सेंसर बोर्ड की अनुमति के बाद फिल्म प्रदर्शन का विरोध कितना उचित है।
बॉलीवुड की फ़िल्में देश ही नही विदेशों में भी अपना परचम लहरा रही हैं । फिल्मे हमारे मनोरंजन का अभिन्न अंग हैं, bollywood की फ़िल्में देखना और उनका संगीत हमेशा से अत्यंत लोकप्रिय रहा है।फ़िल्में मनोरंजन के साथ साथ देश के राजस्व में भी अपना योगदान करती हैं।यहां मैं आपका ध्यान फिल्म प्रदर्शन के विरोध की ओर दिलाना चाहता हूँ, जो पिछले कुछ समय से ज्यादा ही बढ़ गया है।इस तरह के विरोध के चलते होने वाले नुकसान के साथ इस समस्या से निपटने के उपायों की चर्चा हम यहां करेंगे।
1. संपत्ति की क्षति --
फिल्मों के निर्माण में निर्माता के करोड़ों रुपये लगने के साथ ही कलाकारों और तकनीकी पक्ष से जुड़े अनेक लोगों की उम्मीद और सपने भी जुड़े होते हैं। फिल्म निर्माण कला के साथ व्यवसाय भी है, जिसमे मनोरंजन हेतु किसी प्राचीन कथा में आवश्यक परिवर्तन भी करने होते हैं।फिल्म का विरोध करने वाले शांतिपूर्ण विरोध की बजाय गैरकानूनी रूप से हिंसा और धमकी का सहारा लेते देखे गए हैं।
2. आतंक का वातावरण बनता है -
फिल्म के विरोध में नियम-कानूनों को धता बताते हुए तोड़फोड़ एवं आगजनी करने की खुली धमकी देना एक किस्म की गुंडागर्दी ही है।
सभ्य समाज में किसी को भी यह शोभा नहीं देता कि वह अपनी आहत भावनाओं का हवाला देकर सड़कों अथवा अन्य सार्वजनिक स्थलों पर आम लोगों को आतंकित करने का काम करें।
लोगों का कहना है कि कुछ फिल्म निर्माता अपनी फिल्म के प्रमोशन के लिए ऐसे हथकंडे अपनाते हैं, जिसमें वो अपनी ही फिल्म का प्रायोजित विरोध करवाते हैं।
फिल्म की ओर लोगों का ध्यान खींचने के लिये ऐसा प्रायोजित विरोध किन फिल्म निर्माताओं ने करवाया ये जांच का विषय हो सकता है।
फिल्म की ओर लोगों का ध्यान खींचने के लिये ऐसा प्रायोजित विरोध किन फिल्म निर्माताओं ने करवाया ये जांच का विषय हो सकता है।
3. अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता की हानि -
सेंसर बोर्ड से फिल्म प्रदर्शन की अनुमति मिलने के बाद इसका कोई औचित्य नहीं रह जाता कि करणी सेना अथवा ऐसे ही अन्य संगठन जोर-जबरदस्ती से फिल्म के प्रदर्शन को रोकने की कोशिश करें।जैसे पद्मावत फिल्म को ही लें, इसके निर्माता निर्देशक समेत जिन लोगों ने इस फिल्म को देखा वे बार-बार यह कह रहे थे कि फिल्म में ऐसा कुछ नहीं है जिससे किसी को आपत्ति हो तब फिर यह रट लगाने का क्या मतलब कि हमें यह फिल्म स्वीकार नहीं? ऐसे ही विरोध के स्वर फिल्म एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर और अब मणिकर्णिका के लिए सुनाई पढ़ रहे हैं।
4.गलत छवि बनना -
विचित्र यह होता कि ऐसा कहने वाले वे होते हैं, जिन्होंने न तो फिल्म देखी होती और न ही उसकी विषय वस्तु के बारे में जानते हैं। आखिर जब पार्वती, दुर्गा, सीता आदि पर फिल्में या धारावाहिक बन सकते हैं तो किसी ऐतिहासिक राजारानी या अन्य पात्र पर क्यों नहीं बन सकती?
