Money v/s happiness. खुश रहने के लिए पैसा जरूरी है
क्या पैसे से आपको क्या खुशी मिलती है? क्या खुश रहने के लिए पैसा आवश्यक है? इस प्रश्न का जवाब आम धारणा के अनुसार यह होगा कि पैसे से ख़ुशी नहीं खरीदी जा सकती। वास्तव में हम पैसे के बारे में गलत तरीके से सोचते हैं। हमें इस तरह शिक्षित किया गया है कि पैसा हाथ का मैल होता है, धन को माया कहा गया है।
धन के पीछे भागने वाले को माया से पीड़ित कहा जाता है। इस तरह एक भ्रम फैलाया गया है और पैसे की खराब छवि प्रस्तुत की गई है। परन्तु हकीकत यह है कि हमारा विश्व धन के माध्यम से कार्य करता है, यहां की सारी गतिविधि के केंद्र में धन सबसे महवपूर्ण कारक है। धन को माया कहने वाले लोग भी धन से ही अपने लिए भोजन और कपड़े की व्यवस्था करते हैं।
धन के पीछे भागने वाले को माया से पीड़ित कहा जाता है। इस तरह एक भ्रम फैलाया गया है और पैसे की खराब छवि प्रस्तुत की गई है। परन्तु हकीकत यह है कि हमारा विश्व धन के माध्यम से कार्य करता है, यहां की सारी गतिविधि के केंद्र में धन सबसे महवपूर्ण कारक है। धन को माया कहने वाले लोग भी धन से ही अपने लिए भोजन और कपड़े की व्यवस्था करते हैं।
पैसा निश्चित रूप से हमारे खुशियों के स्तर को प्रभावित करता है क्योंकि यदि हमारे पास पर्याप्त पैसा है, तो हम अपने जीवन के वित्तीय दृष्टिकोण से संतुष्ट हैं। लेकिन यहां प्रश्न उठता है कि क्या पैसा खुशी खरीद सकता है?
वास्तव में दैनिक जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए हम जिन लोगों को संघर्ष करते देखते हैं, वे लोग खुशियों से परे हैं। इनके अप्रसन्न होने का कारण धन की कमी से अपनी दैनिक जरूरतों को भी पूरा न कर पाना है। धन के बिना ये लोग खुश नहीं होंगे।
पैसा चीजों को संभव बना सकता है, इसके बिना कोई पहुंच नहीं है। पैसे के माध्यम से हम चीजें प्राप्त कर सकते हैं जो हमें खुशी देती हैं। बिना पैसे के ख़ुशी की कल्पना करना एक साधारण गृहस्थ के लिए लगभग असम्भव है। यहां हम उन साधु -सन्यासियों की बात नहीं कर रहे हैं जो जंगलों या हिमालय में तपस्या कर रहे हैं।
पैसा चीजों को संभव बना सकता है, इसके बिना कोई पहुंच नहीं है। पैसे के माध्यम से हम चीजें प्राप्त कर सकते हैं जो हमें खुशी देती हैं। बिना पैसे के ख़ुशी की कल्पना करना एक साधारण गृहस्थ के लिए लगभग असम्भव है। यहां हम उन साधु -सन्यासियों की बात नहीं कर रहे हैं जो जंगलों या हिमालय में तपस्या कर रहे हैं।
धन की कमी जीवन में अनेक समस्याओं को जन्म देती है जिससे अप्रशन्नता का वातावरण बनता है और खुशी दूर हो जाती है। धन की कमी से हमारे जीवन में विभिन्न प्रकार से दुष्प्रभाव पड़ता है -
धन की कमी का दुष्प्रभाव
1. पारिवारिक जीवन में तनाव -
यदि इस बात का डर है कि आप अपने घर का खर्च कैसे चलाएंगे या अपने बच्चों की फीस कैसे भरेंगे, तो बार बार घबराहट होती है। यदि बिजली बिल या निगम टैक्स बकाया है, तो तनाव पैदा होता है जिससे ख़ुशी काफ़ूर हो जाती है। इस तरह धन की कमी से पारिवारिक समारोह का आयोजन करना भी कठिन हो जाता है जो आपस में तनाव पैदा करता है।
अर्थात पारिवारिक ख़ुशी के लिए धन आवश्यक है इसके बिना पारिवारिक शांति और ख़ुशी की कल्पना करना व्यर्थ की बात है। जब तक आपके पास अच्छी बचत या आय नहीं है, तब तक कुछ भी अर्जित करना और खुश रहना संभव नहीं है। यहां यह बात सत्य प्रतीत होती है कि -"पैसा खुदा तो नहीं, पर खुदा से कम भी नहीं"
