Jagnnath puri tour. जगन्नाथ पुरी दर्शन
यदि आप धार्मिक यात्रा के साथ खूबसूरत समुद्र तट का आनंद लेना चाहते हैं तो जगन्नाथ पुरी की यात्रा कर सकते हैं। उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर से 60 km. की दूरी पर स्थित पुरी चार धामों में से एक धाम है। जगन्नाथ पुरी के अनेक नाम हैं। इसे पुरुषोत्तमपुरी तथा शंखक्षेत्र भी कहा जाता है क्योंकि इस क्षेत्र की आकृति शंख के समान है।
यहां हर साल भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा महोत्सव का आयोजन होता है, 10 दिनों तक चलने वाले इस महोत्सव के दौरान पुरी में लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं और इस महाआयोजन का हिस्सा बनते हैं। आइये जानते हैं इस क्षेत्र के प्रसिद्ध स्थलों के बारे में -
यहां हर साल भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा महोत्सव का आयोजन होता है, 10 दिनों तक चलने वाले इस महोत्सव के दौरान पुरी में लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं और इस महाआयोजन का हिस्सा बनते हैं। आइये जानते हैं इस क्षेत्र के प्रसिद्ध स्थलों के बारे में -
जगन्नाथ पुरी के दर्शनीय स्थान
1. श्री जगन्नाथ पुरी मंदिर
जगन्नाथ का अर्थ है - जगत के नाथ यानी जगन्नाथ। वैष्णव सम्प्रदाय का यह मंदिर श्री कृष्ण को समर्पित है। जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बड़े भाई बलभद्र (बलराम) और बहन सुभद्रा के साथ विराजते है। चार धाम तीर्थों में बद्रीनाथ, द्वारका और रामेश्वरम के साथ एक धाम पुरी जगन्नाथ मंदिर भी है।
रथ यात्रा के दौरान तो इस मंदिर की रौनक देखते ही बनती है लेकिन साल के बाकी दिनों में भी अच्छी खासी संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं। जगन्नाथ मंदिर 10 एकड़ क्षेत्र में फैला है और 20 फुट ऊंची बॉउंड्री वाल से घिरा है। कलिंग शैली में निर्मित इस मंदिर की ऊंचाई 214 फुट है।
मंदिर के शिखर पर अष्ट धातुओं से बना सुदर्शन चक्र है, इसे नीलचक्र कहा जाता है, और यह लगभग 11 मीटर की परिधि के साथ 3.5 मीटर ऊंचा है। मंदिर के चारों दिशामे चार द्वार हैं - सिंह द्वार - पूर्व दिशा में, अश्व द्वार - दक्षिण दिशा में, हाथी द्वार -पश्चिम दिशा में और व्याघ्र द्वार - उत्तर दिशा में है। पूर्व दिशा के द्वार से आम जनता और अन्य द्वारों से VIP, पंडे पुजारी, विकलांग प्रवेश करते हैं।
ध्यान रखें कि आपको सेल फोन, जूते, मोज़े, कैमरे और छतरियों सहित मंदिर के अंदर कोई सामान ले जाने की अनुमति नहीं है। मुख्य प्रवेश द्वार के पास एक सुविधा है जहाँ आप अपनी वस्तुओं को सुरक्षित रखने के लिए जमा कर सकते हैं।
रथ यात्रा के दौरान तो इस मंदिर की रौनक देखते ही बनती है लेकिन साल के बाकी दिनों में भी अच्छी खासी संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं। जगन्नाथ मंदिर 10 एकड़ क्षेत्र में फैला है और 20 फुट ऊंची बॉउंड्री वाल से घिरा है। कलिंग शैली में निर्मित इस मंदिर की ऊंचाई 214 फुट है।
