हेल्थ के लिए एलोपैथी या नैचुरोपैथी (Allopathy or naturopathy which is good for health)
यदि स्वास्थ्य चाहिए तो प्रकृति के करीब रहना होगा। अपने रहन सहन और खान पान के अस्वास्थ्कर और अप्राकृतिक ढंग को बदले बिना केवल दवाओं के सहारे स्वस्थ रहने के कल्पना करना बेमानी ही सिद्ध होगा।
प्राकृतिक चिकित्सा पूरे शरीर को एक मान कर इलाज करती है। प्राकृतिक चिकित्सा की मान्यता है कि शरीर में स्वतः अपने को रोग मुक्त करने की शक्ति होती है। प्राकृतिक चिकित्सा लोगों को स्वास्थ्य के संबंध में विचार करना सिखाती है, रोग की संबंध में नहीं।
ऐलोपैथी की नजर लक्षणों पर -
वैसे तो आज चिकित्सा विज्ञान के साथ सैनिटेशन और हाइजीन में बहुत ज्यादा वृद्धि हुई हैऔर दवाइयों का प्रयोग अत्यधिक बढ़ा है। पर उसी के साथ यह भी सत्य है की मनुष्य की रोग प्रतिरोधक क्षमता में गिरावट आई है। इसके साथ ही रोगियों की संख्या में भारी वृद्धि होने से यह पता चलता है की हमारे रोगोपचार सिस्टम में कहीं कोई मूलभूत त्रुटि है।
अगर हम अपने शरीर की क्रिया पद्धति के बारे में ठीक से अवेयर होते तो उस डॉक्टर के पास जाकर अपने आप को नहीं सौपते, जिसकी मूल दृष्टि सिर्फ रोगोपचार पर होती है।
वह आपको कुछ दवा की बोतले और टेबलेट्स थमा देता है, पर स्वास्थ्य दवा की बोतलों से नहीं पाया जा सकता। स्वास्थ्य कोई ऐसी चीज़ नहीं है, जो पैसे से खरीदी जा सके अगर ऐसा होता तो कोई धनपति रोग से नहीं मरता।
दवाओं से चमत्कार सम्भव नहीं -
हम सोचते है की दवाओं में कोई चमत्कारिक शक्ति है जो हमें रोगों से तुरंत छुटकारा दिला देगी तो ये हमारी भूल है। दरअसल हम ये कभी नहीं मानते की हृदय रोग, ब्लड प्रेशर जिससे अधिकांश लोगों की मृत्यु होती है, उसका मूल कारण हमारी कुछ आदतें हैं।जैसे व्यायाम न करना, पूरी नींद न सोना, नशा करना, कैफीन या चाय का अत्यधिक प्रयोग के साथ किसी भी बात का जरूरत से ज्यादा तनाव लेना। स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है सादा भोजन और पेट का अच्छे से साफ़ होना।
नेचुरोपैथी का दृष्टिकोण -
स्वस्थ रहने की कामना है तो प्रकृति के करीब रहना होगा साथ ही कृत्रिम दवाओं के प्रति अपनी मान्यताओं पर पुनर्विचार करना होगा। यही वह स्थल है जहां ऐलोपैथी और नेचुरोपैथी चिकित्सा में दीवार खड़ी हो जाती है।आइये जानते हैं नैचुरोपैथी का दृष्टिकोण क्या है -
1. विजातीय द्रव्यों को शरीर से बाहर करना -
हमारे रक्त में अम्लीय तत्व बढ़ने की स्थिति में रोग होते हैं और उनमें वृद्धि होती है इसी अवस्था में शरीर को उचित प्राकृतिक आहार द्वारा क्षारीय तत्वों की आपूर्ति प्राकृतिक चिकित्सक करता है साथ ही ऐसे उपाय करता है की शरीर अम्लीय विजातीय द्रव्यों को शरीर से बाहर निकाल सकें।2. विषाक्त दवाओं के प्रयोग नहीं -
प्राकृतिक चिकित्सा उन दवाओं का समर्थन नहीं करती, जो विषाक्त और घातक होती तथा जिन का लक्ष्य तीव्र लोगों को दबाना हो। प्राकृतिक चिकित्सा का कार्य शरीर में संग्रहित विजातीय द्रव्य को निकालकर शरीर की अम्लता को कम करना है।
शरीर में असाध्य और कठिन रोगों का कारण विजातीय द्रव्यों का आधिक्य और शरीर के लिए अपेक्षित खनिज तथा कार्बनिक लवणों की कमी होती है।
यूरिक एसिड वाले रोग जैसे गठिया, रूमेटिज्म, डायबिटीज का कारण रक्त में खनिज लवण मुख्य रूप से मैग्निशियम, सोडियम, लिथियम तथा पोटेशियम की कमी होती है। यह खनिज लवण स्टार्च तथा प्रोटीन की पाचन क्रिया में उत्पन्न अम्लता को निष्क्रिय करते हैं।
