Diwali festival and economics -दीपावली का आर्थिक महत्व - sure success hindi

success comes from knowledge

Breaking

Post Top Ad

Wednesday, 16 October 2019

Diwali festival and economics -दीपावली का आर्थिक महत्व

Diwali festival and economics -दीपावली का आर्थिक महत्व 

वैसे तो भारत में हर त्योहार का अपना महत्व है, लेकिन देश के सबसे बड़े त्यौहार दिवाली का विशेष रूप से आर्थिक एवं धार्मिक, सामाजिक  महत्व है। इसे पूरे उमंग उत्साह और धूमधड़ाके के साथ मनाने की खास परंपरा रही है। 

   इस पर्व में लोग घर की साज-सज्जा, कपड़े, गहने और गाड़ियों सभी वस्तुओं पर खर्च करते हैं। जमकर खरीदारी होने के कारण छोटे-बड़े सभी व्यापारियों के लिए यह समय अत्यधिक महत्वपूर्ण  होता है। दीपावली में सभी प्रकार के व्यापार में तेजी आती है और उनकी कमाई का सीजन होता है।  

diwali-decoration

 दीपावली का आर्थिक महत्व उसकी मान्यताओं और परम्परा के कारण है जिन्हें हिंदू धर्म के मनीषियों ने इस प्रकार से बनाया है कि इससे समाज के सभी लोगों का फायदा हो सके।

 इस त्यौहार में घर की साफ़ सफाई के साथ यह मान्यता बनाई गई कि इस पर्व में खरीददारी करने से घर में किसी भी वस्तु की कमी नहीं रहती और वह वस्तु फलदाई रहती है।  इसलिए दीपावली त्यौहार के समय बाजारों में ज्यादा चहल-पहल और अधिक खरीदी होती है। जिसके कारण बड़े व्यापारी से लेकर छोटे व्यापारी और मजदूर वर्ग की आमदनी बढ़ जाती है।

 दीपावली त्योहार को मनाने और इसके पीछे का आर्थिक महत्व इस बात पर जुड़ा हुआ है कि इस त्यौहार से कुछ दिन पहले फसल पक कर तैयार हो जाती है।  किसान इस फसल को बाजारों में बेचकर पैसे प्राप्त करता है। जिससे उसकी क्रय शक्ति इस समय बढ़ी हुई रहती  है और वह खर्च कर सकता है। हमारे त्योहार और उत्सव सिर्फ आनंद के  अवसर ही नहीं हैं, बल्कि ये आर्थिक सुधार के एक अभियान भी हैं।

 आइये जानते हैं दीपावली त्योहार की मान्यताओं और परम्पराओं के  माध्यम से किस प्रकार विभिन्न व्यवसायों से जुड़े लोगों की आर्थिक उन्नति का प्रयास किया गया है -

1. कपड़ों का व्यापार -

प्रकाश के इस पर्व को मनाने के लिए प्रायः प्रत्येक घर में नए कपड़े खरीदे जाते हैं। दीपावली  के अवसर पर नए कपड़े पहनने की इस परम्परा का लाभ इससे जुड़े व्यापारियों को मिलता है। 

 दीपावली आने से पहले ही व्यापारी नए कपड़ों का स्टॉक लेकर आते हैं जिससे कपड़ों के निर्माण से जुडी इकाइयों और इसमें काम करने वाले लोगों को फायदा मिलता हैं। 

 शहरी और ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों के दुकानदार इस अवसर पर अच्छी बिक्री करते हैं और आर्थिक लाभ प्राप्त कर पाते हैं। 

deepak

2. मूर्तियों का कारोबार -

दीपावली के पर्व में धन की देवी लक्ष्मी की पूजा और आराधना विशेष तौर पर की जाती है। इसमें लक्ष्मी पूजन के लिए मिट्टी से बनी मूर्ति लाई जाती है,  जिसे ग्रामीण क्षेत्र के कुम्हारों द्वारा बनाया जाता है। इस त्यौहार में मिटटी से बनी देवी लक्ष्मी की मूर्तियां खूब बिकती हैं। इन्हीं कुम्हारों द्वारा मिट्टी के विभिन्न आकार -प्रकार के दीपक बनाये जाते हैं जो कि  दीपावली में प्रज्वलित किये जाते हैं।  

