उदयपुर की यात्रा - udaipur yatra
खूबसूरत झीलों, आलीशान महलों, शानदार विलासितापूर्ण होटलों और मनोरम उद्यानों का शहर उदयपुर रोमानियत और आकर्षण से भरा ऐतिहासिक शहर है। यहां की फिजाओं में आज भी वीर राणाओं की शौर्य गाथाएं गूंजती हैं।
उदयपुर को सूर्योदय का शहर कहा जाता है। 1568 में महाराणा उदयसिंह द्वारा चित्तौड़गढ़ विजय के बाद उदयपुर को रियासत की राजधानी बनाया गया था। प्राचीर से घिरा हुआ उदयपुर शहर एक पर्वतश्रेणी पर स्थित है, जिसके शीर्ष पर महाराणा जी का महल है, जो सन् 1570 ई. में बनना आरंभ हुआ था।
कैसे जाएं -
1. उदयपुर के लिए दिल्ली, जयपुर, व अहमदाबाद से सीधी दैनिक ट्रेनें हैं।
2. सड़क मार्ग- उदयपुर दिल्ली (670 किमी), मुंबई (739 किमी), आगरा (630 किमी), अहमदाबाद (262 किमी), माउंट आबू (185 किमी) आदि शहरों से सीधी बस सेवा से भी जुड़ा है।
3. वायुमार्ग -उदयपुर के लिए दिल्ली व मुंबई से रोजाना उड़ानें उपलब्ध हैं।
उदयपुर की देखने योग्य जगहों में - पिछोला झील, सिटी पैलेस, सहेलियों की बाड़ी, नाथद्वारा शामिल है
उदयपुर की देखने योग्य जगहें
1. पिछोला झील -
शहर के सौंदर्य को दोगुना करती यहां की झीलों में सबसे प्रमुख पिछौला झील है। करीब चार किलोमीटर लंबी इस झील का नाम पिछौला गांव पर पड़ा था। उदयपुर के पश्चिम में पिछोला झील है, जिस पर दो छोटे द्वीप और संगमरमर से बने महल हैं, इनमें से एक में मुग़ल शहंशाह शाहजहाँ (शासनकाल 1628-58 ई.) ने तख़्त पर बैठने से पहले अपने पिता जहाँगीर से विद्रोह करके शरण ली थी।
पिछोला झील उदयपुर शहर की सबसे प्रसिद्ध झील है और यह सबसे सुन्दरतम है. झील के मध्य है जगनिवास महल। यह महल 1730 में ग्रीष्म निवास के रूप में महाराणा जगतसिंह ने बनवाया था। पानी पर तैरता प्रतीत होता यह सफेद जलमहल बेहद सुंदर है। जिसका प्रतिबिम्ब झील में आकर्षक दिखाई पड़ता है। आज यह राजसी शान-शौकत वाला लेक पैलेस होटल बन गया है।यहां नाव से ही जाया जा सकता है।
2. सिटी पैलेस -
उदयपुर में सिटी पैलेस की स्थापना 16वीं शताब्दी में आरम्भ हुई। सिटी पैलेस को स्थापित करने का विचार एक संत ने राणा उदयसिंह को दिया था। इस प्रकार यह परिसर 400 वर्षों में बने भवनों का समूह है। यह एक भव्य परिसर है। इसे बनाने में 22 राजाओं का योगदान था।इतिहास को समझने के लिए पर्यटकों को सिटी पैलेस निमंत्रण देता है। यह आलीशान महल उस दौर की बहुत सी अनमोल विरासतों को संजोए है। सिटी पैलेस अलग-अलग समय में बनवाए गए चार बड़े और कुछ छोटे महलों का एक समूह है। पिछौला झील के किनारे स्थित इस राजमहल का एक भाग संग्रहालय के रूप में सैलानियों के लिए खुला है। महल के एक हिस्से में आज भी यहां के पूर्व राजाओं का परिवार रहता है और अन्य भागों को हैरीटेज होटलों का रूप दे दिया गया है।
सिटी पैलेस में प्रवेश के लिए दो द्वार हैं। पहले द्वार-बड़ी पोल का निर्माण 1600 ई. में हुआ था। दूसरे द्वार-त्रिपोलिया गेट का निर्माण 1725 में किया गया था। मुख्य द्वार के ऊपर सूर्यवंशीय राणाओं का प्रतीक चिन्ह सूर्य लगा है। मूल सूर्य सोने से निर्मित था, जिसे बाद में बदलकर उसकी अनुकृति लगा दी गई। मूल सूर्य संग्रहालय के अंदर लगा है। प्रवेश करते ही सामने ‘राय आंगन’ है। राय आंगन की दीवारों पर राणा प्रताप द्वारा लड़े गए युद्धों के चित्र बने हैं।
"मोर चौक" कांच और टाइल्स की कला का अद्भुत उदाहरण है। यहां दीवारों पर बनी मोरों की विभिन्न मुद्राओं द्वारा मौसम के बदलाव को प्रदर्शित किया गया हैं. इसी तरह ‘माणिक महल’ में कांच और चीनी मिट्टी की बनी सुंदर आकृतियां देखने योग्य हैं। ऊपरी मंजिल पर एक वाटिका में घने पेड़ भी लगे हैं, जिन्हें देख आश्चर्य होता है। दरअसल यह महल के मध्य एक ऊंचे टीले पर स्थित वाटिका है। महल का यह हिस्सा ऊंचे टीले के चारों ओर बना है। "जनाना महल" राज परिवार की महिलाओं के लिए बना खास तौर पर बनवाया गया महल था। एक ओर मोती महल है जहां आप शीशे की सुंदर कारीगरी देख सकते हैं।
