swing trading in stock market. स्विंग ट्रेडिंग क्या है? इसे कैसे करें?
शेयर या कमोडिटी मार्केट में स्विंग ट्रेडिंग, ट्रेडिंग की एक शैली है जो एक से अधिक दिन से लेकर कुछ दिनों या कुछ हफ्तों तक चल सकती है। इसमें ऑप्शन या स्टॉक में आने वाले मोमेंटम के द्वारा लाभ प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है।
स्विंग ट्रेडिंग एक लोकप्रिय ट्रेडिंग सिस्टम है और इसे ट्रेडिंग का किंग कहा जाता है।स्विंग ट्रेडर, मुख्य रूप से तकनीकी विश्लेषण (technical analysis) का उपयोग करते हैं। जिसमे ये ट्रेडर, चार्ट एनालिसिस और इंडिकेटर के आधार पर किसी स्टॉक या इंडेक्स के प्राइस पैटर्न को समझकर सौदा पकड़ते हैं।
यहां आवश्यकता पड़ने पर फंडामेंटल एनालिसिस का उपयोग भी करते हैं। इसके साथ स्विंग ट्रेडर किसी स्टॉक के रिजल्ट, कोई विशेष न्यूज़ या कम्पनी में होने वाले बड़े बदलाव जैसे आधार पर भी ट्रेड सेट करते हैं।
यहां आवश्यकता पड़ने पर फंडामेंटल एनालिसिस का उपयोग भी करते हैं। इसके साथ स्विंग ट्रेडर किसी स्टॉक के रिजल्ट, कोई विशेष न्यूज़ या कम्पनी में होने वाले बड़े बदलाव जैसे आधार पर भी ट्रेड सेट करते हैं।
अगर कोई स्टॉक कंसोलिडेट कर रहा हो तो उसके ब्रेकआउट का इंतज़ार किया जाता है। जिस दिशा में ब्रेकआउट हो उसके अनुसार ट्रेड बनाये जाते हैं। स्विंग ट्रेडिंग के लिए 1 घंटे के सुपरट्रेंड इंडिकेटर का प्रयोग भी एंट्री और एग्जिट के लिए किया जाता है।
इन्ट्राडे और स्विंग ट्रेडिंग में अंतर
1. अगर हम इंट्राडे ट्रेडर और स्विंग ट्रेडर की तुलना करें तो डे ट्रेडर बाजार बंद होने से पहले उसी दिन अपने सौदे को क्लोज कर देता है। और उसे रात भर उस सौदे को याद रखने की जरूरत नहीं होती क्योकि उसे मार्केट बंद होने तक जो लाभ या हानि होना था वो पहले ही हो चुका होता है। डे ट्रेडिंग में कारोबार की स्थिति एक ही दिन तक सीमित है।
स्विंग ट्रेडर्स पिछले दिनों में मार्केट या स्टॉक की चाल के आधार आने वाले दिनों में होने वाले रुझान को समझने का प्रयास करते हैं। स्विंग ट्रेडिंग में कुछ दिनों से लेकर ज़्यादातर 3 -4 सप्ताह तक ट्रेडर को सजग रहना होता है।
2. स्विंग ट्रेडर सपोर्ट और रेजिस्टेंस को ध्यान में रखकर सौदा लगाता है, सामान्य रूप से किसी भी स्टॉक का प्राइस सीधे एक दिशा में नहीं चलता वह बीच में एक बार रुकता जरूर है फिर थोड़ा रिवर्स लेकर ऊपर या नीचे जाता है। इसलिए स्विंग ट्रेडर का टारगेट achieve करने के चान्सेस बढ़ जाते हैं। इसके विपरीत डे ट्रेडर को सिर्फ कुछ घंटों का समय ही मिलता है। जिसमें सौदा विपरीत पड़ जाए तो टारगेटेड भाव आने के चांस कम होते हैं।
3. स्विंग ट्रेडर का सबसे बड़ा रिस्क अगले दिन मार्केट खुलने पर बड़ा गैप अप या गैप डाउन होना है। यह अप्रत्याशित रूप से कभी भी हो सकता है। क्योंकि देश या विदेश में अचानक होने वाले घटनाक्रम को पहले से किसी भी विश्लेषण द्वारा नहीं जाना जा सकता।