अभावग्रस्त होने के कारण जीवन का आनंद लेने की संभावना इनमें कम हो जाती है। पैसे की कमी का इनके मानसिक स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। स्वभाव से ऐसे लोग चिड़चिड़े, क्रोधी और शंकालु प्रकृति के हो जाते हैं। इसके कारण अपने आस पास के लोगों से इनकी नहीं बनती।
अर्थात पारिवारिक ख़ुशी के लिए धन आवश्यक है इसके बिना पारिवारिक शांति और ख़ुशी की कल्पना करना व्यर्थ की बात है। जब तक आपके पास अच्छी बचत या आय नहीं है, तब तक कुछ भी अर्जित करना और खुश रहना संभव नहीं है। यहां यह बात सत्य प्रतीत होती है कि -"पैसा खुदा तो नहीं, पर खुदा से कम भी नहीं"
2. स्वास्थ्य पर प्रभाव -
पैसे की कमी का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। पैसे की कमी से व्यक्ति पोषक तत्वों से पूर्ण आहार लेने में असमर्थ हो जाता है। जिससे शरीर में विटामिन्स की कमी होकर बीमारियों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। फलस्वरूप उसके बीमार पड़ने की संभावना बढ़ जाती है। धन की कमी से जूझने वाले व्यक्ति अपने खान पान पर ध्यान नहीं दे पाते।अभावग्रस्त होने के कारण जीवन का आनंद लेने की संभावना इनमें कम हो जाती है। पैसे की कमी का इनके मानसिक स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। स्वभाव से ऐसे लोग चिड़चिड़े, क्रोधी और शंकालु प्रकृति के हो जाते हैं। इसके कारण अपने आस पास के लोगों से इनकी नहीं बनती।
3. सामाजिक दुष्प्रभाव -
धन की कमी होने से अक्सर नाते रिश्तेदार भी ऐसे लोगों से दूरी बनाकर चलते हैं क्योंकि उन्हें डर होता है कि यह व्यक्ति उनसे कहीं पैसे न मांग ले। आर्थिक तंगी का सामना करने वाले व्यक्ति से लोग सामाजिक दूरी बनाकर चलते हैं। ज्यादातर लोग सोचते हैं कि इनके साथ देखे जाने पर उनकी प्रतिष्ठा में आंच आ सकती है। इसलिए धन की कमी से ग्रस्त व्यक्ति को अपने यहां किसी कार्यक्रम में आमंत्रित करना उन्हें पसंद नहीं होता।
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आर्थिक रूप से निश्चिन्त न होने के कारण आध्यात्म पथ की जानकारी होने के बावजूद उसका इस रास्ते पर चलना कठिन हो जाता है। जिसे पेट की भूंख सता रही हो उसे चाँद को देखकर भी कविता करने की नहीं, रोटी की याद आती है। अभाव ग्रस्त जीवन की कठिन परिस्थिति से घिरे व्यक्ति को अपने जीवन में साहित्य, कला और सौंदर्य बोध की अनुभूति करना कठिन जान पड़ता है।
खुशी और धन किस तरह से संबद्ध हैं? हम इसे केवल तभी समझ सकते हैं, जब हम इसे स्वयं अनुभव करते हैं। हो सकता है कि कुछ लोगों को लगे कि उनके पास बहुत सारा पैसा है पर ख़ुशी नहीं है। ऐसे भी लोग हैं जो अपने करियर में सफल हुए, उनके पास सब कुछ है - पैसा, शक्ति, सफलता, परिवार, बच्चे, दोस्त - फिर भी वे खुश नहीं हैं।
इसका कारण कई सफल लोगों में अवसाद और चिंता जैसे गंभीर मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे भी होते हैं। ऐसे लोगों को हमेशा लगता है कि जो कुछ उन्हें मिला है, वह पर्याप्त नहीं है। उन्हें लगता है कि कुछ और मिल जाए तो ख़ुशी मिलेगी, वे अभी भी तृप्ति खोजने की कोशिश कर रहे हैं।