मंदिर के शिखर पर अष्ट धातुओं से बना सुदर्शन चक्र है, इसे नीलचक्र कहा जाता है, और यह लगभग 11 मीटर की परिधि के साथ 3.5 मीटर ऊंचा है। मंदिर के चारों दिशामे चार द्वार हैं - सिंह द्वार - पूर्व दिशा में, अश्व द्वार - दक्षिण दिशा में, हाथी द्वार -पश्चिम दिशा में और व्याघ्र द्वार - उत्तर दिशा में है। पूर्व दिशा के द्वार से आम जनता और अन्य द्वारों से VIP, पंडे पुजारी, विकलांग प्रवेश करते हैं।
ध्यान रखें कि आपको सेल फोन, जूते, मोज़े, कैमरे और छतरियों सहित मंदिर के अंदर कोई सामान ले जाने की अनुमति नहीं है। मुख्य प्रवेश द्वार के पास एक सुविधा है जहाँ आप अपनी वस्तुओं को सुरक्षित रखने के लिए जमा कर सकते हैं।
मंदिर में रोजाना सुबह 5 बजे से लेकर आधी रात तक 20 से अधिक विभिन्न अनुष्ठान किए जाते हैं। ये अनुष्ठान रोजमर्रा की जिंदगी के कामों को दर्शातें है, जैसे स्नान करना, कपड़े पहनना और भोजन करना इत्यादि।
इसके अलावा, 800 साल से चली आ रही रस्म में मंदिर के नील चक्र से बंधे हुए झंडे हर दिन सूर्यास्त (6 बजे से 7 बजे के बीच) में बदल दिए जाते हैं। 165 फीट ऊपर चढ़कर चोल परिवार के सदस्य, जिन्हें मंदिर बनाने वाले राजा द्वारा झंडा फहराने का विशेष अधिकार दिया गया था, वे नए झंडे को फहराते हैं। पुराने झंडे भक्तों को बेचे जाते हैं।
देश के अन्य तीर्थों की तरह यहां भी पंडों से बच पाना श्रद्धालुओं के लिए कठिन है। ये पंडे मुख्य मंदिर के अलावा परिसर में स्थित अन्य मंदिरो के दर्शन करवा कर भक्तों से धन वसूलने का काम करते हैं। वे लोगों से पैसा निकालने के विशेषज्ञ माने जाते हैं।
इस मंदिर के दक्षिण पूर्व में स्थित रसोई भी काफी प्रसिद्ध है। पंडों द्वारा इस रसोई के बाहर दीवारों में बने छोटे सुराख़ से अन्दर का दृश्य दिखाया जाता है और बाहर से सिर्फ उस रसोई को देखने के लिए भी भक्तों से पैसे लिये जाते हैं।
इस रसोई में लकड़ी के इस्तेमाल से मिटटी के बर्तन में व्यंजन बनाए जाते हैं, जिसे महाप्रसाद कहते है, जिसमें प्याज-लहसुन का प्रयोग नहीं होता। दोपहर में भगवान को भोग लगने के बाद रसोई में पके भोजन की मंदिर परिसर में बोली लगनी शुरू होती है। खरीददारों की भीड़ के बीच मिट्टी के छोटे बड़े हंडियों में चावल, दाल, सब्जी रख कर आवाज़ लगा कर उसे बेचा जाता है।
इस रसोई में लकड़ी के इस्तेमाल से मिटटी के बर्तन में व्यंजन बनाए जाते हैं, जिसे महाप्रसाद कहते है, जिसमें प्याज-लहसुन का प्रयोग नहीं होता। दोपहर में भगवान को भोग लगने के बाद रसोई में पके भोजन की मंदिर परिसर में बोली लगनी शुरू होती है। खरीददारों की भीड़ के बीच मिट्टी के छोटे बड़े हंडियों में चावल, दाल, सब्जी रख कर आवाज़ लगा कर उसे बेचा जाता है।
2. जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा महोत्सव