किसी फिल्म का हिंसक विरोध भारतीय समाज की गलत छवि पेश करने के साथ ही फिल्मकारों और अन्य कलाकारों की कल्पनाशीलता की हद तय करने वाला काम है। आखिर कोई कल्पनाशीलता को बंधक बनाने का काम कैसे कर सकता है?
ध्यान रहे कि जो समाज ऐसे काम करता है वह अवनति की ओर तो जाता ही है, उपहास का भी पात्र बनता है। राज्य सरकारें भी ऐसे हिंसक विरोध को रोकने में नाकामयाब रहीं हैं.
इस विरोध में थिएटर में तोड़ फोड़ के अलावा लोगो की गाड़ियां जलाना , सड़क में स्कूली बसों को रोककर धमकाना और तोड़ फोड़ भी शामिल है, आखिर उन बच्चों के मन मस्तिष्क पर कैसा सन्देश जाता होगा।
इस विरोध में थिएटर में तोड़ फोड़ के अलावा लोगो की गाड़ियां जलाना , सड़क में स्कूली बसों को रोककर धमकाना और तोड़ फोड़ भी शामिल है, आखिर उन बच्चों के मन मस्तिष्क पर कैसा सन्देश जाता होगा।
आखिर इसका समाधान क्या हो सकता है
विरोध करने वालों का तर्क होता है कि उस ऐतिहासिक व्यक्ति के चरित्र से फिल्म में छेड़छाड़ की गई है , दरअसल प्राचीन काल में संसाधनों की कमी के चलते और अनेक किताबों के नष्ट हो जाने से किसी घटना विशेष के बारे में इतिहासकारों में भी मतैक्य नहीं होता। फिर किसी प्राचीन कथा को फिल्म का रूप देने के लिए कुछ परिवर्तन भी करने पड़ते हैं
फिर समाधान कैसे हो ?
इसके लिए सरकार केवल ऐतिहासिक फिल्मों के निर्माण के सम्बन्ध में एक कमेटी का गठन करे जो ऐसी फिल्मों के निर्माण के पूर्व कहानी और पटकथा लेवल पर सलाह और यदि जरूरी हो तो उसमें परिवर्तन करवाए।
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दूसरा तरीका पद्मावत वाला फार्मूला हो सकता है। सेंसर बोर्ड के नियमों में ये जोड़ा जाए की जो कोई, ऐतिहासिक व्यक्ति के नाम से फिल्म बनाना चाहेगा उसे उस चरित्र के नाम में थोड़ा चेंज करना आवश्यक होगा, जैसे पद्मावती को पद्मावत किया जाना।
बाद में नाम चेंज करने से अच्छा ऐतिहासिक फिल्मों का निर्माता पहले ही इस बात का ध्यान रखेगा।
तीसरा और प्रभावी तरीका ये हो सकता है की फिल्म के विरोध में फतवा जारी करने वाले और हिंसक प्रदर्शन करने वालों के खिलाफ विशेष क़ानून लाकर सरकार उनसे अत्यंत कठोरता से निपटे।जिससे ऐसे लोगों दिलोदिमाग में एक दहशत रहेगी।
आपकी इस सम्बन्ध में क्या राय है ? कमेंट द्वारा अवगत करायें।
दूसरा तरीका पद्मावत वाला फार्मूला हो सकता है। सेंसर बोर्ड के नियमों में ये जोड़ा जाए की जो कोई, ऐतिहासिक व्यक्ति के नाम से फिल्म बनाना चाहेगा उसे उस चरित्र के नाम में थोड़ा चेंज करना आवश्यक होगा, जैसे पद्मावती को पद्मावत किया जाना।
बाद में नाम चेंज करने से अच्छा ऐतिहासिक फिल्मों का निर्माता पहले ही इस बात का ध्यान रखेगा।
तीसरा और प्रभावी तरीका ये हो सकता है की फिल्म के विरोध में फतवा जारी करने वाले और हिंसक प्रदर्शन करने वालों के खिलाफ विशेष क़ानून लाकर सरकार उनसे अत्यंत कठोरता से निपटे।जिससे ऐसे लोगों दिलोदिमाग में एक दहशत रहेगी।
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