Future trading in indian stock market.फ्यूचर ट्रेडिंग कैसे करें?
शेयर बाजार की पिछली पोस्ट में हमने जाना कि यहां ट्रेडिंग की शुरुवात करने के लिए शेयर का चुनाव कैसे करना है। नए ट्रेडर के लिए ये अच्छा होता है कि वो अच्छी कंपनियों के शेयर खरीद कर कुछ दिन रखे, वाच करे और मौका देखकर उन्हें सेल करे।
ऐसा करने से उसे कुछ दिनों में शेयर बाजार के चाल ढाल की जानकारी होने लगती है। कुछ दिन काम करने के बाद उसे ये जानने की उत्सुकता होने लगती है कि (वायदा बाजार) "फ्यूचर ट्रेडिंग" क्या होती है? आइये जानते हैं "फ्यूचर ट्रेडिंग" के बारे में -
वायदा बाजार क्या है (what is future market )-
भविष्य में नियत तारीख तक ट्रेडर्स की ओर से सौदा सेटल करने के वादे को वायदा बाजार (Future market) या डेरीवेटिव मार्केट (Derivative Market) कहते हैं। इसमें ट्रेडर अपने एनालिसिस और समझ आधार पर तेजी -मंदी दोनों तरफ के सौदे बनाते हैं।वायदा बाजार में एक निश्चित तारीख पर सौदे के सेटलमेंट किेए जाते हैं यह सेटलमेंट हर महीने के आखिरी गुरूवार को होता है। यदि वह दिन राष्ट्रीय अवकाश का हुआ तो उसके 1 दिन पहले यानी बुधवार को सेटलमेंट होता है।
सेटलमेंट की तारीख को एक्सपायरी डेट कहा जाता है। अब निफ़्टी और बैंकनिफ्टी की वीकली एक्सपायरी भी शुरू हो चुकी है। यहां सप्ताह के प्रत्येक गुरुवार को सेटलमेंट होता है। सप्ताह के हर गुरुवार को पड़ने वाली तारीखों के अनुसार कॉन्ट्रैक्ट लिए या बेचें जाते हैं।
यहां शेयर की खरीद बिक्री एक्सचेंज द्वारा निर्धारित की गई संख्या (लाट साइज़) के अनुसार करनी होती है। इसका मतलब है आप अपनी पसंद अनुसार 10 -20 शेयर नहीं ट्रेड कर सकते।
आपको उसका कम से कम 1 लॉट खरीदना होगा। शेयर के मूल्य के आधार पर लॉट साइज होती है। किसी भी शेयर के 1 लॉट का मूल्य सामान्यतः 5 से 6 लाख रूपये तक होता है।
आपको उसका कम से कम 1 लॉट खरीदना होगा। शेयर के मूल्य के आधार पर लॉट साइज होती है। किसी भी शेयर के 1 लॉट का मूल्य सामान्यतः 5 से 6 लाख रूपये तक होता है।
ट्रेडर्स चाहें तो अपने सौदे को अगले महीने के लिए रोल ओवर भी कर सकते हैं। वायदा बाजार में ट्रेडिंग के लिए कोई एक डेरिवेटिव होना जरूरी है। डेरिवेटिव्स में स्टॉक्स, इंडेक्स, मेटल, गोल्ड, क्रूड, करेंसी शामिल है। वायदा कारोबार में 2 तरह से काम होता है - फ्यूचर और ऑप्शन के द्वारा।
फ्यूचर ट्रेडिंग क्या है -
फ्यूचर के लिए किसी स्टॉक या इंडेक्स का चुनाव करने पर आपको उसका पूरा मूल्य नहीं देना होता केवल मार्जिन मनी (कुल मूल्य का 10 -15%) जमा करने पर ही ट्रेडिंग की जा सकती है। फ्यूचर कैश मार्केट के मुकाबले प्रीमियम या डिस्काउंट पर ट्रेड करते हैं। कम पैसे में बाजार में ट्रेडिंग फ्यूचर के जरिए मुमकिन है।
मार्जिन एक्सचेंज तय करता है। फ्यूचर ट्रेडिंग महीने भर के लिए होती है। ट्रेडर्स चाहें तो अपने सौदे को अगले महीने के लिए रोल ओवर भी कर सकते हैं। फ्यूचर ट्रेड में हर दिन का नफा-नुकसान का हिसाब किताब होता है। नुकसान होने पर ब्रोकर की भरपाई, ट्रेडर को करनी पड़ती है। फ्यूचर कारोबार इंडेक्स और स्टॉक्स दोनों में होता है।
