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Wednesday, 23 January 2019

Aarakshn (Reservation) band hona chahiye. नौकरी में आरक्षण बंद होना चाहिए

 Aarakshn (Reservation) band hona chahiye आरक्षण बंद होना चाहिए ? 

 यदि देश को तरक्की की राह पर ले जाना है तो प्रतिभा की कद्र करनी ही होगी। इसके लिए आरक्षण बंद होना चाहिए। केवल जाति देखकर हम अयोग्य लोगों की भर्ती नौकरियों और मेडिकल कॉलेज में करते रहेंगे तो यह प्रतिभा से खिलवाड़ ही होगा। क्या आरक्षण को पूरी तरह समाप्त करने का समय नहीं आ गया है ? 

आरक्षण पद्धति की समीक्षा की जरूरत -

 अनुसूचित जाति एवं जनजातियों के लिए आरक्षण लागू होने के लगभग सात  दशक बीत चुके हैं और मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू होने के भी लगभग दो दशक पूरे हो चुके हैं, लेकिन क्या संबंधित पक्षों को उसका पर्याप्त लाभ मिला? सत्ता एवं सरकार अपने निहित स्वार्थों के कारण आरक्षण की नीति की समीक्षा नहीं करती।


    आरक्षण जाति पर आधारित हो या फिर इसका आधार  आर्थिक  हो ? यह हमेशा से सोचनीय विषय रहा है। आरक्षण के पक्ष में तर्क दिया जाता है कि कुछ जातियां दबी कुचली और ग़रीब हैं इसलिए इन्हें ऊपर उठाने के लिए आरक्षण  आवश्यकता है। पर क्या इस वर्ग का हर व्यक्ति कमजोर और तथाकथित दबा कुचला है? और सवर्णों में सभी संपन्न हैं,उनमे गरीबी भुखमरी नहीं है ?

 कानून क्या कहता है

1949 में भारतीय संविधान की धारा 335 में प्रारूप समिति के अध्यक्ष भीमराव अम्बेडकर ने स्पष्ट कर दिया था कि अनुसूचित जाति तथा जनजाति के आरक्षण का यह प्रावधान केवल दस वर्षों तक के लिए हीं होगा। 

      मगर आज 70 साल बाद  भी राजनितिक दलों ने अपनी वोटबैंक की राजनीति के चलते आरक्षण को हटाने में अपनी रूचि नहीं दिखाई  है। 

     अम्बेडकर ने आरक्षण देते समय ये भी कहा था कि आरक्षण एक बैसाखी है और लंबे दौर में वह दलितों को पंगु बना डालेगी। 

   सवाल आज अंबेडकर के दिए आरक्षण समर्थकों  से भी है कि क्या ये दलितों के साथ न्याय है या वोट के लिए बांधने की रस्सी। क्यों आज़ादी के 7 दशक बाद भी समाज के एक वर्ग को ये अहसास करवाया जा रहा है कि वो अब भी दबे , पीड़ित और अक्षम हैं और इससे उबरने के लिए उन्हें आरक्षण की बैशाखी की जरूरत है।

समस्या का कारण राजनीति   - 

पिछले कई वर्षों से आरक्षण के नाम पर राजनीति हो रही है, आए दिन कोई न कोई वर्ग अपने लिए आरक्षण की मांग कर बैठता है एवं इसके लिए आंदोलन करने पर उतर जाता हैं।  इस तरह, देश में अस्थिरता एवं अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।  

  आर्थिक एवं सामाजिक पिछड़ेपन के आधार पर निम्न तबके के लोगों के उत्थान के लिए उन्हें सेवाएं एवं शिक्षा में आरक्षण प्रदान करना उचित है, लेकिन जाति एवं धर्म के आधार पर तो आरक्षण को कतई उचित नहीं कहा जा सकता।  क्योंकि एक और तो इससे समाज में विभेद उत्पन्न होता है, तो दूसरी और आरक्षण पाकर व्यक्ति कर्म के क्षेत्र से भी विचलित होने लगता है। 