यूरिक एसिड वाले रोग जैसे गठिया, रूमेटिज्म, डायबिटीज का कारण रक्त में खनिज लवण मुख्य रूप से मैग्निशियम, सोडियम, लिथियम तथा पोटेशियम की कमी होती है। यह खनिज लवण स्टार्च तथा प्रोटीन की पाचन क्रिया में उत्पन्न अम्लता को निष्क्रिय करते हैं।
3. प्राकृतिक आहार का प्रयोग -
समस्त खाद्य पदार्थ जिनमें इन लक्ष्यों की प्राप्ति होती हो, अच्छी दवा है। हमारा आहार ऐसा होना चाहिए जिनसे सभी प्रकार के लवणों की पूर्ति हो जाए। प्रकृति ने ऐसे आहारीय पदार्थ उत्पन्न कर रखे हैं जिनमें मनुष्य की अपेक्षा के सभी तत्व उपलब्ध है।लगातार गलत आहार के कारण पाचन प्रणाली इतनी कमजोर हो जाती है की वो प्राकृतिक तत्वों को आत्मसात करने में असमर्थ हो जाती है। ऐसी स्थिति में फलों, सब्जियों, फलों के रस आदि के रूप में उन खनिज लवणों की आपूर्ति जा सकती है।
4 . हर रोग का अलग नाम नहीं -
एलोपैथी चिकित्सा तथा प्राकृतिक चिकित्सा में दृष्टिकोण का अंतर है। एलोपैथी में शरीर में होने वाले हर रोग को एक नाम दिया जाता है और उस रोग के क्या लक्षण होते हैं इसका विवेचन होता है तथा हर कष्ट का एक निश्चित कारण बताया जाता है। रोग के बारे में एलोपैथी को जितना ज्ञान है स्वास्थ्य के संबंध में उतना ही कम।5 . दोनों में मूलभूत अंतर् -
आधुनिक चिकित्सा प्रणाली में डॉक्टर, लक्षण विशेष के लिए दवा देता है या कहिए लक्षण का उपचार किया जाता है, पूरे शरीर का उपचार नहीं होता। एलोपैथी हर रोग को एक निश्चित रूप देती है और उसके लिए निश्चित दवा निर्धारित करती है। यही एलोपैथी और प्राकृतिक चिकित्सा में अंतर है वह भी जमीन आसमान का, प्राकृतिक चिकित्सा सिद्धांत और व्यवहार दोनों में उस से सर्वथा भिन्न है।
प्राकृतिक चिकित्सा की मान्यता है कि शरीर का मात्र एक भाग बीमार नहीं हो सकता उसका प्रभाव पूरे शरीर में होगा। नेचरोपैथी मानती है की बीमारियों के लिए अनेक कारण नहीं होते वह तो एक ही कारण होता है, रक्त में अम्लता की वृद्धि। जिसका मूल कारण गलत खान पान और रहन सहन होता है।
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6. पूरे शरीर का इलाज -
एलोपैथी में रोग उपचार के लिए दवा दी जाती है पर प्राकृतिक चिकित्सा शरीर को स्वस्थ होने में सहायता मात्र प्रदान करती है और इसके लिए बिना कोई दवा के प्राकृतिक उपायों का सहारा लेती है। एलोपैथी लक्षण का इलाज करती है, प्राकृतिक चिकित्सा रुग्ण व्यक्ति का इलाज करती है. दूसरे शब्दों में कहें तो प्राकृतिक चिकित्सा पूरे शरीर का इलाज करती है।also read-
7 . लक्षण नष्ट करने का प्रयास नहीं -
एलोपैथिक चिकित्सक का मुख्य लक्ष्य, लक्षण को समाप्त करना है, रोग के कारण को शरीर से बाहर निकालना नहीं। वे मात्र कष्ट निवारण की बात मानते हैं, स्वस्थ बनाने की नहीं।एलोपैथिक चिकित्सक के दिमाग में हजारों रोग और उनके लक्षण स्मरण रहते हैं और उनके पास दवा बनाने वाली कंपनियों के सूची होती है, जिसमें क्रम से रोगों के नाम दिए होते हैं।एलोपैथी और प्राकृतिक चिकित्सा में सबसे बड़ा अंतर यह है कि प्राकृतिक चिकित्सक लक्षण नष्ट करने के लिए कुछ भी नहीं करता, उसका प्रयास उस कारण को समाप्त करने का रहता है जिसके फलस्वरूप व्यक्ति बीमार हुआ है।
आशा है ये पोस्ट "Health ke liye Allopathy ya Naturopathy" आपको नेचुरोपैथी के सिद्धांतों को समझने में सहायक होगी और आप इसके अनुसार अपनी जीवन शैली में परिवर्तन लाकर स्वस्थ रह सकेंगे।ऐसी और भी उपयोगी जानकारी के लिए इस वेबसाइट में विजिट करते रहें।
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