Medical insurance for family. मेडिकल इंश्योरेंस की जरूरी बातें
मेडिकल इंश्योरेंस या हेल्थ इंश्योरेंस को मेडिकल मेडिक्लैम के नाम से भी जाना जाता है। आज स्वास्थ्य पर खर्च लगातार बढ़ते जा रहा है और अब तो मामूली बीमारियों के इलाज में भी लाखों रुपये खर्च हो रहे हैं, इस बढ़ते खर्च को वहन करना मध्यम वर्गीय परिवार के लिए कठिन हो गया है।
ऐसे में "मेडिकल इंश्योरेंस फॉर फैमिली" पालिसी लेना जरूरी है। इसके द्वारा परिवार के किसी सदस्य के बीमार पड़ने पर आर्थिक मदद होती है।
मेडिकल इंश्योरेंस क्या है -
Medical insurance for family, बीमा का एक ऐसा स्वरुप है, जो हमें या हमारे परिवार को बीमारी और स्वास्थ्य सम्बन्धी होने वाले बड़े खर्चो जिनमें अस्पताल में भर्ती और ऑपरेशन का खर्च शामिल होता है, की भरपाई के लिए कराया जाता है।यह किसी व्यक्ति और इंश्योरेंस कम्पनी के मध्य एक तरह का एग्रीमेंट होता है।मेडिकल इंश्योरेंस, फ्यूचर में होने वाली किसी बीमारी से आर्थिक सुरक्षा प्रदान करता है।
बहुत से लोग मेडिकल इंश्योरेंस लेने को पैसे की बर्बादी मानते हैं। वैसे अगर आपको इसका क्लेम लेने की जरूरत नहीं पड़े तो बहुत अच्छी बात है क्योंकि स्वस्थ रहने और संभलकर रहने का कोई विकल्प नहीं है।
लेकिन अगर कभी आपको जरूरत पड़ ही जाए तो यह आपको बड़े आर्थिक संकट से बचा सकता है। छोटी सी राशि का प्रीमियम चुकाने के बाद चार - पांच लाख रुपये का हेल्थ कवर लेना समझदारी की बात है।
मेडिकल इंश्योरेंस की जरुरत क्यों है -
आज के समय में अपने आर्थिक लक्ष्यों की पूर्ति के लिए भाग दौड़ और मानसिक तनाव बहुत बढ़ गया है। साथ ही प्रदूषित वातावरण, और खान पान में फ़ास्ट फ़ूड का प्रयोग बढ़ने से बीमारी होने के खतरे हमेशा बने रहते हैं।ये सच है कि आज मेडिकल फील्ड ने बहुत तरक्की कर ली है और बीमारियो का पता लगाने की नयी तकनीके इजाद कर ली गयी है, इसके चलते बीमारियों का इलाज तो बाद की बात होती है, बड़ी बड़ी मशीनों की ईजाद तो केवल रोग की जांच के लिए की गई है।
इन दर्जनों मशीनों और टेस्ट से ये जाना जाता है की व्यक्ति को बीमारी कौन सी है। बीमारी जांचने की ये मशीनें महंगी होती हैं और इनसे किये गए टेस्ट भी काफी महंगे होते हैं। यानि सारा खेल पैसे का हो चुका है।
अगर व्यक्ति के पास पैसे है, तो वह अपनी बीमारी का इलाज करा सकता है। लेकिन अगर उसके पास पैसे की कमी है, तो फिर हो सकता है कि उसे अपनी जमा पूंजी का बड़ा हिस्सा मेडिकल बिल देने में खर्च करना पड़े।
आजकल के महंगे हॉस्पिटल खर्च और बिल की वजह से लोगों को अपनी जमीन या मकान भी गिरवी रखना या बेचना पड़ता है जिससे वो फाइनेंसियली कई साल पीछे चले जाते हैं।
किसी दुर्घटना की स्थिति में न सिर्फ इलाज पर आपको पैसे खर्च करने पड़ते हैं, बल्कि आपकी कमाने की क्षमता भी घट जाती है। इस हिसाब से दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति पर दोहरी मार पड़ती है। हेल्थ इंश्योरेंस इस स्थिति में आपके लिए मददगार साबित होता है।
