 100 करोड़ या 200 करोङ का बिज़नेस किया तो कोई मूवी अपनी लागत भी नहीं वसूल पाई। किसी फिल्म के रिलीज़ होने के बाद पहले 3 दिन की कमाई पर ट्रेड पंडितों की विशेष नज़र होती है।
बॉक्स ऑफिस कलेक्शन के आंकड़े निर्धारित करते हैं कि कोई फिल्म हिट है या फ्लॉप हो गई है। आखिर एक फिल्म - दर्शक द्वारा खरीदी गई टिकट का पैसा किन हाथों से गुजरता हुआ फिल्म निर्माता तक पहुँचता है? इस गणित को समझने से पहले हमें जानना होगा कि फिल्म कैसे बनती है।
दरअसल अन्य किसी उद्योग की तरह फिल्म बनाना भी एक उद्योग है, जहां पहले एक प्रोडक्ट (फिल्म) तैयार करके उसे बेंचा जाता है। किसी अन्य मैन्युफैक्चरर की तरह फिल्म निर्माता की कोशिश भी यही होती है कि उसके प्रोडक्ट (फिल्म) को लोग पसंद करें।
यह अलग बात है कि फिल्म निर्माता और उससे जुड़े लोगों की कोशिश के बाद भी बहुत कम फ़िल्में दर्शकों की कसौटी पर खरी उतर पाती हैं और अपनी लागत पर मुनाफा कमाने में सफल हो पाती हैं।
फिल्म निर्माण एक खर्चीला काम है, इसमें लगने वाले पैसे की व्यवस्था फिल्म निर्माता (Producer) को करना होता है। यह धन, फिल्म निर्माण के तीनों चरणों प्रीप्रोडक्शन, प्रोडक्शन और पोस्ट प्रोडक्शन में व्यय होता है। इसमें राइटर, डायरेक्टर, एक्टर्स से लेकर जूनियर आर्टिस्ट और अन्य क्रू मेंबर्स की फीस के अलावा ट्रांसपोर्टिंग, खाने पीने के खर्चे और अन्य व्यय शामिल होते हैं।
फिल्म कम्पलीट होने के बाद उसे बेंचने की बारी आती है। फिल्म निर्माता अपनी लागत में मुनाफा जोड़कर फिल्म की प्राइस तय करता है। जिस फिल्म में बड़े स्टार होते हैं उसकी प्राइस ज्यादा होती है। इसके लिए वितरक या डिस्ट्रीब्यूटर (Distributor) का चुनाव किया जाता है। जो डिस्ट्रीब्यूटर फिल्म के लिए अधिक पैसा देने को तैयार होता है उसे फिल्म के अधिकार बेंच दिए जाते हैं। इसमें डिस्ट्रीब्यूटर और प्रोड्यूसर के पूर्व संबंधों की भूमिका भी महत्वपूर्ण होती है।
बड़े स्टार कास्ट वाली फ़िल्में, डिस्ट्रीब्यूटर की पहली पसंद होती हैं। हालाँकि यह बिज़नेस ब्लाइंड गेम की तरह होता है क्योंकि किसी फिल्म में सुपर स्टार के होने से उसकी सफलता की गारंटी नहीं हो जाती, "ठग्स ऑफ़ हिंदुस्तान" जैसी फ़िल्में इसका उदाहरण है।
फिल्म कम्पलीट होने के बाद उसे बेंचने की बारी आती है। फिल्म निर्माता अपनी लागत में मुनाफा जोड़कर फिल्म की प्राइस तय करता है। जिस फिल्म में बड़े स्टार होते हैं उसकी प्राइस ज्यादा होती है। इसके लिए वितरक या डिस्ट्रीब्यूटर (Distributor) का चुनाव किया जाता है। जो डिस्ट्रीब्यूटर फिल्म के लिए अधिक पैसा देने को तैयार होता है उसे फिल्म के अधिकार बेंच दिए जाते हैं। इसमें डिस्ट्रीब्यूटर और प्रोड्यूसर के पूर्व संबंधों की भूमिका भी महत्वपूर्ण होती है।
बड़े स्टार कास्ट वाली फ़िल्में, डिस्ट्रीब्यूटर की पहली पसंद होती हैं। हालाँकि यह बिज़नेस ब्लाइंड गेम की तरह होता है क्योंकि किसी फिल्म में सुपर स्टार के होने से उसकी सफलता की गारंटी नहीं हो जाती, "ठग्स ऑफ़ हिंदुस्तान" जैसी फ़िल्में इसका उदाहरण है।