    धार्मिक मान्यता के अनुसार पूजन कार्य के लिए मिटटी के दीपक अनिवार्य रूप से जलाये जाते हैं। इस प्रकार दीपावली का त्यौहार ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने वाले कुम्हारों के लिए एक अवसर प्रदान करता है जिसमें वे अपनी पारम्परिक कला का संवर्धन करते हुए आर्थिक लाभ प्राप्त करते हैं। 

  अब समय की मांग को देखते हुए ये कारीगर दिये को शंख, कछुआ, सीप जैसी विभिन्न आकृति में बनाने लगे हैं। इससे ग्राहकों का रुझान चित्रों से सुसज्जित इन आकर्षक दियों की ओर बढ़ा है। 

3. मिठाई का कारोबार -

 देवी की पूजा के समय उन्हें मिष्ठान्न का भोग अर्पित किया जाता है।इसके लिए मिठाइयों की खरीद अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार हर व्यक्ति कम या अधिक मात्रा में अवश्य करता है। इसलिए  दीपावली के मौके पर  मिठाइयों की खूब बिक्री होती है। जिससे शहरी क्षेत्र के बड़े मिष्ठान्न भंडार के मालिकों से लेकर ग्रामीण क्षेत्र के छोटे हलवाई तक  लाभान्वित होते हैं, जो परम्परागत मिठाई और बताशे आदि बनाते हैं। 

  दीपावली का त्यौहार पशुपालकों के लिए एक मौका होता है क्योकि मिठाई की बढ़ी हुई मांग को पूरा करने के लिए दूध की अच्छी कीमत इन्हें मिलती है।  
diwali-sweets

4. सोने चांदी का कारोबार -

दिवाली पूजा के पहले धनतेरस  मनाई जाती है जिसमें सोने चांदी के गहने, मूर्तियां या सिक्के खरीदना शुभ माना जाता है। परम्परा के अनुसार धनतेरस के अवसर पर इन्हें खरीदने से जीवन में सुख समृद्धि आती है और देवी लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।

   इस परम्परा का पालन करते हुए लोग यथा सम्भव सोने चांदी की खरीदी करते हैं, कम से कम चांदी का सिक्का अवश्य लेते हैं। इसका लाभ बड़े ज्वेलर्स से लेकर सोने चांदी के छोटे दुकानदार, दोनों को मिलता है।  

5. रियल एस्टेट और गाड़ियों का कारोबार -

दीपावली के अवसर पर सभी प्रकार के वाहनों को खरीदना शुभ माना जाता  है। इस मौके पर खर्च की जाने वाली रकम का एक बड़ा हिस्सा ऑटो इंडस्ट्री के हिस्से में आता है। लोग अपने वाहन धनतेरस के दिन उठाने के लिए पहले से बुक करवाकर रखते हैं जिससे उन्हें धनतेरस के मुहूर्त में गाडी मिलने में परेशानी न हो। इस प्रकार परम्परा से धार्मिक आस्था से जुड़े होने फायदा सम्पूर्ण ऑटो इंडस्ट्री को मिलता है। 

  धनतेरस के अलावा दीपावली के पहले पड़ने वाले पुष्य नक्षत्र में खरीदी गई वस्तु भी स्थायी लाभ देने वाली और सौभाग्य वर्धक समझी जाती है। इसलिए इस अवसर पर घरों और प्लॉट्स की खरीद शुभ मानी जाती है। इसका लाभ रियल एस्टेट डेवेलपर्स और इस काम से जुड़े कारीगरों को मिलता है। 

6. फूलों का काम -

दिवाली की पूजन सामग्री में फूल और आम की पत्ती अनिवार्य रूप से शामिल की जाती है। इस अवसर पर फूलों का प्रयोग दिवाली पूजन के साथ साथ घरों की सजावट के लिए भी किया जाता है। 