मेडिकल इंश्योरेंस दो तरह का होता है - व्यक्तिगत मेडिकल प्लान, जिसमे आप स्वयं के लिए मेडिकल इंश्योरेंस लेते हैं और दूसरा फैमिली मेडिकल इंश्योरेंस प्लान, जो पूरे परिवार को मेडिकल सुविधा प्रदान करता है। Medical insurance पालिसी दो तरह का कवरेज देती है –
इस तरह के कवरेज में बीमा कंपनी, पहले से तय हॉस्पिटल में जिसे बीमा योजना से जुड़ा नेटवर्क हॉस्पिटल कहा जाता है, में जो भी खर्च होता है, वह खर्च बीमा कंपनी द्वारा सीधे हॉस्पिटल को कर दिया जाता है।
2. Reimbursement बेसिस –
2. Reimbursement बेसिस –
इस तरह के केस में आप बीमा कम्पनी द्वारा निर्धारित मापदंडो को पूरा करने वाले किसी भी हॉस्पिटल में इलाज करवा सकते हैं और उसमें लगने वाले सभी खर्चो को बिल सहित बीमा कंपनी के पास जमा करके, उसका भुगतान व्यक्ति खुद ले सकता है।
इसका मतलब पहले आपको अपनी जेब से खर्च करना पड़ता है, और बाद में उन सभी खर्चो का पेमेंट इंश्योरेंस कंपनी द्वारा आपको वापस मिल जाता है.
कम्पनी के केस सेटलमेंट रेश्यो की जानकारी नेट से निकालें। कम्पनी की देनदारी कितनी अच्छी है ये जानकर ही पालिसी लें।
यह पहले से चेक कर लें की आपके शहर में उस कम्पनी का कितने हॉस्पिटल से समझौता है, और उन अस्पतालों में इलाज का स्तर और सुविधाएं कैसी हैं।
हेल्थ प्लान लेते वक्त पुरानी बीमारियों को छुपाना गलत है।अपनी सारी हेल्थ हिस्ट्री बीमा कंपनी को साफ़-साफ़ बताएं भले ही आपको थोड़ा अधिक प्रीमियम चुकाना पड़े।
हेल्थ पॉलिसी खरीदने से पहले यह समझ लें कि उसमें क्या शामिल नहीं है। कुछ पालिसी में हॉस्पिटल में एडमिट होने से पहले टेस्ट आदि का खर्चा शामिल नहीं होता।
डिस्चार्ज होने के बाद घर आने के बाद भी ड्रेसिंग आदि के होने वाले खर्चे कम्पनी देगी नहीं ये समझ लें। कहीं पर गंभीर बीमारियों का कवर लिया जा सकता है तो कुछ में घरेलू वजहों से हुई दुर्घटना के मामले में कवरेज नहीं मिलती। इन सब चीजों को क्लियर करके ही पॉलिसी खरीदें।
ऐसी पॉलिसी लें जिसे जीवन में किसी भी समय रिन्यू कराया जा सके। हेल्थ कवर का उद्देश्य बड़ी उम्र में बीमारियों के इलाज पर आने वाले खर्च से वित्तीय सुरक्षा है, इसका ध्यान रखें।
जिससे इलाज के दौरान आपको दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। पुरानी बीमारियों की बात उजागर करने से भले ही आपको प्रीमियम अधिक देना पड़ेगा पर उससे न डरें।
इलाज के वक्त या उसके बाद क्लेम खरिज हो जाने की नौबत ही न आने दें।भुगतान संबंधी सभी जानकारी पहले से लेकर फिर सोच समझकर फैसला ले सकते हैं।
इसका मतलब पहले आपको अपनी जेब से खर्च करना पड़ता है, और बाद में उन सभी खर्चो का पेमेंट इंश्योरेंस कंपनी द्वारा आपको वापस मिल जाता है.