हर साल अषाढ़ माह के शुक्लपक्ष की द्वितिया (जून /जुलाई) को रथ यात्रा निकलती है। इस समय मूर्तियों को मंदिर से बाहर ले जाया जाता है, भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा एक बड़ा उत्सव है। इस भव्य त्यौहार को मनाने के लिए देश विदेश से भारी संख्या में लोग पुरी पहुँचते हैं। इस दौरान रथ को अपने हाथों से खींचना बेहद शुभ माना जाता है।
इस दस दिवसीय महोत्सव की तैयारी का श्रीगणेश अक्षय तृतीया को रथ के निर्माण से होता है। रथ यात्रा के लिए भगवान जगन्नाथ ,बलराम, और सुभद्रा के लिए तीन अलग-अलग रथ निर्मित किए जाते हैं। लकड़ी के बनाये जाने वाले ये रथ प्रति वर्ष नए बनाये जाते हैं और यह एक गहन, विस्तृत प्रक्रिया है।
इस दस दिवसीय महोत्सव की तैयारी का श्रीगणेश अक्षय तृतीया को रथ के निर्माण से होता है। रथ यात्रा के लिए भगवान जगन्नाथ ,बलराम, और सुभद्रा के लिए तीन अलग-अलग रथ निर्मित किए जाते हैं। लकड़ी के बनाये जाने वाले ये रथ प्रति वर्ष नए बनाये जाते हैं और यह एक गहन, विस्तृत प्रक्रिया है।
3. पुरी बीच
बंगाल की खाड़ी का तट पूरी रेलवे स्टेशन से सिर्फ दो किलोमीटर की दूरी पर है। यहां समुद्र की लहरों के बीच स्नान का आनंद लेने के लिए पर्यटकों की अच्छी खासी भीड़ जुटती है। पूरी का यह तट को देश के श्रेष्ठ समुद्री तटों में से एक माना जाता है।
मशहूर सैंड आर्टिस्ट सुदर्शन पटनायक भी अपनी रेत से बनने वाली कलाकृतियों को इसी बीच पर बनाते हैं। तट पर बिखरी सुनहरी रेत, पानी की तेज लहरें और समुद्र की विशालता देखकर मन विस्मृत हो जाता है। यहां स्नान करने पर समुन्द्र की लहरों से टकराने का रोमांच अद्भुत और अनूठा अहसास देता है। जिससे सारी थकान दूर होकर चित्त प्रफुल्लित हो जाता है।
मशहूर सैंड आर्टिस्ट सुदर्शन पटनायक भी अपनी रेत से बनने वाली कलाकृतियों को इसी बीच पर बनाते हैं। तट पर बिखरी सुनहरी रेत, पानी की तेज लहरें और समुद्र की विशालता देखकर मन विस्मृत हो जाता है। यहां स्नान करने पर समुन्द्र की लहरों से टकराने का रोमांच अद्भुत और अनूठा अहसास देता है। जिससे सारी थकान दूर होकर चित्त प्रफुल्लित हो जाता है।
4. चिल्का झील
प्रसिद्ध चिल्का झील उड़ीसा का प्रमुख आकर्षण है। अगर आप प्रकृति प्रेमी और पक्षियों को देखने में रूचि रखते हैं तो पुरी पहुंचकर चिल्का झील अवश्य जाये।यहां डॉलफिन मछली और अनेक प्रजाति के देश विदेश से आये पक्षी देखे जा सकते हैं।
पुरी से चिल्का झील की दुरी 55 km. है। चिल्का लेक जाने के लिए OTDC (Odisa Torisum Development Corp.) की बसों के साथ प्राइवेट बस भी चलती हैं ।
चिल्का झील में अनेक छोटे द्वीप बने हुए है। इन द्वीपों पर जाने के लिए डीज़ल इंजिन की बोट चलती है। इस झील में डॉल्फिन मछली के साथ ही मछली, झींगे व केकड़ों आदि की 150 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं। 70 km. लम्बी और 30 km. चौड़ी यह झील, एशिया की सबसे बड़ी खारे पानी की झील है।