स्टॉक फ्यूचर्स क्या है -
स्टॉक मार्केट में लिस्टेड कंपनियों में सभी में फ्यूचर ट्रेडिंग नहीं की जा सकती। फिलहाल 250 शेयर स्टॉक फ्यूचर्स में शामिल हैं। फ्यूचर्स में ट्रेड होने वाले शेयरों को स्टॉक फ्यूचर्स कहते हैं।इन शेयरों की लिस्ट एक्सचेंज तैयार करते हैं। सेबी की मंजूरी के बाद ही शेयर फ्यूचर्स में ट्रेड हो सकते हैं। मार्केट कैप, वॉल्यूम और लिक्विडिटी देखकर शेयर स्टॉक फ्यूचर्स में शामिल किए जाते हैं।
कम पैसे में बड़ी पोजिशन स्टॉक फ्यूचर्स में संभव है। एफआईआई (विदेशी संस्थागत निवेशक) और घरेलू संस्थागत निवेशक (डी आई आई) स्टॉक फ्यूचर्स में ज्यादा निवेश करते हैं। वॉल्यूम और लिक्विडिटी के चलते बड़े निवेशक स्टॉक फ्यूचर्स में निवेश करते हैं।फ्यूचर अनुभवी ट्रेडर्स का काम है।क्योकि यहां लॉट साइज़ के चलते लॉस या प्रॉफिट दोनों अधिक होगा।
example - इसे एक उदाहरण द्वारा समझते हैं -
मान लीजिये मारुती का शेयर जब 7000/- था तब किसी ने उसका एक लॉट (जो 75 शेयर का है) खरीदा इसके लिए उसे 65000 /- की मार्जिन मनी देनी पड़ी जबकि उसके शेयर्स का कुल मूल्य 7000 x 75 =525000/- होता है।
अब उस दिन किसी कारण वश शेयर का भाव 3% यानी लगभग 200/-टूट जाता है और 6800/- हो जाता है। इस तरह उस ट्रेडर को नुकसान होगा - 200 x 75 = 15000/- अब ट्रेडर के सामने दो ही विकल्प होते हैं। पहला या तो वो 15000 /- भर कर सौदे में बना रह सकता है अन्यथा उसे सौदे से एग्जिट करना होता है।
इसमें बिना शेयर को खरीदे पहले बेचने (शार्ट सेलिंग) की सुविधा भी होती है। इसका अर्थ है कि यदि ट्रेडर को स्टॉक या बाजार में मंदी दिखाई पड़ती है तो वह पहले उस शेयर को बेच देता है फिर उसका रेट कम होने पर उसे खरीद लेता है। फ्यूचर हेजिंग में भी काम आता है।
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इंडेक्स फ्यूचर में ट्रेडिंग -
1. इंडेक्स में फ्यूचर ट्रेडिंग सबसे अधिक निफ़्टी और बैंकनिफ्टी में होती है। स्टॉक फ्यूचर्स की तरह यहाँ भी लॉट साइज होते हैं निफ़्टी का लॉट साइज वर्तमान समय में 75 का और बैंकनिफ्टी का 20 है। मार्जिन सुविधा भी स्टॉक futures जैसी मिलती है।2. निफ्टी फ्यूचर्स का भाव, निफ़्टी में शामिल 50 कंपनियों के रेट में होने वाले पॉज़ीटिव या नेगेटिव चेंज पर निर्भर करता है। निफ़्टी की प्रमुख कंपनियां हैं - रिलायंस, ITC, इनफ़ोसिस, टीसीएस, स्टेट बैंक आदि।
3. बैंकनिफ्टी में भारत के प्रमुख 12 बैंक शामिल किये गए हैं, जिनमें मुख्य हैं - HDFC बैंक, स्टेट बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, एक्सिस बैंक।
4. स्पॉट निफ़्टी या बैंकनिफ्टी के रेट और इनके futures के रेट में अंतर होता है। इसका अर्थ है futures के रेट में कभी प्रीमियम या डिस्काउंट होता है।
सीरीज खत्म होने के दिन फ्यूचर्स और स्पॉट के भाव बराबर हो जाते हैं। इंडेक्स फ्यूचर्स की दिशा तय करने में इनमे शामिल कंपनियों के टेक्निकल और फंडामेंटल बड़ा असर डालते हैं।
इंडेक्स फ्यूचर क्यों पॉपुलर है -