लेकिन वे यह नहीं जानते कि उन्हें क्या करने की आवश्यकता है। अपनी जरूरत और तृष्णा के भेद को समझे बिना सारा जीवन धन के पीछे भागते रहने और उसी में उलझे रहने में कोई समझदारी नहीं है। धन आपको चीज़े उपलब्ध करवाता है एक अवसर देता है कि आप उनका उचित उपभोग करके अपने जीवन में खुशियाँ और आनंद ला सकें।
यह चीज़ें आपको धन का अभाव होने पर कतई नहीं मिल सकती थीं। अब आपके हाथ में है कि जीवन में थोड़ा ठहर कर इसका उपभोग करना है या बिना रुके दौड़ते दौड़ते मर जाना है। क्योकि तृष्णा का कभी अंत नहीं होता यह बात भी व्यक्ति जब एकांत में आत्म अवलोकन करता है, तभी जान पाता है।
आशा है ये पोस्ट "Money v/s happiness. खुश रहने के लिए पैसा जरूरी है" आपको उपयोगी लगी होगी, इसे शेयर कर सकते हैं। अपने सवाल और सुझाव कमेंट सेक्शन में जाकर लिख सकते हैं। इस तरह के जीवनोपयोगी लेख पढ़ने के लिए इस वेबसाइट पर विज़िट करते रहें।
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4. उद्देश्य हीन जीवन -
गरीब आदमी की सोच केवल पैसे तक सीमित हो जाती है। धन प्राप्त करने के प्रयास में ही उसका पूरा समय निकल जाता है। उसके पास यह सब सोचने का अवसर नहीं होता कि मानव जीवन का उद्देश्य क्या है? वह आत्म तत्व को समझने के लिए ध्यान योग की तरफ नहीं जा पाता।आर्थिक रूप से निश्चिन्त न होने के कारण आध्यात्म पथ की जानकारी होने के बावजूद उसका इस रास्ते पर चलना कठिन हो जाता है। जिसे पेट की भूंख सता रही हो उसे चाँद को देखकर भी कविता करने की नहीं, रोटी की याद आती है। अभाव ग्रस्त जीवन की कठिन परिस्थिति से घिरे व्यक्ति को अपने जीवन में साहित्य, कला और सौंदर्य बोध की अनुभूति करना कठिन जान पड़ता है।
conclusion -
खुशी और धन किस तरह से संबद्ध हैं? हम इसे केवल तभी समझ सकते हैं, जब हम इसे स्वयं अनुभव करते हैं। हो सकता है कि कुछ लोगों को लगे कि उनके पास बहुत सारा पैसा है पर ख़ुशी नहीं है। ऐसे भी लोग हैं जो अपने करियर में सफल हुए, उनके पास सब कुछ है - पैसा, शक्ति, सफलता, परिवार, बच्चे, दोस्त - फिर भी वे खुश नहीं हैं।
इसका कारण कई सफल लोगों में अवसाद और चिंता जैसे गंभीर मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे भी होते हैं। ऐसे लोगों को हमेशा लगता है कि जो कुछ उन्हें मिला है, वह पर्याप्त नहीं है। उन्हें लगता है कि कुछ और मिल जाए तो ख़ुशी मिलेगी, वे अभी भी तृप्ति खोजने की कोशिश कर रहे हैं।
लेकिन वे यह नहीं जानते कि उन्हें क्या करने की आवश्यकता है। अपनी जरूरत और तृष्णा के भेद को समझे बिना सारा जीवन धन के पीछे भागते रहने और उसी में उलझे रहने में कोई समझदारी नहीं है। धन आपको चीज़े उपलब्ध करवाता है एक अवसर देता है कि आप उनका उचित उपभोग करके अपने जीवन में खुशियाँ और आनंद ला सकें।
यह चीज़ें आपको धन का अभाव होने पर कतई नहीं मिल सकती थीं। अब आपके हाथ में है कि जीवन में थोड़ा ठहर कर इसका उपभोग करना है या बिना रुके दौड़ते दौड़ते मर जाना है। क्योकि तृष्णा का कभी अंत नहीं होता यह बात भी व्यक्ति जब एकांत में आत्म अवलोकन करता है, तभी जान पाता है।
आशा है ये पोस्ट "Money v/s happiness. खुश रहने के लिए पैसा जरूरी है" आपको उपयोगी लगी होगी, इसे शेयर कर सकते हैं। अपने सवाल और सुझाव कमेंट सेक्शन में जाकर लिख सकते हैं। इस तरह के जीवनोपयोगी लेख पढ़ने के लिए इस वेबसाइट पर विज़िट करते रहें।
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