दिसम्बर से जून तक इसका पानी खारा रहता है और बरसात के मौसम में इसका पानी मीठा हो जाता है। इसकी औसत गहराई 3 मीटर है। इस झील में देश विदेश से पक्षी आया करते हैं, इनकी प्रजातियों की संख्या 160 से अधिक है।
दिसम्बर से जून तक इसका पानी खारा रहता है और बरसात के मौसम में इसका पानी मीठा हो जाता है। इसकी औसत गहराई 3 मीटर है। इस झील में देश विदेश से पक्षी आया करते हैं, इनकी प्रजातियों की संख्या 160 से अधिक है।
5. कोणार्क सूर्य मंदिर
जगन्नाथ पुरी से लगभग 35 किलोमीटर दूर उत्तर-पूर्व दिशा में समुद्र तट पर स्थित कोणार्क सूर्य मंदिर अपनी वास्तुकला और नक्काशी के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है। इसे 13वीं शताब्दी में राजा नरसिंह देव ने बनवाया था। यह मंदिर सूर्य के रथ के आकार का बना है। पत्थर के 24 विशाल पहियों वाले इस रथ को 7 घोड़े खींचते हुए दिखाए गए हैं।
मंदिर के अंदर रेत भरकर इसके मुख्य द्वार को बंद कर दिया गया है। परन्तु इस प्राचीन मंदिर का वास्तुशिल्प और बाहरी दीवारों पर बनी कलाकृतियां बेजोड़ हैं। और अध्यात्म का मार्ग प्रशस्त करने की सीढी के रूप में अंकित हैं।
मंदिर के अंदर रेत भरकर इसके मुख्य द्वार को बंद कर दिया गया है। परन्तु इस प्राचीन मंदिर का वास्तुशिल्प और बाहरी दीवारों पर बनी कलाकृतियां बेजोड़ हैं। और अध्यात्म का मार्ग प्रशस्त करने की सीढी के रूप में अंकित हैं।
6. गुंडिचा मंदिर
यह मंदिर जगन्नाथ मंदिर से 2 km. की दूरी पर स्थित है। गुंडिचा श्रीकृण की मौसी थी। रथयात्रा के समय भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र तीनों के रथ यहां लाये जाते हैं फिर विधिपूर्वक इन्हें रथ से उतारकर 7 दिनों तक इसी मंदिर में रखा जाता है। इसके पश्चात वापस इन मूर्तियों को जगन्नाथ मंदिर में स्थापित कर दिया जाता है।
7. साक्षी गोपाल मंदिर
जगन्नाथ पुरी से 20 किलोमीटर दूर पुरी-भुवनेश्वर हाइवे पर स्थित है साक्षी गोपाल मंदिर जो देखने में हूबहू पुरी जगन्नाथ मंदिर का छोटा रूप है। इसके अलावा लोकनाथ मंदिर, चंदन तालाब जैसे अन्य स्थान पुरी में देखे जा सकते हैं।
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पुरी यात्रा का सबसे अच्छा समय (Best time to visit puri) -
अगर आप रथ यात्रा देखना चाहते हैं तो उस समय (जून /जुलाई ) में जा सकते हैं। वैसे समुद्र से बहुत प्रभावित होने के कारण बारिश के मौसम में यहाँ भारी बारिश होती है और गर्मियों का मौसम काफी गर्म होता है इसलिए अक्टूबर से मार्च तक पुरी की यात्रा का सबसे अच्छा समय है।
कहां ठहरें -
पुरी के मंदिर परिसर के पास बहुत सारी होटले है। आप चाहें तो समुद्र तट के पास के न्यू मरीन ड्राइव रोड पर भी होटल में रुक सकते है।यहां धर्मशाला भी है। मंदिर प्रशासन के भक्त निवास, नीलाचल भक्त निवास और श्री गुंडिचा भक्त निवास में रूम ऑनलाइन बुक करने के लिए मंदिर प्रशासन की वेब साईट www.jagannath.nic.in पर जाकर बुक कर सकते है।
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