ऐसी दशा में मुनाफा या घाटा दोनों ही बड़ा होगा। घाटे की दशा में ट्रेडर की कैपिटल एक बार में ही वाइप आउट न हो जाए इसलिए स्विंग ट्रेडर को कम क्वान्टिटी के साथ या छोटा ट्रेड लेने की सलाह दी जाती है।
4. इंट्राडे ट्रेडर ब्रोकर से मिलने वाले ट्रेडिंग मार्जिन का उपयोग कर सकते हैं और अपने ट्रेड साइज को बड़ा कर सकते हैं। क्योंकि दिन भर के ट्रेड का एक मोटा मोटा अनुमान होता है और डे ट्रेडर की नज़र दिन भर अपने ट्रेड पर लगी होती है। पर स्विंग ट्रेडर अपने पैसों में से एक छोटा हिस्सा ही लगाता है जिससे घाटे की स्थिति में अपनी स्थिति (position) को मार्केट में मार्जिन भरकर बनाये रख सके। छोटी पोजीशन होने से इंट्रा डे की अपेक्षा स्विंग ट्रेडर का रिस्क कम होता है।
एक स्विंग ट्रेडर चार्ट में बन रहे पैटर्न की तलाश करता है। कुछ सामान्य पैटर्न में औसत क्रॉसओवर, बोलिंगर बैंड, हेड एंड शोल्डर पैटर्न शामिल हैं।
इसके अलावा पर्टिकुलर स्टॉक का रेंज देखा जा सकता है कि पिछले दिनों में इसने बार बार किन सपोर्ट और रेजिस्टेंस को टच किया है। अंततः प्रत्येक स्विंग ट्रेडर एक योजना और रणनीति तैयार करता है जो उन्हें कई ट्रेडों पर बढ़त देता है।
इसमें अपना एक ट्रेड सेटअप बनाना होता है। यह आसान नहीं है और हर बार कोई भी रणनीति या सेटअप काम नहीं करता है। अपना रिस्क और रिवॉर्ड सोचकर काम करना होता है। स्विंग ट्रेडर अपने सोचे हुए टारगेट के आते ही एग्जिट कर लेता है।
अगर उसकी योजना के अनुसार सौदे में बने रहना है तो मार्जिन भरकर वेट करता है। कई बार जरूरत पड़ने पर वो वह क्वांटिटी बढ़ा भी सकता है। घाटे के सौदे को एवरेज करने से अक्सर मना किया जाता है। पर मैं ऐसे लोगों को जानता हूँ, जो ट्रेड के अपोजिट जाने पर पीछे कम से कम 2 बार एवरेज करने का पैसा पहले से तैयार रखते हैं।
यहां वो पहले ली गई क्वांटिटी को बढ़ाकर काम करते हैं फिर धीरे धीरे जहां मुनाफा होता है, वहां एग्जिट भी करते जाते हैं। अधिकतर इन्हें प्रॉफिट होता है, उसका कारण यह है कि सामान्यतः कोई स्टॉक 10 -15% किसी एक दिशा में चलने के बाद रिवर्स ले ही लेता है। यह कोई पक्का नियम नहीं है, बस एक संभावना है और स्टॉक मार्केट संभावनाओं का ही खेल है।
इसमें स्टॉक के पहले 5 परसेंट फिर 10 परसेंट तक चलने पर एवरेजिंग की जाती है। जल्दी एवरेजिंग करने पर यह नीति फेल हो जाएगी। अगर स्टॉक 15 परसेंट के बाद भी चलता रहे तो घाटा बुक करके एग्जिट किया जाता है। ज्यादातर इस नीति से फायदा ही होता है
स्विंग ट्रेडिंग की रणनीतियाँ (strategies for swing trading )
1. सपोर्ट एंड रेजिस्टेंस लेवल
टेक्निकल एनालिसिस की आधारशिला किसी भी स्टॉक की सपोर्ट और रेजिस्टेंस लाइन को समझना है। इसे समझकर ही सफल ट्रेडिंग रणनीति का निर्माण स्विंग ट्रेडर करते हैं।