इंडेक्स फ्यूचर्स को ट्रैक करना आसान होता है। कम पैसे में ज्यादा बड़ा ट्रेड मुमकिन है। इंडेक्स फ्यूचर्स में मार्जिन भी कम है। निफ्टी फ्यूचर्स का मार्जिन केवल 7-8 फीसदी होता है। बैंक निप्टी फ्यूचर्स में काफी वॉल्यूम मिलता है। अधिक वॉल्यूम होने और वोलैटिलिटी अधिक होने से बहुत ध्यान से ट्रेड करने पर कम समय में पैसे बनने के चांस बढ़ जाते हैं। अनुभवी ट्रेडर इसका पूरा लाभ उठाते हैं।
वायदा बाजार (future trading) में रिस्क क्या है -
1. कम लिक्विडिटी मार्केट से बाहर कर देगी -
अगर सिर्फ 1 लॉट के पैसे हैं और मार्केट की दिशा उलटी पड़ गई तो मार्जिन नहीं भर पाने की दशा में ब्रोकर आपको सौदे से बाहर कर देगा। वायदा बाजार में ट्रेडिंग से पहले रिसर्च करें, क्योंकि वायदा बाजार में रिस्क ज्यादा होता है।
ट्रेडिंग से पहले यह decide करलें की जरूरत पड़ने पर दूसरा लॉट कब लेंगे। डेली के लॉस भरने की व्यवस्था पहले से होनी चाहिए। क्योंकि ये जरूरी नहीं है कि आपके सौदा लेने के दिन से ही मार्केट आपकी दिशा में चले। वायदा कारोबार में ट्रेडर्स के पास लिक्विडिटी होना जरूरी है। ज्यादा उतार-चढ़ाव होने पर एक्सचेंज मार्जिन बढ़ा देते हैं।
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2. अनुभव के बाद future ट्रेडिंग करें-
वायदा बाजार में ज्यादा रिस्क, ज्यादा मुनाफा होता है। निवेशक ट्रेडिंग की शुरुआत वायदा कारोबार से ना करें, बल्कि कैश मार्केट से करें। क्योंकि नुकसान होने पर एक्सट्रा मार्जिन भरना पड़ सकता है।फ्यूचर ट्रेडिंग में शॉर्ट सेलिंग सोच समझ कर करें । शॉर्ट सेलिंग ज्यादा अनुभवी लोगों का काम है। कैश मार्केट के मुकाबले वायदा कारोबार में रिस्क ज्यादा होता है। इसमें पूरी पूँजी साफ़ होने का रिस्क हमेशा बना रहता है।
इसलिए वायदा कारोबार में ट्रेडिंग करते वक्त स्टॉप-लॉस का ख्याल रखें। अगर आपने 10% मार्जिन लगाकर फ्यूचर ट्रेड लिया है तो शेयर में 5% का नेगेटिव चेंज आपकी पूँजी को आधा कर देगा। इसलिए लॉस को लिमिट में रखें। लॉस वाले सौदे की दिशा अगर प्रॉफिट की तरफ आये तो उसमे ज्यादा कमाने की न सोचते हुए सौदे से निकल जाए।
3. इंडेक्स ट्रेडिंग से शुरू करें -
स्टॉक फ्यूचर में ट्रेड करने के बजाय इंडेक्स फ्यूचर से शुरुवात करें। कुछ ख़ास समय जैसे इलेक्शन रिजल्ट, RBI पालिसी जैसी बड़ी अनाउंसमेंट के वक्त ट्रेड ना करें। बड़ी घटनाओं के दौरान ट्रेड करते वक्त फ्यूचर के बजाय ऑप्शन में ट्रेडिंग करें। कैश मार्केट का ट्रेडिंग पैटर्न सीखने के बाद ही वायदा कारोबार (future trading) में आएं।शुरुआत में अधिक लॉट लेने से बचें और स्टॉप लॉस लगाकर काम करें। बड़ा लॉट होने के कारण शेयर के भाव में आया छोटा सा परिवर्तन भी बड़ा दिखता है और आपके लॉस-प्रॉफिट अकाउंट को बहुत प्रभावित करता है।
आशा है "Future trading in indian stock market" की इस पोस्ट के द्वारा आपको फ्यूचर ट्रेडिंग की जानकारी हो गई होगी। कम पैसों में ट्रेड करने के लिए ऑप्शन में ट्रेडिंग अच्छा विकल्प है। ऑप्शन ट्रेडिंग की जानकारी के लिए अगली पोस्ट का इंतज़ार करें। अगर आपके कोई सवाल हों तो कमेंट द्वारा पूछ सकते हैं।
good knowledge
ReplyDeletethank you. keep watching
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