महल के अन्य हिस्से में शीशमहल, दरबार हाल, शंभूनिवास आदि हैं। ऊपर बना सूरज गोखड़ा एक प्रकार की बालकनी है। जहां बैठ कर महाराणा जनता को संबोधित करते थे. सिटी पैलेस में स्थित दीर्घाओं में चित्र आदि के अलावा अस्त्र शस्त्र, राजसी प्रतीक और महाराणाओं की विरासत प्रदर्शित है।
इनमें महाराणा प्रताप का जिरह बख्तर और ऐतिहासिक भाला विशेष आकर्षित करते हैं। जो आकर प्रकार में विशाल और वजन में बहुत भारी हैं। इन्हें देख कर उस काल के पुरुषों के शारीरिक सौष्ठव का अंदाज़ लगा सकते हैं।
इनमें महाराणा प्रताप का जिरह बख्तर और ऐतिहासिक भाला विशेष आकर्षित करते हैं। जो आकर प्रकार में विशाल और वजन में बहुत भारी हैं। इन्हें देख कर उस काल के पुरुषों के शारीरिक सौष्ठव का अंदाज़ लगा सकते हैं।
3. सहेलियों की बाड़ी -
यह उदयपुर का एक खूबसूरत और दर्शनीय बाग़ है। इस बाग़ में कमल के फूलों से भरे तालाब, फव्वारे और संगमरमर के हाथी बने हुए हैं। श्रावण मास की अमावस्या के अवसर पर इस बाड़ी में नगर निवासियों का एक बड़ा मेला भी लगता है। सहेलियों की बाड़ी का निर्माण राणा संग्राम सिंह द्वारा शाही महिलाओं के लिए 18वीं सदी में करवाया गया था। "फतेह सागर झील" के किनारे पर स्थित यह जगह अपने ख़ूबसूरत झरनें, हरे-भरे बगीचे और संगमरमर के काम के लिए विख्यात है।इस उद्यान के मुख्य आकर्षण फव्वारे हैं, जो इंग्लैण्ड से आयात किए गए थे। सभी फव्वारों में पक्षियों की आकृति बनी है जिनकी चोंच से पानी निकलता हुआ सुन्दर दिखाई पड़ता है। फव्वारे के चारों ओर काले पत्थर का बना रास्ता है। बगीचे में एक छोटा-सा संग्रहालय है, जहाँ शाही परिवार की वस्तओं का विशाल संग्रह प्रदर्शित है।
संग्रहालय के अलावा यहाँ एक गुलाब के फूलों का बगीचा और कमल के तालाब हैं। उद्यान रोज सुबह नौ बजे से शाम के छ: बजे के बीच तक आगंतुकों के लिए खुला रहता है।
4. नाथद्वारा -
वैष्णव मत का विख्यात श्रीनाथ यानी कृष्ण मंदिर। उदयपुर से 48 किमी दूर। इस मंदिर का निर्माण 17वीं शताब्दी के अंत में हुआ था। मंदिर के गर्भगृह में भगवान की श्याम वर्णी पाषाण प्रतिमा विराजमान है।यह प्रतिमा महाराणा राजसिंह द्वारा मथुरा से लाकर स्थापित की गई थी। ब्रजभूमि के बाहर देश में कृष्ण के सबसे पूजनीय स्थानों में से एक नाथद्वारा का ये मंदिर है।
5. जयसमंद और राजसमंद झील -
उदयपुर से 48 किमी दूर यह विशाल झील 17वीं सदी में महाराणा जय सिंह द्वारा बनवाई गई थी। यहां राज परिवार की औरतों के लिए ग्रीष्म ऋतु में निवास हेतु एक महल का निर्माण भी किया गया था। यह एशिया की दूसरी सबसे बड़ी मानव निर्मित झील है। राजसमंद झील उदयपुर से 66 किमी दूर कांकरोली में स्थित है।इसे महाराणा राज सिंह ने 1660 में बनवाया था। यहां से चार भुजाजी मंदिर भी निकट ही है। उदयपुर की यात्रा के साथ ही पर्यटक रणकपुर के प्रसिद्ध जैन मंदिर (96 किमी दूर), कुम्भलगढ़ (84 किमी) और चित्तौड़गढ़ (116 किमी) देखने का कार्यक्रम भी बना सकते हैं।
कहां ठहरें -
उदयपुर में देश की सबसे महंगी (1.30 लाख रु. रोजाना के कोहिनूर सूट) से लेकर सस्ती होटलें भी मौजूद हैं। उदय विलास, शिव निवास व लेक पैलेस महंगे और luxurious होटल हैं । लेकिन स्टेशन से सूरजपोल के रास्ते में किफायती होटल भी हैं, जहां कम खर्च में रुका जा सकता है।कब जाएं -
उदयपुर की स्थानीय संस्कृति के रंग देखने का अवसर पर्यटकों को मेवाड़ उत्सव व गणगौर उत्सव के समय मिलता है। वसंत के आगमन पर होने वाले मेवाड़ उत्सव पर शोभा यात्रा निकलती है। इसमें यहां के लोकनृत्य, लोकगीत व आतिशबाजी का नजारा मिलता है।चैत्र मास की तीज पर गौरी की पूजा के गणगौर पर्व में सजेधजे हाथी और घोड़ों के जुलूस के साथ शंकर भगवान की प्रतिमा भी ले जाई जाती है। इस दिन महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में नजर आती हैं।बारिश अच्छी हो तो सावन के महीने में यहां की रौनक कुछ और ही होती है। वैसे मौसम व प्राकृतिक खूबसूरती के लिहाज से देखा जाए तो उदयपुर जाने का उपयुक्त समय सितंबर से मार्च के बीच है।
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Sir apane bahut achcha artical likha hai 😀
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