चार्ट को देखने पर एक रेट या एरिया दिखाई पड़ता है जहां से प्राइस नीचे नहीं जा पाता और उसे बाइंग का सपोर्ट मिलता है। वहीं से प्राइस ऊपर आने लगता है। एक स्विंग ट्रेडर सपोर्ट लाइन के पास उछाल पर अप साइड का ट्रेड बनाएगा और सपोर्ट लाइन के थोड़ा नीचे स्टॉप लॉस लगाएगा।
रेजिस्टेंस लेवल, सपोर्ट लेवल के विपरीत है। चार्ट में साफ दिखाई पड़ता है कि प्राइस एक रेट या एरिया में जाकर वापस आ जाता है, जिससे कीमत एक अपट्रेंड के खिलाफ वापस आ सकती है। इस मामले में एक स्विंग ट्रेडर, रेजिस्टेंस लेवल के पास या थोड़ा ऊपर उछाल आने पर एक सेल साइड की पोजीशन बना सकता है। उसका स्टॉपलॉस रेजिस्टेंस लेवल के थोड़ा ऊपर होगा।
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2. चैनल ट्रेडिंग रणनीति
इस स्विंग ट्रेडिंग रणनीति के लिए चार्ट पर दो समानांतर रेखाओं का इस्तेमाल स्टॉक की पहचान के लिए कर सकते हैं। नीचे गिरते या ऊपर चढ़ते स्टॉक को देखने पर वो एक चैनल के भीतर दिखाई पड़ेगा। यहां उसी स्टॉक का चयन करें जो मजबूती से एक चैनल के भीतर ट्रेड कर रहा है।
यदि आपने एक स्टॉक चार्ट पर एक मंदी की प्रवृत्ति के आसपास एक चैनल प्लॉट किया है, तो आप चैनल की शीर्ष रेखा से नीचे की दिशा पकड़ने पर सेल साइड की पोजीशन बनाएंगे। वहीं चैनल के नीचे लाइन पर जाकर प्राइस में उछाल होने की स्थिति में अपनी पोजीशन से एग्जिट करने पर विचार करेंगे।
यदि आपने एक स्टॉक चार्ट पर एक मंदी की प्रवृत्ति के आसपास एक चैनल प्लॉट किया है, तो आप चैनल की शीर्ष रेखा से नीचे की दिशा पकड़ने पर सेल साइड की पोजीशन बनाएंगे। वहीं चैनल के नीचे लाइन पर जाकर प्राइस में उछाल होने की स्थिति में अपनी पोजीशन से एग्जिट करने पर विचार करेंगे।
जब चैनल स्विंग-ट्रेड ले रहे हैं, तो ट्रेंड के साथ ट्रेड करना महत्वपूर्ण है। इसलिए अगर सेल साइड में बैठे हैं तो पोजीशन को तब तक ओपन रखें जब तक रेट चैनल के दूसरे सिरे को टच नहीं करता और एक अपट्रेंड की शुरुआत नहीं हो जाती।
3. फिबोनाची रिट्रेसमेंट
फिबोनाची रिट्रेसमेंट पैटर्न का उपयोग ट्रेडर सपोर्ट और रेजिस्टेंस लेवल की पहचान करने में मदद करने के लिए कर सकता है। स्टॉक अक्सर एक टेन्डेन्सी के हिसाब से एक निश्चित प्रतिशत के पास सपोर्ट ले सकता है। यदि वहां सपोर्ट नहीं लेता तो उसके नीचे के निर्धारित प्रतिशत में रुककर सपोर्ट लेने की संभावना होती है।
एक स्टॉक चार्ट पर 23.6%, 38.2% और 61.8% के क्लासिक फिबोनाची अनुपात के हिसाब से अपना मूवमेंट कर सकता है। स्विंग ट्रेडर एक शॉर्ट-टर्म सेल पोजीशन में प्रवेश कर सकता है, अगर स्टॉक प्राइस में गिरावट आती है और 61.8% रिट्रेसमेंट स्तर (प्रतिरोध स्तर) को तोड़ कर नीचे चला जाता है।
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एक स्टॉक चार्ट पर 23.6%, 38.2% और 61.8% के क्लासिक फिबोनाची अनुपात के हिसाब से अपना मूवमेंट कर सकता है। स्विंग ट्रेडर एक शॉर्ट-टर्म सेल पोजीशन में प्रवेश कर सकता है, अगर स्टॉक प्राइस में गिरावट आती है और 61.8% रिट्रेसमेंट स्तर (प्रतिरोध स्तर) को तोड़ कर नीचे चला जाता है।