  कमल के फूल का दीपावली पूजन में विशेष महत्व बताया गया है इसके कारण उन गरीब लोगों की कुछ आय हो जाती है जो तालाब पोखरों में इसकी खेती करते हैं।

    गेंदे के फूल बिना दीपावली में घरों की सजावट पूरी नहीं होती,  इससे फूल उत्पादकों के अलावा इस काम से जुड़े छोटे बड़े विक्रेताओं को लाभ होता है। दीपावली आते ही फूल, मालाओं और आम की पत्तियों और तोरण की छोटी छोटी दुकानें बाज़ारों में सड़क के किनारे सज जाती हैं। 

  ऐसे अस्थायी दुकानदारों को दीपावली का यह पर्व पैसे कमाने का एक अवसर देता है जिसका ये लोग साल भर से इंतज़ार करते हैं। 
flowers

7. रंग रोगन का कार्य -

दीपावली में घरों के रंग रोगन का कार्य किया जाता है जिससे स्वच्छ और सुंदर वातावरण में लक्ष्मी घर में प्रवेश कर सके। घरों की पेंटिंग के कार्य से इससे जुडी पेंट निर्माता कंपनियों के साथ पेंटिंग कार्य में लगे हजारों मजदूरों को भी काम मिलता है।

   दीपावली के त्यौहार पर बहुत से लघु और कुटीर उद्योग निर्भर होते हैं। इन छोटे उद्योगों से ब्रश, डिस्टेम्पर, सस्ते पेंट, झाड़ू आदि की सप्लाई होती है। यहां काम करने वाले श्रमिकों की रोजी रोटी इन्हीं उद्योगों पर निर्भर होती है।

चीनी सामानों से खतरा -

अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए चीन की नज़र पूरी दुनियां पर है।पिछले कुछ वर्षों से भारत में मनाये जाने वाले त्योहारों पर चीन की विशेष दृष्टि है। दीपावली रोशनी का त्योहार है, लेकिन इस मौके पर रोशनी के लिए अब चीन निर्मित सामानों का व्यापक इस्तेमाल होने लगा है। 

 भारत का सबसे बड़ा त्यौहार होने के कारण दीपावली में चीन निर्मित सामानों से भारतीय बाजार को पाटने की उसकी मंशा साफ दिखाई देती है.  चीन में बने सामानों में फटाखे, लक्ष्मी-गणेश, उनके वस्त्र और श्रृंगार के सामान, डिजाइनर दीये, बिजली की लड़ियां समेत अन्य इलेक्ट्रॉनिक फैंसी वस्तुयें शामिल हैं। 

   चीनी माल सस्ता होने के कारण इसे बेचने में आसानी होती है। परन्तु इससे भारतीय लघु और कुटीर उद्योगों के सामने संकट पैदा हो गया है। चीन निर्मित सामानों की कोई गारंटी नहीं होती परन्तु वे दिखने में आकर्षक और सस्ते होते हैं, इसके विपरीत घरेलू निर्माताओं का सामान महंगा होने के कारण उसे बेचने में कठिनाई होती है। 

   इस संकट को देखते हुए समय समय पर विभिन्न संगठनों द्वारा चीनी सामानों के बहिष्कार का आह्वान किया जाता रहा है। यदि देशी उद्योगों और उनके कामगारों को सरंक्षण देना है तो चीनी सामानों के भारी आयात और उनकी खरीददारी से हमें बचना होगा।
       
 पटाखों की बात की जाए तो तमिलनाडु के शिवकाशी जिले में पूरे देश में बनने वाले पटाखों का 90%  और 75% माचिस का उत्पादन होता है।  यहां के गली-मुहल्लों और गांवों  में पटाखे बनाने का काम होता है और करीब चार लाख लोग इस कारोबार से जुड़े हैं। परन्तु चीनी पटाखों के आयात ने इनके सामने बड़ा संकट खड़ा कर दिया है।