  
  एक ओर आज समाज में जात पात की भेदभाव को खत्म करने की बात हो रही है तो वहीं दूसरी ओर इसी के सहारे  समाज को जातिगत दायरे में  बांध दिया जाता है। लोगों को बाँटो और राज़ करो वाली यह नीति खत्म करना है तो नौकरी में आरक्षण बंद होना चाहिए   

 सवर्णों में नाराजगी -              

सवर्णों की नाराजगी दूर करने के लिए जातिगत आरक्षण से बाहर निकलकर किसी सरकार ने पहली बार आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की है, जो की उनकी आबादी के आधार पर नाकाफी है और किसी मतलब की नहीं है।  आर्थिक आरक्षण के विरोध में यह तर्क दिए जा रहें हैं की संविधान निर्माताओं ने ऐसे आरक्षण के विचार को खारिज किया था। 

   संविधान निर्माताओं की बुद्धिमत्ता का पूरा सम्मान करते हुए यह कहना उचित होगा की क्या समाज निरंतर परिवर्तनशील नहीं है ? स्वतन्त्रता के तुरंत बाद की स्थितियां शायद 7  दशक बाद उतनी प्रासंगिक ना रह गयी हों। क्या इस व्यवस्था के औचित्य पर पुर्विचार नहीं होना चाहिए? 

voilence against reservation


 आरक्षण के नुकसान  -

 योग्यता पर कुठाराघात - 

किसी भी किस्म का आरक्षण चाहे उसका आधार कुछ भी हो , उसकी पहली शिकार बनती है योग्यता। अधिक अंक पाने के बाद भी दूसरा  कम अंक पाने वाला प्रतियोगी उसके सामने नौकरी पा जाता है, ऐसे युवक की टीस और दर्द  को कोई  बेरोजगार ही समझ सकता है। क्या यही समानता का अधिकार है, जो हमारे संविधान निर्माताओं की मूल भावना थी।

 समाधान क्या हो 

वास्तव में हमें अपनी शिक्षित आबादी के लिए अधिक नौकरी की दरकार है।  यदि उचित कदम नहीं उठाये गए तो आक्रोश, असंतुष्टि फैलने के साथ समाज के एक वर्ग का विदेश पलायन रोका नहीं जा सकता।योग्य और प्रतिभाशाली लोगों का पलायन देश के लिए बड़ी हानि है और राष्ट्र के विकास में बाधक है। आरक्षण एक अस्थायी व्यवस्था थी।

      यदि 70  वर्षों में कोई व्यवस्था वांछित बदलाव नहीं ला पायी ,तो उस विचार की प्रासंगिकता विचारणीय हो जाती है। पटेल और जाट आंदोलन  जैसे आरक्षण आंदोलन इसी  व्यवस्था की देन है और आने वाले समय में  अन्य जातियों के भी  आरक्षण आंदोलन से जुड़ने की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता।

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 स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम चलायें -             

अब समय आ  गया है की सभी राजनैतिक पार्टियाँ अपने निहित स्वार्थों को त्याग कर देश हित में सोंचे और आरक्षण को ख़त्म करने  की दिशा में कदम उठायें। सरकारी स्कूलों की तरह स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम शुरू किये जाए जहां बिना किसी जातीय आरक्षण के युवक युवतियां अपनी योग्यता बढ़ा सकें।  

   जो भी आर्थिक रूप से कमजोर हो उसके लिए कोचिंग की व्यवस्था की जाए, जिससे वो स्वरोजगार करे या  नौकरी की प्रतियोगी परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन कर पाये।
      
  अगर आरक्षण अब भी समाप्त नहीं किया जाता तो देश को अनेक आरक्षण आंदोलनों का सामना करना पड़ेगा और जान माल की हानि के साथ देश की छवि ख़राब होने का ख़तरा बना रहेगा। अतः आरक्षण बंद होना  चाहिये।
  
   इस विषय पर आपके क्या विचार हैं? कमेंट द्वारा बताये।  अगर ये लेख आपको पसंद आया हो तो इसे और लोगों तक शेयर करें।

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