फिल्म से कमाई के साधन
फिल्म - प्रोड्यूसर के पास अपनी कमाई के लिए विभिन्न तरीके होते हैं -
1. किसी प्रोडक्ट का प्रचार करके -
कंपनियां अपने प्रोडक्ट का प्रचार पत्र पत्रिकाओं और टीवी आदि माध्यमों से करती हैं। जब कोई कंपनी अपने प्रोडक्ट का प्रचार किसी फिल्म में करने की इच्छुक होती है तो उसे फिल्म प्रोड्यूसर के साथ डील करके उसका भुगतान करना पड़ता है। इस डील में ये तय होता है कि फिल्म में कितनी देर तक कंपनी का प्रोडक्ट दिखाया जायेगा अथवा कंपनी का नाम, पोस्टर या फिर प्रोडक्ट का नाम लिया जाएगा।
कई बार आप फिल्म में लीड एक्टर्स द्वारा किसी ख़ास कम्पनी की मोटर साइकल, कार या ट्रैक्टर इस्तेमाल करते हुए देखते है, यह कंपनी द्वारा अपने प्रोडक्ट को प्रचारित करने का तरीका होता है। इससे फिल्म निर्माता को कमाई होती है और फिल्म निर्माण की लागत वसूलने में मदद मिलती है।
2. डिस्ट्रीब्यूटर के माध्यम से -
एक व्यक्ति जो फिल्म को सिनेमाघरों के माध्यम से प्रदर्शित करने का अधिकार निर्माता से खरीदता है, उसे फिल्म वितरक (डिस्ट्रीब्यूटर) कहा जाता है। निर्माता से "वितरण अधिकार" खरीदने से पहले डिस्ट्रीब्यूटर, फिल्म की कहानी, कास्टिंग, डायरेक्टर और निर्माता की पिछली सफलता पर विचार करता है।
यदि निर्माता अपनी फिल्म किसी डिस्ट्रीब्यूटर को बेंच देता है तो निर्माता का प्रॉफिट निश्चित हो जाता है और सारा रिस्क डिस्ट्रीब्यूटर का हो जाता है। परन्तु कुछ निर्माता अपनी फिल्मों के डिस्ट्रीब्यूटर भी स्वयं होते हैं, जैसे राजश्री प्रोडक्शन या यशराज फिल्म्स आदि। ऐसी दशा में मूवी के फ्लॉप होने पर उसका पूरा नुकसान फिल्म प्रोड्यूसर को उठाना पड़ता है।
राज्य-से-राज्य कनेक्टिविटी के आधार पर, फिल्म वितरण संघ ने फिल्मों को वितरित करने के लिए 11 सर्किट बनाये हैं। कभी-कभी निर्माता सीधे इन सभी सर्किटों में फिल्म वितरित करता है, जबकि अधिकतर मुख्य वितरक ही स्थानीय फिल्म वितरक को फिल्में बेचते हैं। डिस्ट्रीब्यूटर्स फिल्म बिज़नेस का वो हिस्सा होते हैं, जिनका फायदा और नुकसान तय नहीं होता।
अगर टिकट विंडो में जमकर भीड़ होती है और फिल्म हॉउसफुल चलती है, तो डिस्ट्रीब्यूटर्स का जमकर फायदा होता है। वहीं अगर गिने चुने लोग ही फिल्म देखने आये और फिल्म फ्लॉप रही तो उन्हें कोई फायदा नहीं होता, बल्कि लगाया हुआ पैसा भी डूब जाता है।
डिस्ट्रीब्यूटर और प्रोड्यूसर के बीच एक एग्रीमेंट साइन होता है, जिसमें फिल्म की रॉयल्टी इनकम में हिस्सेदारी की शर्तें आदि लिखी होती हैं। भारत के अलावा विदेशों में भी हिंदी फिल्मों की मांग होती है इसके लिए बड़ी फिल्मों के "विदेश में प्रदर्शन" के अधिकार भी बेंचे जाते हैं। फिल्म खरीदने के बाद डिस्ट्रीब्यूटर इसकी मार्केटिंग और एडवरटाइजिंग पर पैसा खर्च करता है।