 इसे देखते हुए  केंद्र सरकार ने भी एक्सप्लोसिव एक्ट, 2008 के प्रावधानों का इस्तेमाल करते हुए विदेशी पटाखों की खरीद-बिक्री को दंडनीय बना दिया है। लेकिन सरकारी प्रतिबंधों के बावजूद चीन के पटाखों की बिक्री चोरी छिपे जारी  है।
diwali-crackers

conclusion -


दीपावली के त्यौहार में यदि हम कुछ बातों का ध्यान रखें तो ना सिर्फ हमारे लिए मंगलकारी होगा बल्कि देश के लिए भी लाभकारी होगा और हम दीपावली के अर्थ को सही रूप में सार्थक कर सकेंगे।

1. हम सभी को चीनी पटाखों का पूर्ण बहिष्कार करना होगा साथ ही पर्यावरण संरक्षण का भी ध्यान रखना होगा क्योंकि दीपावली पर पटाखों के कारण काफी मात्रा में वायु और ध्वनि प्रदूषण  होता है।

 हमें इस बात को समझना होगा की  दीपोत्स्व के त्यौहार का अर्थ दीप और रौशनी से है, ना कि कानफोड़ू आवाज़ के पटाखे फोड़ने से है।

 पटाखों के बढ़ते प्रदूषण के कारण ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा भी अधिक आवाज़ के पटाखों को प्रतिबंधित कर दिया गया है। 

  तेज़ आवाज़ वाले पटाखों से हृदय और कान के पर्दों को गंभीर क्षति पहुंच सकती है जोकि बुजुर्गों और कमजोर लोगों के लिए घातक होने के अलावा सभी के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। 

  ऐसे पटाखों का उपयोग ना करके हम निरीह पक्षियों को खतरे से बचाने के साथ प्रकृति के संरक्षण में अपना योगदान दे सकेंगे। 

also read -

1. vahan durghtna ke karn aur nivarn-वाहन दुर्घटना के कारण और निवारण 

2. cricket vs other sport in india-भारत में क्रिकेट और अन्य खेल

3. make money on you tube-यू ट्यूब से पैसे कैसे कमाएं 

4.ponzi scheme frauds-पोंज़ी स्कीम फ्रॉड्स से कैसे बचें 

diya-and-flower-decoration

2.  हमें ऑनलाइन खरीदी से बचना होगा और छोटे विक्रेताओं से सामान खरीदने पर ध्यान देना होगा। तभी हम उनकी आय बढ़ाने और आजीविका का संरक्षण करने में मदद कर सकेंगे। 

  हमें सोचना होगा कि इन छोटे दुकानदारों और कारीगरों को वर्ष भर इस त्यौहार का इंतजार होता है, जिसमें वे कुछ आय अर्जित कर सकें और अपने द्वारा की गई तैयार वस्तुओं को बाजार में बेच सकें। इस तरह हम ऑनलाइन खरीदी से बचकर देश की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में मदद करते हैं। 

3. दीपोत्स्व के इस अवसर पर इलेक्ट्रिक झालरों की जगह मिट्टी के दीपकों का अधिक उपयोग करने से हम  दीपावली के पारंपरिक रुप को बनाए रखने में योगदान कर सकते हैं। साथ ही देश के छोटे व्यापारियों और कुम्हारों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ बनाकर उन्हें बेरोजगारी से बचा सकते हैं।   

 आशा है ये आर्टिकल "Diwali festival and economics -दीपावली का आर्थिक महत्व" आपको उपयोगी लगा होगा। इसे अपने मित्रों तक शेयर कर सकते हैं। अपने सवाल एवं सुझाव, कमेंट बॉक्स में जाकर लिख सकते हैं। ऐसी ही और भी अच्छी जानकारी पढ़ने के लिए इस वेबसाइट पर विज़िट करते रहें। 

also read -

1. money vs happiness-खुश रहने के लिए पैसा जरूरी है 

2. how to lose weight fast-मोटापा तेजी से कैसे घटाएं 

3. secret of stop loss in share market-शेयर मार्केट में स्टॉपलॉस का रहस्य



No comments:

Post a Comment

Post Bottom Ad