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4. सिंपल मूविंग एवरेज सिस्टम
सबसे लोकप्रिय स्विंग ट्रेडिंग तकनीकों में से एक सिंपल मूविंग एवरेज का उपयोग करके ट्रेड का निर्धारण करना होता है। इसमें आपको यह निर्धारित करना होता है कि ट्रेड कितने दिनों के लिए लेना चाह रहे हैं।
उस आधार पर अगर शार्ट टाइम के लिए ट्रेड लेना है तो 13 दिन की एवरेज लाइन को 5 दिन वाली लाइन, ऊपर या नीचे जिधर काटे उस तरफ का ट्रेड ले सकते हैं। थोड़े लम्बे ट्रेड के लिए 50 और 20 दिन के मूविंग एवरेज वाली रेखाओं के क्रॉस ओवर का उपयोग कर सकते हैं।
यदि MACD लाइन सिग्नल लाइन के ऊपर से गुजरती है तो तेजी के ट्रेंड का सिग्नल मिलता है और खरीद करके ट्रेड करने पर विचार किया जाता है। यदि MACD लाइन सिग्नल लाइन के नीचे से गुजरती है तो मंदी होने की संभावना है, यहां पर सेल करके ट्रेड बनाने का सिग्नल होता है। स्विंग ट्रेडर को जब अपने ट्रेड से विपरीत सिग्नल MACD लाइन से मिलता है तब वह ट्रेड से बाहर निकल जाता है।
5. MACD क्रॉसओवर
MACD क्रॉसओवर स्विंग ट्रेडिंग सिस्टम के आधार पर स्विंग ट्रेड के लिए शेयर का चुनाव आसानी से किया जा सकता है। यह ट्रेंड डायरेक्शन और रिवर्सल को निर्धारित करने के लिए उपयोग किए जाने वाले सबसे लोकप्रिय ट्रेडिंग संकेतकों में से एक है। इसमें एमएसीडी लाइन और सिग्नल लाइन दो चलती औसत लाइन होती है।यदि MACD लाइन सिग्नल लाइन के ऊपर से गुजरती है तो तेजी के ट्रेंड का सिग्नल मिलता है और खरीद करके ट्रेड करने पर विचार किया जाता है। यदि MACD लाइन सिग्नल लाइन के नीचे से गुजरती है तो मंदी होने की संभावना है, यहां पर सेल करके ट्रेड बनाने का सिग्नल होता है। स्विंग ट्रेडर को जब अपने ट्रेड से विपरीत सिग्नल MACD लाइन से मिलता है तब वह ट्रेड से बाहर निकल जाता है।
conclusion -
सारांश रूप में कहा जा सकता है कि यह सभी रणनीतियाँ स्विंग ट्रेड के लिए इस्तेमाल की जा सकती हैं। पर हर सिस्टम सभी के लिए लाभप्रद नहीं होता। आप अपने लिए एक ट्रेडिंग नीति बनाएं और उस पर अमल करके देखें। अपना स्टॉपलॉस और टारगेट क्लियर डिफाइन करके चलें और कुछ दिन तक प्रयोग करने के बाद जिस नीति से पॉजिटिव रिजल्ट मिलें वही सिस्टम अपनाएँ। सावधानी हमेशा रखें क्योंकि आपके लॉस प्रॉफिट के जिम्मेदार आप स्वयं होंगे।
आशा है ये आर्टिकल "swing trading in stock market. स्विंग ट्रेडिंग क्या है? इसे कैसे करें?" आपको शेयर मार्केट में ट्रेड करने के लिए उपयोगी लगा होगा। इसे अपने मित्रों तक शेयर करें जिससे वे भी मार्केट में लाभ उठा सकें। अपने सवाल और सुझाव के लिए कमेंट करें। शेयर मार्केट की रणनीतियां समझने के लिए इस वेबसाइट पर विजिट करते रहें।
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