Medical insurance पालिसी लेते समय इन 7 बातों का ध्यान रखें -
1 . दूसरी पालिसी से तुलना करें -
प्लान लेने से पहले उसकी शर्त को ध्यान से समझें. नेट पर सभी कंपनियों के प्लान की डीटेल जानकारी उपलब्ध है।मेडिकल पॉलिसी के हर क्लॉज को ध्यान से समझें, फिर प्रीमियम चुकाएं।कम्पनी के केस सेटलमेंट रेश्यो की जानकारी नेट से निकालें। कम्पनी की देनदारी कितनी अच्छी है ये जानकर ही पालिसी लें।
2 . हॉस्पिटल की संख्या -
मेडिकल इंश्योरेंस कम्पनी कुछ हॉस्पिटल से समझौता होता है। उसके ग्राहकों को जरूरत पड़ने पर उन्हीं हॉस्पिटल में इलाज करवाना होता है।यह पहले से चेक कर लें की आपके शहर में उस कम्पनी का कितने हॉस्पिटल से समझौता है, और उन अस्पतालों में इलाज का स्तर और सुविधाएं कैसी हैं।
3. वेटिंग पीरियड -
हर कंपनी पहले से मौजूद बीमारी के लिए भी बीमा कवर देती है, पर इस मामले में उनका वेटिंग पीरियड 36 माह, 48 माह होता है। जिसका वेटिंग पीरियड कम हो उसी से पालिसी लें।हेल्थ प्लान लेते वक्त पुरानी बीमारियों को छुपाना गलत है।अपनी सारी हेल्थ हिस्ट्री बीमा कंपनी को साफ़-साफ़ बताएं भले ही आपको थोड़ा अधिक प्रीमियम चुकाना पड़े।
4 .क्या शामिल नहीं है, इसे जानें -
विभिन्न कंपनियों के मेडिकल इंश्योरेंस में कुछ चीजें शामिल नहीं होती. हर बीमा कंपनी के अपने नियम होते हैं और उस हिसाब से वह पॉलिसी डिजाइन करती हैं।हेल्थ पॉलिसी खरीदने से पहले यह समझ लें कि उसमें क्या शामिल नहीं है। कुछ पालिसी में हॉस्पिटल में एडमिट होने से पहले टेस्ट आदि का खर्चा शामिल नहीं होता।
डिस्चार्ज होने के बाद घर आने के बाद भी ड्रेसिंग आदि के होने वाले खर्चे कम्पनी देगी नहीं ये समझ लें। कहीं पर गंभीर बीमारियों का कवर लिया जा सकता है तो कुछ में घरेलू वजहों से हुई दुर्घटना के मामले में कवरेज नहीं मिलती। इन सब चीजों को क्लियर करके ही पॉलिसी खरीदें।
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5 . मेटरनिटी या डिलेवरी का खर्चा -
फैमिली मेडिकल इंश्योरेंस पालिसी ले रहें हैं तो पता करें कम्पनी डिलेवरी का खर्चा पालिसी लेने के कितने साल बाद उठाएगी। ज्यादतर कंपनियों में यह पीरियड 3 से 4 साल का होता है। ऑपरेशन या नॉर्मल डिलेवरी का कितना खर्चा मिलेगा यह जानें।6 . लाइफ टाइम कवर -
बड़ी उम्र में बीमारियों का हमला अधिक होता है। ज्यादातर बीमारियां 60 साल के बाद होती हैं अतः लाइफ टाइम कवर और क्रिटिकल केयर कैंसर जैसी बीमारियों को ऐड कर सकते हैं या नहीं, ये जान लें।ऐसी पॉलिसी लें जिसे जीवन में किसी भी समय रिन्यू कराया जा सके। हेल्थ कवर का उद्देश्य बड़ी उम्र में बीमारियों के इलाज पर आने वाले खर्च से वित्तीय सुरक्षा है, इसका ध्यान रखें।
7 . पूरी जानकारी दें -
इंश्योरेंस लेते वक्त बीमा कंपनी को अपने मेडिकल रिकॉर्ड के बारे में सही-सही जानकारी दें. अगर आप कुछ गलत जानकारी देते हैं तो मेडिकल इंश्योरेंस कंपनी आपको क्लेम देने से मना कर सकती है।जिससे इलाज के दौरान आपको दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। पुरानी बीमारियों की बात उजागर करने से भले ही आपको प्रीमियम अधिक देना पड़ेगा पर उससे न डरें।
इलाज के वक्त या उसके बाद क्लेम खरिज हो जाने की नौबत ही न आने दें।भुगतान संबंधी सभी जानकारी पहले से लेकर फिर सोच समझकर फैसला ले सकते हैं।
आशा है ये जानकारी "Medical insurance for family."आपको उपयोगी लगी होगी। ऐसी ही और भी उपयोगी जानकारी के लिए वेबसाइट में विजिट करते रहें।
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