फिल्म को थिएटर्स में रिलीज करवाने के लिए सब-डिस्ट्रीब्यूटर्स (sub-distributors) उनके एरिया में जो सिनेमा थिएटर्स है, उनके मालिकों से एग्रीमेंट करता है। अब फिल्म के टिकट बेच कर जो पैसा कलेक्शन होता है उस ग्रॉस इनकम (Gross Income) में से सारे टैक्स अदा कर देने के बाद जो नेट इनकम बचती है उसे थिएटर्स के मालिक, डिस्ट्रीब्यूटर के साथ शेयर करते हैं। जो कि मल्टीप्लेक्स और सिंगल स्क्रीन सिनेमा में अलग-अलग अनुपात (ratio) में बटी होती है।
रिलीज़ के पहले सप्ताह में डिस्ट्रीब्यूटर का हिस्सा 50 -60% से लेकर बाद के सप्ताहों में लगभग 30 -35% तक रहता है। यह सिनेमा मालिक और डिस्ट्रीब्यूटर के मध्य हुए एग्रीमेंट पर निर्भर करता है।
यदि निर्माता अपनी फिल्म किसी डिस्ट्रीब्यूटर को बेंच देता है तो निर्माता का प्रॉफिट निश्चित हो जाता है और सारा रिस्क डिस्ट्रीब्यूटर का हो जाता है। परन्तु कुछ निर्माता अपनी फिल्मों के डिस्ट्रीब्यूटर भी स्वयं होते हैं, जैसे राजश्री प्रोडक्शन या यशराज फिल्म्स आदि। ऐसी दशा में मूवी के फ्लॉप होने पर उसका पूरा नुकसान फिल्म प्रोड्यूसर को उठाना पड़ता है।
राज्य-से-राज्य कनेक्टिविटी के आधार पर, फिल्म वितरण संघ ने फिल्मों को वितरित करने के लिए 11 सर्किट बनाये हैं। कभी-कभी निर्माता सीधे इन सभी सर्किटों में फिल्म वितरित करता है, जबकि अधिकतर मुख्य वितरक ही स्थानीय फिल्म वितरक को फिल्में बेचते हैं। डिस्ट्रीब्यूटर्स फिल्म बिज़नेस का वो हिस्सा होते हैं, जिनका फायदा और नुकसान तय नहीं होता।
अगर टिकट विंडो में जमकर भीड़ होती है और फिल्म हॉउसफुल चलती है, तो डिस्ट्रीब्यूटर्स का जमकर फायदा होता है। वहीं अगर गिने चुने लोग ही फिल्म देखने आये और फिल्म फ्लॉप रही तो उन्हें कोई फायदा नहीं होता, बल्कि लगाया हुआ पैसा भी डूब जाता है।
डिस्ट्रीब्यूटर और प्रोड्यूसर के बीच एक एग्रीमेंट साइन होता है, जिसमें फिल्म की रॉयल्टी इनकम में हिस्सेदारी की शर्तें आदि लिखी होती हैं। भारत के अलावा विदेशों में भी हिंदी फिल्मों की मांग होती है इसके लिए बड़ी फिल्मों के "विदेश में प्रदर्शन" के अधिकार भी बेंचे जाते हैं। फिल्म खरीदने के बाद डिस्ट्रीब्यूटर इसकी मार्केटिंग और एडवरटाइजिंग पर पैसा खर्च करता है।
फिल्म को थिएटर्स में रिलीज करवाने के लिए सब-डिस्ट्रीब्यूटर्स (sub-distributors) उनके एरिया में जो सिनेमा थिएटर्स है, उनके मालिकों से एग्रीमेंट करता है। अब फिल्म के टिकट बेच कर जो पैसा कलेक्शन होता है उस ग्रॉस इनकम (Gross Income) में से सारे टैक्स अदा कर देने के बाद जो नेट इनकम बचती है उसे थिएटर्स के मालिक, डिस्ट्रीब्यूटर के साथ शेयर करते हैं। जो कि मल्टीप्लेक्स और सिंगल स्क्रीन सिनेमा में अलग-अलग अनुपात (ratio) में बटी होती है।
रिलीज़ के पहले सप्ताह में डिस्ट्रीब्यूटर का हिस्सा 50 -60% से लेकर बाद के सप्ताहों में लगभग 30 -35% तक रहता है। यह सिनेमा मालिक और डिस्ट्रीब्यूटर के मध्य हुए एग्रीमेंट पर निर्भर करता है।
किसी नए निर्माता की कम बजट वाली क्षेत्रीय फिल्म के प्रदर्शन के लिए सिनेमा मालिक अपना साप्ताहिक किराया एडवांस में लेते हैं। इससे फिल्म के फ्लॉप होने पर सिनेमा मालिक पहले ही सुरक्षित हो जाता है।
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3. म्यूजिक राइट्स बेंचकर -
फिल्म के संगीत का अधिकार म्यूजिक कंपनियों को बेचकर कमाई की जाती है। बड़े बजट की फिल्मों के म्यूजिक राइट्स अच्छे दामों पर बिकते हैं। किसी फिल्म के संगीत का अधिकार जिस म्यूजिक कंपनी के पास होता है उसकी अनुमति के बिना उस फिल्म के गानों और संगीत का व्यवसायिक उपयोग नहीं किया जा सकता है।
अगर फिल्म के गाने हिट होते हैं तो म्यूजिक कंपनी को इसका फायदा मिलता है। मोबाइल के लिए गानों की कॉलर ट्यून्स बनाकर अतिरिक्त कमाई की जाती है।
कमाई के अन्य तरीक़ों में विमानों में फिल्म प्रदर्शन की अनुमति देना शामिल है। हवाई जहाज की सीटों के पीछे की ओर लगे छोटे स्क्रीन के लिए फिल्म दिखाने का लाइसेंस दिया जाता है। हिट फिल्मों के कॉमिक्स और वीडियो गेम्स बनाकर भी फिल्म की सफलता को भुनाया जाता है।
आशा है ये आर्टिकल "Bollywood film Business- फिल्म से कमाई कैसे होती है" आपको पसंद आया होगा इसे अपने मित्रों तक शेयर कर सकते हैं। अपने सवाल एवं सुझाव कमेंट बॉक्स में लिखें साथ ही फिल्मों से संबंधित उपयोगी जानकारी के लिए इस वेबसाइट पर विज़िट करते रहें।
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4. सेटेलाइट राइट्स बेचकर -
सिनेमा हॉल में रिलीज़ होने के कुछ सप्ताह बाद फिल्म किसी TV चैनल पर दिखाई जाती है इसके लिए TV चैनल को फिल्म प्रोड्यूसर से सेटेलाइट राइट्स खरीदना पड़ता है। आजकल सेटेलाइट राइट्स मंहगे दामों में बिकते हैं और इसे बेंचकर रिलीज़ से पहले ही फिल्म की लागत का एक बड़ा हिस्सा निकाल लिया जाता है।5. स्ट्रीमिंग सर्विस के जरिये -
अब फिल्म से कमाई करने का एक नया तरीका जुड़ गया है- इसे अमेज़न प्राइम या नेटफ्लिक्स स्टाइल सब्सक्रिप्शन स्ट्रीमिंग सेवा पर दिखाने की अनुमति देना। ऑनलाइन मनोरंजन के इन साधनों की लोकप्रियता दिनों दिन बढ़ती जा रही है और आपसी होड़ के कारण ये अपने कैटलॉग की शोभा बढ़ाने के लिए फ़िल्में खरीदते हैं। अब तो कुछ फिल्म निर्माता अपनी फ़िल्में थिएटर्स की जगह इन्हीं सब्सक्रिप्शन स्ट्रीमिंग सेवा पर रिलीज़ करने लगे हैं।कमाई के अन्य तरीक़ों में विमानों में फिल्म प्रदर्शन की अनुमति देना शामिल है। हवाई जहाज की सीटों के पीछे की ओर लगे छोटे स्क्रीन के लिए फिल्म दिखाने का लाइसेंस दिया जाता है। हिट फिल्मों के कॉमिक्स और वीडियो गेम्स बनाकर भी फिल्म की सफलता को भुनाया जाता है।
आशा है ये आर्टिकल "Bollywood film Business- फिल्म से कमाई कैसे होती है" आपको पसंद आया होगा इसे अपने मित्रों तक शेयर कर सकते हैं। अपने सवाल एवं सुझाव कमेंट बॉक्स में लिखें साथ ही फिल्मों से संबंधित उपयोगी जानकारी के लिए इस वेबसाइट पर विज़िट करते रहें।
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